Narayanpal Mandir Ka Itihas: नारंगी नदियों के संगम पर स्थित अनोखा मंदिर, यहां की वास्तुकला कर देगी मंत्रमुग्ध, जानिए नारायण पाल मंदिर का इतिहास
Narayanpal Mandir Ka Itihas: बस्तर की प्राकृतिक गोद में इंद्रावती और नारंगी नदियों के संगम पर स्थित नारायण पाल मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि यह छत्तीसगढ़ की प्राचीन सांस्कृतिक और स्थापत्य धरोहर का भी अद्भुत उदाहरण है।

Narayanpal Mandir Ka Itihas: बस्तर की प्राकृतिक गोद में इंद्रावती और नारंगी नदियों के संगम पर स्थित नारायण पाल मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि यह छत्तीसगढ़ की प्राचीन सांस्कृतिक और स्थापत्य धरोहर का भी अद्भुत उदाहरण है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और लगभग 11वीं शताब्दी में इसका निर्माण हुआ था। समय के उतार-चढ़ाव के बावजूद यह आज भी बस्तर की ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक बना हुआ है।
मंदिर का इतिहास
नारायण पाल मंदिर का निर्माण छींदक नागवंशी शासको के काल में हुआ था। माना जाता है कि इस मंदिर को छींदक नागवंश की रानी गुंडमहादेवी ने अपने पुत्र सोमेश्वर देव की याद में अपने पौत्र कनहर देव के शासनकाल में बनवाया था। प्राप्त शिलालेखों से यह भी स्पष्ट होता है कि मंदिर निर्माण केवल शाही परिवार की देन नहीं था बल्कि इसमें आसपास के गांव और जनता का भी सहयोग प्राप्त हुआ है। यह मंदिर उस समय की धार्मिक एकता को प्रदर्शित करती है।
स्थापत्य शैली का अद्भुत नमूना
नारायण पाल मंदिर मुख्यतः नागर शैली में निर्मित है लेकिन इसकी संरचना में चालुक्य शैली का भी प्रभाव देखा जा सकता है। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थरों से बना है और लगभग 70 फीट ऊंचा बताया जाता है। मंदिर की संरचना में गर्भ गृह, अंतराल और मंडप शामिल है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है जो पारंपरिक हिंदू स्थापत्य कला का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।
मंदिर के भीतर एक विशाल शिलालेख स्थापित है जिसकी ऊंचाई लगभग 8 फीट तक है इस शिलालेख पर सूर्य चंद्र, शिवलिंग, गाय, बछड़े और अन्य पौराणिक प्रतीकों की आकृतियां उकेरी गई है। यह न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं बल्कि उसे युग की कला और शिल्प कौशल की महानता को भी प्रमाणित करते हैं। शिलालेख में उकेरी गई इन आकृतियों से अंदाजा लगाया जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में किन-किन प्राणियों का सहयोग प्राप्त हुआ है।
मंदिर का धार्मिक महत्व
नारायण पाल मंदिर बस्तर का एकमात्र प्रमुख मंदिर है जिसमें भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है। इस कारण यह स्थान लोगों और दुर्धरा से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है धार्मिक दृष्टि से यह मंदिर सदियों से श्रद्धा का केंद्र रहा है और आज भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है। चित्रकोट जलप्रपात की निकटता इसे एक समेकित यात्रा अनुभव बनाती है जहाँ प्रकृति और पुरातनता एक साथ समाहित हैं।
मंदिर का संरक्षण और वर्तमान की स्थिति
आज नारायण पाल मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है और इस ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व के कारण भी अनमोल है। मंदिर का सामने वाला हिस्सा लंबे समय तक अधूरा रहा था जिसके बाद संरक्षण विभाग ने शिल्पकारियों की सहायता से इसे पूर्ण करवाया। हालांकि समय-समय पर सामान्य मरम्मत और देखरेख का कार्य होता रहा है लेकिन मंदिर की नींव में पिछले कुछ वर्षों से हल्की धसान देखी जा रही है इस समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट होने के बावजूद अब तक इसके स्थाई समाधान के लिए कोई गंभीर पहल नहीं की गई है।
नारायणपाल मंदिर कैसे पहुंचे
नारायण पाल मंदिर छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्थित है। जिला मुख्यालय जगदलपुर से इसकी दूरी 60 किलोमीटर है यहां पहुंचने के लिए सड़क, रेल और वायु मार्ग तीनों के विकल्प उपलब्ध हैं। NH30 से कोंडागांव और बस्तर की ओर बढ़ते हुए स्थानीय सड़कों से नारायणपाल तक पहुँचना संभव है। सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा जगदलपुर एयरपोर्ट है, जहाँ रायपुर और हैदराबाद से फ्लाइट सेवाएँ उपलब्ध हैं। एयरपोर्ट से नारायणपाल मंदिर लगभग 65 किलोमीटर दूर है।
