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Moti ki kheti kaise ki jati hai: इस चीज की खेती बनाएगी आपको मालामाल! जानिए कैसे की जाती है मोती की खेती? पढ़िए स्टेप बाय स्टेप पूरा प्रोसेस

Moti ki kheti kaise ki jati hai: आपने समुद्र में सीपीयों से बने प्राकृतिक मोतियों के बारे में तो सुना ही होगा पर क्या आपने मनुष्यों द्वारा निर्मित कृत्रिम मोती के बारे में सुना है।अभी की टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो गई है कि अब मोतियों की भी खेती की जा सकती है।

Moti ki kheti kaise ki jati hai: इस चीज की खेती बनाएगी आपको मालामाल! जानिए कैसे की जाती है मोती की खेती? पढ़िए स्टेप बाय स्टेप पूरा प्रोसेस
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By Chirag Sahu

Moti ki kheti kaise ki jati hai: आपने समुद्र में सीपीयों से बने प्राकृतिक मोतियों के बारे में तो सुना ही होगा पर क्या आपने मनुष्यों द्वारा निर्मित कृत्रिम मोती के बारे में सुना है।अभी की टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो गई है कि अब मोतियों की भी खेती की जा सकती है। इसमें सबसे बड़ा योगदान जापान के वैज्ञानिकों का है। इन्होंने ऐसी तकनीक का आविष्कार किया है जिससे प्राकृतिक मोती को कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है। यह समझना भी काफी महत्वपूर्ण है कि ये कृत्रिम मोती पूरी तरह से असली प्राकृतिक मोती की तरह ही होती है। आज बाजार में मिलने वाले अधिकांश मोती ऐसे ही होते हैं। आइए समझते है कि मानव द्वारा कृत्रिम मोती कैसे बनाया जाता है?

Step 1. आवश्यक सीप(oyster) का चयन

मोती की खेती शुरू करने के लिए सबसे पहले उपयुक्त सीप या मसल्स का चयन करना होता है। भारत के मीठे पानी में मोती की खेती करने के लिए लैमेलिडेंस मार्जिनालिस प्रजाति के सीप का उपयोग किया जाता है। इस प्रजाति के सीपो के लिए भारत की जलवायु अनुकूल हैं और ये उच्च गुणवत्ता के मोती प्रदान करते है। सीप का चयन करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि–

  • सीप का आकार पर्याप्त बड़ा होना चाहिए।
  • सीप आमतौर पर 2 से 3 साल पुरानी होनी चाहिए।
  • सीप का स्वास्थ्य अच्छा और उसका खोल मजबूत होना चाहिए।
  • यह कमजोर नहीं होना चाहिए।

Step 2. मोती की खेती के लिए सही स्थान का चयन

मोती की खेती करने के लिए एक सही स्थान, वातावरण और पानी की गुणवत्ता, सबसे महत्वपूर्ण कारक है। सीप पानी को फिल्टर करती हैं और प्रदूषित पानी उनके स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। पानी का तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए क्योंकि इसी तापमान पर सीप सबसे अच्छे से नैक्र का स्राव करती हैं। पानी में पर्याप्त ऑक्सीजन और हल्की सी बहाव भी जरूरी है इससे सीप को सांस लेने और आवश्यक पोषक पदार्थ प्राप्त करने में समस्या नहीं होती।

Step 3. सर्जरी के लिए तैयार करना

मोती निर्माण के सर्जरी से पहले सीपों को 10 से 15 दिन तक विशेष टैंकों में रखा जाता है जहां पानी की गुणवत्ता पूरी तरह नियंत्रित होती है। इस समय को पूर्व-अनुकूलन या कंडीशनिंग कहा जाता है। इस दौरान सीपों को प्राकृतिक आहार जैसे सूक्ष्म शैवाल आदि दिया जाता है। यह आहार सीप को मजबूत बनाता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इस पानी को हर 2 से 3 दिन में बदलना जरूरी है और नियमित जांच के बाद स्वस्थ सीपों को सर्जरी के लिए चुन लिया जाता है।

Step 4. न्यूक्लियस प्रत्यारोपण सर्जरी की प्रक्रिया

न्यूक्लियस प्रत्यारोपण, मोती की खेती का सबसे महत्वपूर्ण और नाजुक चरण है। सबसे अनुभवी तकनीशियन ही सीप को सावधानीपूर्वक पकड़ते हैं और एक विशेष उपकरण की मदद से खोल को थोड़ा खोलते हैं। खोल को पूरी तरह खोलने की जरूरत नहीं होती है केवल इतना ही खोला जाता है जितने में अंदर काम किया जा सके।

फिर सीप के मेंटल ऊतक में एक छोटा चीरा लगाया जाता है। इस चीरे के माध्यम से एक गोल को न्यूक्लियस सावधानीपूर्वक डाला जाता है। यह न्यूक्लियस आमतौर शंख के खोल से बनाया जाता है क्योंकि इसकी संरचना सीप के खोल के समान होती है। न्यूक्लियस के साथ ही एक दूसरी सीप के मेंटल ऊतक का एक छोटा टुकड़ा भी डाला जाता है। यह ऊतक का टुकड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यही न्यूक्लियस के चारों ओर पर्ल सैक बनाता है और नैक्र का स्राव करना शुरू करता है।

सर्जरी के बाद सीपों को एक खास टैंक में रखा जाता है, जहां कुछ सीप संक्रमण के वजह से मर जाते हैं और वही जो स्वस्थ रहती हैं उन्हें तालाब में छोड़ दिया जाता है। फिर एक से डेढ़ साल में यह स्वस्थ्य सीप 5 से 7 मिलीमीटर तक के मोती प्रदान कर देती है। भारत में मोती की खेती 1970 के दशक में शुरू हुई। आज आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा और केरल जैसे राज्यों में मोती की खेती बड़े पैमाने पर होती है। भारत मुख्य रूप से मीठे पानी के मोती का उत्पादन करता है।

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