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Malhar Pataleshwar Shiv Mandir: यहां शिवलिंग पर चढ़ाया जल अपने आप हो जाता है गायब, जानिए पातालेश्वर शिव मंदिर का इतिहास

Malhar Pataleshwar Shiv Mandir: पातालेश्वर (केदारेश्वर) शिव मंदिर, मल्हार छत्तीसगढ़ के इतिहास और धार्मिक परंपरा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि कलात्मक और स्थापत्य दृष्टि से भी अद्वितीय माना जाता है। मंदिर का मुख्य आकर्षण इसका गर्भगृह है, जो ज़मीन के स्तर से 10 फीट नीचे स्थित होने के कारण इसे “पातालेश्वर” का नाम मिला। इसका शाब्दिक अर्थ है “पाताल लोक का स्वामी”, जो इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग पहचान देता है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग काले चमकदार पत्थर का है और इसका रूप भक्तों को एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

Malhar Pataleshwar Shiv Mandir: यहां शिवलिंग पर चढ़ाया जल अपने आप हो जाता है गायब, जानिए पातालेश्वर शिव मंदिर का इतिहास
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By Chirag Sahu

Malhar Pataleshwar Shiv Mandir: पातालेश्वर (केदारेश्वर) शिव मंदिर, मल्हार छत्तीसगढ़ के इतिहास और धार्मिक परंपरा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि कलात्मक और स्थापत्य दृष्टि से भी अद्वितीय माना जाता है। मंदिर का मुख्य आकर्षण इसका गर्भगृह है, जो ज़मीन के स्तर से 10 फीट नीचे स्थित होने के कारण इसे “पातालेश्वर” का नाम मिला। इसका शाब्दिक अर्थ है “पाताल लोक का स्वामी”, जो इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग पहचान देता है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग काले चमकदार पत्थर का है और इसका रूप भक्तों को एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

पातालेश्वर शिव मंदिर का इतिहास

पातालेश्वर शिव मंदिर का निर्माण लगभग बारहवीं सदी के आसपास हुआ था। यह मंदिर उस समय के कुलचुरी शासक जाजल्लदेव द्वितीय के शासनकाल में स्थापित किया गया था। इसके निर्माण में मुख्य भूमिका एक ब्राह्मण, सोमराज, द्वारा निभाई गई। मल्हार नगर स्वयं प्राचीन काल से महत्वपूर्ण रहा है, और यहां दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से ही मूर्तियाँ, शिलालेख और धार्मिक संरचनाएँ मिलती रही हैं। मंदिर का निर्माण केवल एक धार्मिक स्थल के रूप में ही नहीं, बल्कि स्थापत्य और कलात्मक उत्कृष्टता को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से भी किया गया। मंदिर का नाम बदलकर पातालेश्वर रखा गया, क्योंकि इसका गर्भगृह ज़मीन के नीचे स्थित है और शिवलिंग को नीचे की ओर स्थित माना गया।

मंदिर की वास्तुकला

पातालेश्वर शिव मंदिर की वास्तुकला विशेष रूप से भुमिजा शैली में बनाई गई है। मंदिर का शिखर और अधिष्ठान इस शैली के परंपरागत नियमों के अनुसार निर्मित हैं। मंदिर एक ऊँचे प्लेटफार्म पर स्थित है और इसके प्रवेश द्वार तीन दिशाओं — पूर्व, दक्षिण और उत्तर में हैं। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग भक्तों को गहरी आध्यात्मिक अनुभूति देता है और इसका काला चमकदार पत्थर और गोमुखी आकार इसे और भी प्रभावशाली बनाता है। मंदिर के द्वारों और द्वारजाम्बों पर गंगा, यमुना और नर्मदा जैसी नदियों के प्रतीकात्मक अंकन दिखाई देते हैं, जबकि अधिष्ठान पर हाथियों की पंक्तियाँ, फूलों और पौराणिक कथाओं की कलाकृतियाँ मंदिर की भव्यता को और बढ़ाती हैं। यह स्थापत्य संयोजन मंदिर को न केवल धार्मिक बल्कि कलात्मक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है। मंदिर के गर्भगृह में 108 कोण बने हुए है। इस मंदिर की एक और विशेषता है कि यहां चढ़ाया गया जल अपने आप ही गायब हो जाता है। यहां महाशिवरात्रि में 15 दिन का मेला भी लगता है।

पातालेश्वर शिव मंदिर की वर्तमान स्थिति

आज पातालेश्वर शिव मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देख-रेख में है और इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है। मंदिर का अधिकांश निचला भाग सुरक्षित रूप से संरक्षित है, जबकि ऊपरी हिस्से अब अवशेष स्वरूप में हैं। मंदिर परिसर में एक संग्रहालय भी स्थापित किया गया है, जहाँ मंदिर से प्राप्त मूर्तियाँ, शिलालेख और अन्य कलात्मक अवशेष प्रदर्शित हैं। धार्मिक दृष्टि से मंदिर आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से श्रावण मास और महा शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या देखी जाती है।

मंदिर तक पहुँच मार्ग

मल्हार बिलासपुर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बिलासपुर शहर से निजी वाहन, टैक्सी या बस के माध्यम से मंदिर पहुँचा जा सकता है। मुख्य सड़क मार्ग Bilaspur–Malhar Road है, जो सीधी कनेक्टिविटी प्रदान करता है। सड़क मार्ग से पहुँचने में लगभग 1 से 1.5 घंटे का समय लगता है। सबसे नज़दीकी प्रमुख रेलवे स्टेशन Bilaspur Junction है, जो पूरे देश के बड़े शहरों जैसे रायपुर, नागपुर, दिल्ली और मुंबई से जुड़ा हुआ है।

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