Madwa Mahal and Cherki Mahal: यहां बनी हैं कामसूत्र से प्रेरित मूर्तियां, मंदिर से आती है बकरे की गंध, जानिए मड़वा महल और छेरकी महल का इतिहास
Madwa Mahal and Cherki Mahal: छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक भूमि में कई प्राचीन मंदिर और महल बिखरे पड़े हैं, जो राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। इनमें से मड़वा महल और छेरकी महल विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.

Madwa Mahal and Cherki Mahal: छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक भूमि में कई प्राचीन मंदिर और महल बिखरे पड़े हैं, जो राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। इनमें से मड़वा महल और छेरकी महल विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जो कबीरधाम जिले के कवर्धा क्षेत्र में स्थित हैं। ये दोनों स्थल भोरमदेव मंदिर परिसर के निकट हैं और 14वीं शताब्दी के आसपास निर्मित बताए जाते हैं।
मड़वा महल एक विवाह स्मृति से जुड़ा शिव मंदिर है, जबकि छेरकी महल चरवाहों की परंपराओं से संबंधित एक साधारण लेकिन आकर्षक संरचना है। ये महल न केवल वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय लोककथाओं, राजवंशों और समुदायों की कहानियों को भी जीवंत रखते हैं। इनकी खोज यात्रियों को अतीत की झलक दिखाती है, जहां राजसी वैभव और ग्रामीण जीवन का मिश्रण देखने को मिलता है।
मड़वा महल: जानिए इतिहास।
मंदिर से प्राप्त शिलालेख से पता चलता है कि मड़वा महल का निर्माण 1349 ईस्वी में हुआ था। यह महल नागवंशी राजा रामचंद्र देव और हैहयवंशी रानी अंबिका देवी के विवाह की स्मृति में बनवाया गया था। स्थानीय किंवदंतियों में इसे एक नागा राजा और हैहय रानी के विवाह से जोड़ा जाता है। हालांकि नामों में कुछ अस्पष्टता है। कुछ स्रोतों में संरक्षक के रूप में गोपालदेव (1088 ईस्वी) का नाम लिया जाता है। यह मंदिर मूल रूप से शिव को समर्पित था, लेकिन इसका नाम "मड़वा" या "मंडवा" मंडप की आकृति से पड़ा, जो विवाह के दौरान लगाए जाने वाले मंडप जैसा दिखता है। इसे दुल्हा देव मंदिर भी कहा जाता है, गोंड समुदाय द्वारा यह नाम दिया गया।
मड़वा महल: जानिए निर्माण शैली
मड़वा महल की वास्तुकला नागर शैली की है, जिसमें एक खुला मंडप और गर्भगृह शामिल है। मंडप 31 फीट वर्गाकार है, जो 16 मजबूत स्तंभों पर टिका हुआ है। ये स्तंभ चौकोर आधार वाले हैं, जिनमें हेक्सागोनल गर्दन और गोलाकार शीर्ष हैं। मंडप के केंद्र में नंदी की मूर्ति है, जो शिव की ओर प्रार्थना मुद्रा में है। गर्भगृह मंडप से नीचे स्तर पर स्थित है, जो 14 फीट वर्गाकार है, और इसमें शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग पर एक लकड़ी की छड़ी है, जिस पर भक्त अपनी मन्नतें पूरी होने पर नारियल लटकाते हैं।
बाहरी दीवारों पर 54 ऐसी मूर्तियां हैं, जो कामसूत्र से प्रेरित लगती हैं और नागवंशी राजाओं की तांत्रिक संस्कृति को दर्शाती हैं। प्रवेश द्वार पर पारंपरिक अलंकरण हैं, और शिखर कुछ जर्जर हो चुका है, जिसकी मरम्मत की गई है। मंदिर पश्चिम मुखी है और पूरी तरह पत्थर से निर्मित है, हालांकि कुछ हिस्सों में ईंट का उपयोग भी दिखता है।
छेरकी महल: जानिए इतिहास।
छेरकी महल शंकारी घाटी में स्थित है, जो भोरमदेव परिसर और मड़वा महल के बीच पड़ता है। स्थानीय किंवदंती के अनुसार, इसे 14वीं शताब्दी में एक नागा प्रमुख ने बनवाया था, और यह शिव से जुड़ा हुआ है। "छेरकी" स्थानीय बोली में चरवाहे को कहते हैं, और माना जाता है कि यह मंदिर क्षेत्र के चरवाहा समुदायों के लिए बनाया गया था। इतिहास में इसका उल्लेख कम है, लेकिन यह भी फणी नागवंश की स्थापत्य परंपराओं से जुड़ा है और आज भी स्थानीय समुदायों से इसका गहरा संबंध है।
छेरकी महल: जानिए निर्माण शैली
छेरकी महल एक पूर्व मुखी ईंट और पत्थर की संरचना है, जिसमें बाहरी अलंकरण बिल्कुल नहीं है। इसमें केवल गर्भगृह है, जहां शिवलिंग स्थापित है। शिखर ऊंचा पिरामिडाकार है। प्रवेश द्वार ही एकमात्र सज्जित हिस्सा है, जिसमें पांच शाखाएं हैं। द्वार की छत पर गणेश, गजलक्ष्मी और अर्धनारीश्वर की मूर्तियां हैं, जबकि आधार पर द्वारपाल और नदी देवियां चित्रित हैं। शिवलिंग के चारों ओर टूटे पत्थर हैं जो संतों की स्मृति में हैं। छत पर विशिष्ट कमल सज्जा है, जो इसे आकर्षक बनाती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में बकरियों की खुशबू आती है।
कैसे पहुंचे मड़वा महल और छेरकी महल
मड़वा महल और छेरकी महल छत्तीसगढ़ के उन छिपे रत्नों में से हैं, जो वास्तुकला, इतिहास और संस्कृति का अनोखा संगम पेश करते हैं। एक विवाह की स्मृति और दूसरा चरवाहों का आश्रय, ये दोनों स्थल राज्य की विविधता को उजागर करते हैं।
राज्य सरकार द्वारा संरक्षित होने से इनकी देखभाल होती रहती है। कवर्धा से भोरमदेव मंदिर की दूरी करीब 18 किलोमीटर है और सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। मड़वा महल भोरमदेव मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर है, वहीं छेरकी महल, मंदिर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 1 किलोमीटर दूर स्थित है।
