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LVM3-M5 Rocket Launch: 4410 किलोग्राम वजनी 'बाहुबली' रॉकेट हुआ लॉन्च; अब तक का सबसे भारी उपग्रह, इसरो ने रचा इतिहास

LVM3-M5 Launch: भारत में इसरो के वैज्ञानिकों ने फिर एक करिश्मा कर दिखाया है। वैज्ञानिकों ने आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्चपैड से एलवीएम3-एम5 रॉकेट को सफलता पूर्वक लॉन्च किया

LVM3-M5 Rocket Launch: 4410 किलोग्राम वजनी बाहुबली रॉकेट हुआ लॉन्च; अब तक का सबसे भारी उपग्रह, इसरो ने रचा इतिहास
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By Chirag Sahu

LVM3-M5 Launch: भारत में इसरो के वैज्ञानिकों ने फिर एक करिश्मा कर दिखाया है। वैज्ञानिकों ने आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्चपैड से एलवीएम3-एम5 रॉकेट को सफलता पूर्वक लॉन्च किया। इस रॉकेट द्वारा देश के अब तक के सबसे भारी संचार उपग्रह सीएमएस-03 को लेकर उड़ान भरा गया है। लगभग 4410 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

'Bahubali' Rocket की ताकत

LVM3 को इसके भारवाहन क्षमता के लिए 'बाहुबली' नाम दिया है और यह नाम बिल्कुल सटीक बैठता है। 43.5 मीटर की ऊंचाई वाला यह विशालकाय रॉकेट जब लॉन्चपैड पर खड़ा होता है तो 14 मंजिला इमारत जैसा दिखता है। इसका कुल वजन लिफ्टऑफ के समय 642 टन होता है, जो लगभग सौ हाथियों के वजन के बराबर है। यह भारत का सबसे शक्तिशाली और विश्वसनीय प्रक्षेपण यान है जो लो अर्थ ऑर्बिट में 8000 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकता है।

इस रॉकेट की इंजीनियरिंग बेहद जटिल है। यह तीन अलग-अलग चरणों में काम करता है और हर चरण की अपनी खासियत है। सबसे पहले दो विशाल सॉलिड मोटर स्ट्रैप-ऑन एस200 रॉकेट को जमीन से ऊपर उठाने का काम करते हैं। इसके बाद लिक्विड प्रोपेलेंट कोर स्टेज एल110 रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाता है। अंत में सबसे जटिल और महत्वपूर्ण क्रायोजेनिक स्टेज सी25 काम में आता है जो अत्यधिक ठंडे ईंधन पर चलता है और उपग्रह को उसकी सटीक कक्षा में स्थापित करता है।

CMS-03 Satellite: नौसेना के लिए उपयोगी

सीएमएस-03 उपग्रह को खास तौर पर भारतीय नौसेना की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसे GSAT-7R के नाम से भी जाना जाता है और यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से बना है। जब युद्धपोत, पनडुब्बियां और नौसैनिक विमान समुद्र की गहराइयों में या आसमान में होते हैं, तो उन्हें मुख्यालय से निरंतर संपर्क में रहना जरूरी होता है। सीएमएस-03 इसी काम के लिए बनाया गया है। यह सैटेलाइट पूरे हिंद महासागर क्षेत्र को कवर करेगा।

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