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Kya Hai Ghotul Pratha: क्या है घोटुल प्रथा? जिसमें कुंवारे लड़के और लड़कियां रहते हैं साथ-साथ

Kya Hai Ghotul Pratha: भारत की धरती विविध परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों से भरी हुई है इन्हीं में से एक बेहद अनोखी और विशिष्ट परंपरा है घोटुल। यह परंपरा मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, बस्तर के गोंड , मुरिया और मारिया जनजाति के बीच देखने को मिलती है।

Ghotul Tradition in Tribes
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By Chirag Sahu

Kya Hai Ghotul Pratha: भारत की धरती विविध परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों से भरी हुई है इन्हीं में से एक बेहद अनोखी और विशिष्ट परंपरा है घोटुल। यह परंपरा मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, बस्तर के गोंड , मुरिया और मारिया जनजाति के बीच देखने को मिलती है। घोटुल केवल एक झोपड़ी या भवन नहीं है बल्कि यह एक संस्था (Institution) है जो समाज के युवाओं को जीवन जीने की कला सिखाती है। इसे सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत शिक्षा का अनौपचारिक विद्यालय कहा जा सकता है।

घोटुल का परिचय

घोटुल वास्तव में युवाओं का एक आश्रय स्थल या युवागृह (Youth Dormitory) है। यहां अविवाहित लड़के और लड़कियां मिलकर रहते हैं और जीवन की बुनियादी शिक्षा प्राप्त करते हैं यह व्यवस्था आदिवासी समाज के मान्यताओं के अनुरूप पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। समाज के भीतर इसे पूरी तरह मान्यता प्राप्त है और यह युवाओं के सर्वांगीण विकास का केंद्र माना जाता है।

घोटुल की संरचना और स्थान

घोटुल आमतौर पर गांव के किनारे या खुले क्षेत्र में बनाया जाता है। इसकी संरचना साधारण होती है जिसमें लकड़ी, बांस और मिट्टी आदि का उपयोग करके एक झोपड़ी नुमा संरचना तैयार की जाती है। इसके आसपास एक खुला स्थान होता है जहां सामूहिक गतिविधियां होती हैं। यह स्थान युवाओं के लिए सामाजिक जीवन का केंद्र होता है।

घोटुल के सदस्य और संगठन

घोटुल में शामिल होने वाले लड़कों को चेलिक (Chelik) और लड़कियों को मोटियारी (Motiari) कहा जाता है। संगठन की जिम्मेदारी समूह के वरिष्ठ लड़के और लड़की के हाथ में होती है जिन्हें आमतौर पर प्रमुख या अगुआ माना जाता है। इस व्यवस्था का उद्देश्य केवल साथ रहने तक सीमित नहीं है बल्कि यहां हर सदस्य को अनुशासन, जिम्मेदारी और सामाजिक मूल्यों का पालन करना होता है।

घोटुल का उद्देश्य और महत्व

घोटुल का मूल उद्देश्य युवा पीढ़ी को सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के लिए तैयार करना है यहां उन्हें कई प्रकार की शिक्षा दी जाती है जैसे

• नैतिक और सामाजिक शिक्षा

• सांस्कृतिक प्रशिक्षण

• लैंगिक शिक्षा

• जीवन साथी का चयन

• समुदाय सेवा

घोटुल से जुड़ी परंपराएँ और मान्यताएँ

घोटुल का संबंध एक प्राचीन आदिवासी देवता लिंगो से जोड़ा जाता है। जिनके बारे में मान्यता है कि उन्होंने पहली बार घोटुल की स्थापना की। इस संस्था में नियम कानून स्पष्ट होते हैं। सहमति का विशेष महत्व है और किसी भी प्रकार का दबाव अस्वीकार्य है। विवाहित महिलाएं यहां भाग नहीं लेती। यह स्थान केवल अविवाहित युवाओं के लिए ही निर्धारित है। घोटुल में शामिल होने के लिए लड़कों की उम्र 21 वर्ष व लड़कियों की उम्र 18 वर्ष तय की गई है। जिन्हें घोटुल में 7 दिनों तक साथ रहना होता है और अपने लिए साथी चुनने का अवसर दिया जाता है। घोटुल को कई लोगों द्वारा आदिवासियों का नाइट क्लब भी कहा जाता है।

घोटुल परंपराओं में बदलाव

समय के साथ घोटुल की परंपरा भी काफी बदल रही है आधुनिक शिक्षा, धार्मिक प्रभाव और बाहरी संस्कृतियों के आगमन से यह संस्था धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। कई स्थानों पर घोटुल अब केवल और लोक कथाओं का हिस्सा बन गई है फिर भी कुछ गांव में यह परंपरा आज भी जीवित है और वहां यह युवकों को समाज से जोड़ने का प्रमुख कार्य कर रही है।

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