Uprastrapati Chunav Prakriya: कैसे चुने जाते हैं उपराष्ट्रपति? जानिए प्रक्रिया, योग्यता, कार्यकाल, समेत पूरी जानकारी..
Uprastrapati Chunav Prakriya: भारत में राष्ट्रपति के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद उपराष्ट्रपति का होता है। यह पद संविधान के अनुच्छेद 63 से 71 और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के तहत परिभाषित है। उपराष्ट्रपति देश के उच्च सदन यानी राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में यह कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है। इस लेख में हम उपराष्ट्रपति के चुनाव प्रक्रिया, मतदान पद्धति और किन लोगों द्वारा चुना जाता है यह सब देखने वाले है।

Uprastrapati Chunav Prakriya: भारत में राष्ट्रपति के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद उपराष्ट्रपति का होता है। यह पद संविधान के अनुच्छेद 63 से 71 और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के तहत परिभाषित है। उपराष्ट्रपति देश के उच्च सदन यानी राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में यह कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है। इस लेख में हम उपराष्ट्रपति के चुनाव प्रक्रिया, मतदान पद्धति और किन लोगों द्वारा चुना जाता है यह सब देखने वाले है।
उपराष्ट्रपति के पद का महत्व
भारत के संवैधानिक निकायों में उपराष्ट्रपति का पद विशेष स्थान रखता है। यह देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। इस भूमिका में वह राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है, चर्चाओं को नियंत्रित करता है और मतदान के दौरान व्यवस्था बनाए रखता है। अनुपस्थित राष्ट्रपति के जगह पर 6 महीने के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, जिसके बाद नए राष्ट्रपति का चुनाव अनिवार्य है। इस तरह, उपराष्ट्रपति का पद न केवल विधायी बल्कि कार्यकारी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। उपराष्ट्रपति को ₹4 लाख प्रति महीना और अन्य भक्तों जैसी सुविधा प्राप्त होती है।
उपराष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति का चुनाव भारत के केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा आयोजित किया जाता है, जो देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए जिम्मेदार है। इस प्रक्रिया की देखरेख के लिए सुप्रीम कोर्ट का कोई न्यायाधीश या वरिष्ठ अधिकारी रिटर्निंग ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया जाता है। रिटर्निंग ऑफिसर नामांकन पत्रों की जांच, मतदान और मतगणना की प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होती है और संवैधानिक नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है। चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि मतदान और मतगणना में किसी भी प्रकार की अनियमितता न हो।
मतदाता कौन होते हैं
उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान का अधिकार केवल संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों को होता है। इसमें निर्वाचित और मनोनीत दोनों प्रकार के सांसद शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया राष्ट्रपति के चुनाव से अलग है, क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्वाचित विधायक भी वोट डालते हैं, जबकि उपराष्ट्रपति चुनाव में विधायकों की कोई भूमिका नहीं होती। वर्तमान में लोकसभा में अधिकतम 543 और राज्यसभा में 245 सदस्य हो सकते हैं, जिससे कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 788 होती है। हालांकि, यह संख्या रिक्तियों या अन्य कारणों से बदल सकती है। प्रत्येक सांसद का वोट समान मूल्य का होता है, जो राष्ट्रपति चुनाव की मत मूल्य प्रणाली से भिन्न है।
उम्मीदवार की योग्यता
अन्य चुनावों की तरह उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी उम्मीदवारों की योग्यता तय होती है। यह सख्त शर्तें सुनिश्चित करती हैं कि केवल योग्य और उपयुक्त व्यक्ति ही इस पद के लिए उम्मीदवारी पेश कर सकें। जो कुछ इस प्रकार से है–
• भारत का नागरिक होना चाहिए और उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
• उम्मीदवार को राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखनी चाहिए, जैसा कि संविधान में उल्लेखित है।
• नामांकन के लिए कम से कम 20 सांसदों को प्रस्तावक और 20 सांसदों को अनुमोदक के रूप में हस्ताक्षर करना होता है।
• उम्मीदवार को 15,000 रुपये की जमानत राशि भी जमा करनी होती है, जो वैध मतों की न्यूनतम संख्या प्राप्त न करने पर जब्त हो सकती है।
• उम्मीदवार किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए, सिवाय उन पदों के जो संविधान द्वारा छूट प्राप्त हैं।
नामांकन और मतदान प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति का चुनाव गुप्त मतपत्र के माध्यम से होता है, जिससे मतदाताओं की गोपनीयता बनी रहती है। नामांकन प्रक्रिया में उम्मीदवार को निर्धारित प्रारूप में नामांकन पत्र दाखिल करना होता है, जिसे रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा जांचा जाता है। यदि नामांकन पत्र में कोई त्रुटि होती है, तो उसे खारिज किया जा सकता है। उम्मीदवार निर्धारित समय के भीतर अपना नामांकन वापस भी ले सकता है। मतदान के दौरान एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote - STV) और अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति का उपयोग किया जाता है। इसमें सांसद अपने मतपत्र पर उम्मीदवारों को वरीयता क्रम (1, 2, 3…) में चिह्नित करते हैं। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि मतदाताओं की प्राथमिकताओं का उचित प्रतिनिधित्व हो।
चुनाव की यह पद्धति बाकी चुनाव पद्धति से काफी अलग होती है। उदाहरण के लिए बाकी चुनाव पद्धति में यह होता है कि मान लीजिए चुनाव में लगभग 10 उम्मीदवार खड़े हैं और हम जब वोट देते हैं तो केवल एक उम्मीदवार को चुनते हैं परंतु उपराष्ट्रपति के चुनाव पद्धति में ऐसा नहीं होता है। इस चुनाव पद्धति में उपराष्ट्रपति के लिए जितने उम्मीदवार खड़े होते हैं हम वरीयता क्रम से सभी को वोट देते है और मत मूल्यों के द्वारा पड़े वोटो की गिनती होती है।
मतगणना की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति की मतगणना प्रक्रिया भी काफी खास है। इसके पहले चरण में सभी मत पत्रों की गिनती की जाती है और सभी उम्मीदवारों को मिले पहली वरीयता के वोटो की संख्या देखी जाती है। उपराष्ट्रपति का पद जीतने के लिए उम्मीदवार को 50%+1 यानी आधे से अधिक वोट चाहिए होता है। यदि पहले चरण में कोई उम्मीदवार बहुमत प्राप्त नहीं करता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर किया जाता है और उनके मतपत्रों पर दी गई दूसरी वरीयता के आधार पर वोटों का पुनर्वितरण होता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कोई उम्मीदवार बहुमत प्राप्त नहीं कर लेता। यदि दो उम्मीदवारों के बीच बराबरी की स्थिति बनती है, तो रिटर्निंग ऑफिसर लॉटरी के माध्यम से विजेता का चयन कर सकता है।
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल और उसे हटाने की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। यह कार्यकाल उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की तारीख से शुरू हो जाती है। उपराष्ट्रपति अपने 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से चुनाव लड़ना चाहे तो लड़ सकता है। उपराष्ट्रपति चाहे तो अपने पद को, राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर छोड़ सकता है। यदि मृत्यु आदि के कारणवश उपराष्ट्रपति का पद खाली होता है तो 6 महीने के भीतर इसे भरना आवश्यक है।
उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। राज्यसभा में इस प्रस्ताव को लाने पर विशेष बहुमत द्वारा पारित करना आवश्यक है। इसके लिए 14 दिन पहले से नोटिस दिया जाता है। विशेष बहुमत का अर्थ होता है सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों का दो तिहाई मत। अगर विशेष बहुमत द्वारा अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है तो वह राज्यसभा से पारित हो जाता है फिर इसे लोकसभा की मंजूरी के लिए भेज दिया जाता है जहां लोकसभा के मंजूरी के बाद उपराष्ट्रपति को अपना पद छोड़ना पड़ता है। यह काफी जटिल प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करती है कि उपराष्ट्रपति का पद काफी सम्मानजनक पद होता है जिसमें बैठे व्यक्ति भी सम्माननीय होते हैं इसलिए उन्हें हटाना थोड़ा मुश्किल है।
