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Jhiri Village bharat ka Sanskrit gaon: एक ऐसा गांव जहां लोग गुड मॉर्निंग की जगह बोलते हैं संस्कृत में ’नमो नमः’, घर-घर में बोली जाती है संस्कृत भाषा...

Jhiri Village bharat ka Sanskrit gaon: क्या आपने कभी दो लोगों को लड़ते वक्त संस्कृत में गाली देते हुए देखा है? क्या आपको भी ऐसा लगता है की संस्कृत बोलना और लिखना काफी कठिन है? तो इस गांव के लिए यह वाक्य सार्थक सिद्ध नहीं होती, क्योंकि आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे गांव के बारे में जहां आम बोलचाल की भाषा संस्कृत है।

Jhiri Village bharat ka Sanskrit gaon: एक ऐसा गांव जहां लोग गुड मॉर्निंग की जगह बोलते हैं संस्कृत में ’नमो नमः’,  घर-घर में बोली जाती है संस्कृत भाषा...
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By Chirag Sahu

Jhiri Village bharat ka Sanskrit gaon: क्या आपने कभी दो लोगों को लड़ते वक्त संस्कृत में गाली देते हुए देखा है? क्या आपको भी ऐसा लगता है की संस्कृत बोलना और लिखना काफी कठिन है? तो इस गांव के लिए यह वाक्य सार्थक सिद्ध नहीं होती, क्योंकि आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे गांव के बारे में जहां आम बोलचाल की भाषा संस्कृत है। इस गांव के छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं, बड़े–बूढ़े तक सभी संस्कृत में ही बात करते हैं। यहां के लोग अपने घरों के नाम संस्कृत में रखते है और बुनियादी शिक्षा भी संस्कृत भाषा में ही दी जाती है। यह गांव मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में स्थित है। आइए समझते हैं कि यह साधारण गांव कैसे संस्कृत भाषी गांव बन गया...

इस गांव में अनोखी है मेहमान नवाजी

झिरी गांव में सुबह की शुरुआत बिल्कुल अलग तरीके से होती है। हम ऐसा इसलिए कह रहे है क्योंकि जब आप सुबह उठते है या किसी से मिलते है तो सबसे पहले लोगों को गुड मॉर्निंग कहते हैं, लेकिन वहीं झिरी गांव में हर कोई नमो नमः कहकर अभिवादन करता है। ऐसा करने वाले गांव में सिर्फ एक ही धर्म के नहीं है बल्कि गांव में रहने वाले हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग इसी तरह से एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। यह बात इस गांव की खासियत है कि यहां भाषा को लेकर मनमुटाव नहीं है, यहां तक कि घरेलू विवाद भी संस्कृत में ही होते हैं और देववाणी संस्कृत को आज भी जीवित रखा गया है।

यहां संस्कृत भाषा में चलता है जीवन

झिरी गांव में संस्कृत भाषा को लेकर लोग इतने सजग है कि इन्होंने यहां किताबों और कक्षाओं के साथ-साथ रोजमर्रा की जिंदगी में भी एक दूसरे से बात करने के लिए उपयोग करते हैं।

यदि गांव की दुकानों पर जाइए तो दुकानदार ग्राहक से कहता है ’किं इच्छसि’ जिसका अर्थ है क्या चाहिए। खेतों में काम करने वाले किसान भी आपस में संस्कृत में ही बातचीत करते हैं। भाषा को लेकर यह गांव अन्य गांव या शहरों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।

कैसे हुआ इस गांव में संस्कृत भाषा का प्रचलन

आज हम जिस गांव को संस्कृत गांव के नाम से जानते हैं वह कुछ समय पहले एक सामान्य गांव हुआ करता था जहां संस्कृत का प्रचलन बिल्कुल भी नहीं था लेकिन इस गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) लगभग 70 के दशक से ही सक्रिय है और 2003 में संघ की एक बैठक में यह तय किया गया कि इस गांव को बाकियों से कुछ अलग बनाना है।

इसके लिए उन्होंने भाषा को माध्यम बनाया और गांव के बच्चों बच्चों तक संस्कृत की शिक्षा पहुंचाई गई। शुरुआत में इसके लिए दो संस्कृत के विद्वान विमला पन्ना और बाला प्रसाद तिवारी को बुलाया गया। इन्होंने सन 2004 से नियमित इस गांव के लोगों को संस्कृत की शिक्षा प्रदान की और धीरे-धीरे यह पूरा गांव संस्कृत भाषी बन गया। मध्य प्रदेश के पाठ्य पुस्तकों में भी इस गांव का उल्लेख किया गया है जो यहां के ग्रामीणों के लिए काफी गर्व की बात है।

भारत के दो संस्कृत भाषी गांव

पूरे भारत में केवल दो गांव ऐसे हैं जहां संस्कृत को सामान्य बोलचाल की भाषा में उपयोग किया जाता है। पहला है कर्नाटक राज्य का मत्तूर गांव और दूसरा है मध्य प्रदेश का झिरी गांव। ये दोनों गांव पूरे देश के लिए एक आदर्श बन गए हैं।

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