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History of Ratanpur Mahamaya Temple: रतनपुर महामाया मंदिर का गौरवशाली इतिहास

History of Ratanpur Mahamaya Temple: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित रतनपुर, प्राचीन समय से ही धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। यहाँ का प्रसिद्ध महामाया मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के इतिहास और कलचुरी वंश की वैभवशाली परंपरा का भी प्रतीक है। यह मंदिर शक्ति पूजा का एक प्राचीन और प्रमुख स्थान है, जहाँ देवी महामाया को समर्पित अद्भुत स्थापत्य और धार्मिक महत्व समाहित है। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था,इसलिए मंदिर को 51 शक्ति पीठों में एक माना जाता है। मंदिर के प्रांगड़ में एक अखंड ज्योति कलश स्थापित है जो सन् 1986 से अब तक जल रहा है।

History of Ratanpur Mahamaya Temple: रतनपुर महामाया मंदिर का गौरवशाली इतिहास
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By Chirag Sahu

History of Ratanpur Mahamaya Temple: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित रतनपुर, प्राचीन समय से ही धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। यहाँ का प्रसिद्ध महामाया मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के इतिहास और कलचुरी वंश की वैभवशाली परंपरा का भी प्रतीक है। यह मंदिर शक्ति पूजा का एक प्राचीन और प्रमुख स्थान है, जहाँ देवी महामाया को समर्पित अद्भुत स्थापत्य और धार्मिक महत्व समाहित है। महामाया मंदिर में माता का दाहिना स्कंध गिरा था,इसलिए मंदिर को 51 शक्ति पीठों में एक माना जाता है। मंदिर के प्रांगड़ में एक अखंड ज्योति कलश स्थापित है जो सन् 1986 से अब तक जल रहा है।

मंदिर की स्थापना

इतिहासकार मानते हैं कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 11वीं शताब्दी में कलचुरी शासक राजा रत्नदेव प्रथम ने की थी। राजा ने अपनी राजधानी तुम्माण से स्थानांतरित करके रतनपुर बसाया और यहीं देवी महामाया की स्थापना की। कहा जाता है कि राजा को यहीं देवी का दर्शन हुआ, जिसके बाद उन्होंने इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।

प्रारंभ में मंदिर तीन देवियों—महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी को समर्पित था। समय के साथ परिवर्तन हुए और 15वीं शताब्दी में राजा बाहरेंद्र साय के शासनकाल में इसका पुनर्निर्माण हुआ। तब से यह मंदिर मुख्य रूप से महासरस्वती और महालक्ष्मी के लिए प्रसिद्ध हुआ, जबकि महाकाली का स्वरूप यहाँ से अलग माना गया।

स्थापत्य की भव्यता

महामाया मंदिर नागर शैली में निर्मित है, जो उत्तर भारत के मंदिर वास्तुकला की विशिष्ट शैली है। यह मंदिर उत्तर दिशा की ओर मुख किए हुए एक विशाल जलाशय के किनारे स्थित है। चारों ओर मजबूत दीवारें और 16 विशाल पत्थर के स्तंभ इसकी सुंदरता और मजबूती को दर्शाते हैं।

गर्भगृह में देवी की अद्भुत डुअल प्रतिमा स्थापित है। सामने के भाग में महिषासुर मर्दिनी स्वरूप की प्रतिमा है, जबकि पीछे देवी सरस्वती का स्वरूप विराजमान है। यह द्विमुखी प्रतिमा मंदिर को विशिष्ट और अद्वितीय बनाती है।

मंदिर परिसर में अन्य देवताओं के भी कई छोटे मंदिर हैं, जिनमें महाकाली, भद्रकाली, सूर्य देव, भगवान विष्णु, हनुमान, भैरव और शिव की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। यह पूरा क्षेत्र एक जीवंत धार्मिक संकुल के रूप में विकसित हुआ, जहाँ हर दिशा से भक्ति और आस्था की धारा बहती है।

रतनपुर का ऐतिहासिक महत्व

रतनपुर कलचुरी शासकों की राजधानी रहा, जिसने इसे राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व दिया। जब राजा रत्नदेव प्रथम ने तुम्माण से राजधानी स्थानांतरित कर रतनपुर बसाया, तब महामाया मंदिर इस नए नगर का धार्मिक केंद्र बन गया।

इसके आसपास भी कई प्राचीन संरचनाएँ मौजूद हैं, जैसे कंठीदेऊल मंदिर जिसे 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था और बाद में कलचुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय द्वारा इसका विस्तार कराया गया। इसी प्रकार पास ही स्थित शिव मंदिर भी कलचुरी काल का स्थापत्य चमत्कार है, जो इस पूरे क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को और गहराई देता है।

धार्मिक महत्व और उत्सव

महामाया मंदिर दक्षिण कोसल क्षेत्र की कुलदेवी को समर्पित है और यह शक्ति साधना का एक प्रमुख स्थल है। यहाँ वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रि के अवसर पर इसका विशेष महत्व होता है।

नवरात्रि में यहाँ लाखों की संख्या में भक्त दर्शन और पूजा के लिए पहुँचते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में अखंड मनोकामना ज्योति कलश की परंपरा निभाई जाती है, जिसे पूरे नौ दिनों तक जीवित रखा जाता है। यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक उत्सव का भी उदाहरण है।

रतनपुर महामाया मंदिर कैसे पहुँचें

रतनपुर सड़क मार्ग से छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। बिलासपुर से रतनपुर की दूरी लगभग 25 किलोमीटर है। यहाँ से नियमित बसें, टैक्सी और निजी वाहन आसानी से उपलब्ध हैं। रायपुर (राजधानी) से रतनपुर लगभग 150 किलोमीटर दूर है। रायपुर से बिलासपुर होते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग-130 (NH-130) पर आराम से पहुँचा जा सकता है।

सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बिलासपुर जंक्शन है, जो भारतीय रेल का एक प्रमुख स्टेशन है।

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