History of Chaiturgarh fort: जानिए चैतुरगढ़ किले का इतिहास, आखिर क्यों कहते हैं इसे छत्तीसगढ़ का कश्मीर?
History of Chaiturgarh: भारत के मध्यभाग में बसे छत्तीसगढ़ की धरती इतिहास, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहरों से भरी हुई है। इन्हीं अनमोल धरोहरों में से एक है चैतुरगढ़ किला (Chaiturgarh Fort), जिसे अक्सर “छत्तीसगढ़ का कश्मीर” कहा जाता है। यह उपाधि इसे इसके ठंडे मौसम, ऊँचाई, हरियाली, झीलों और ऐतिहासिक महत्व के कारण मिली है। कोरबा जिले की पहाड़ियों पर बसा यह किला न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यवान है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और धार्मिक आस्था रखने वालों के लिए भी एक प्रमुख गंतव्य है।

History of Chaiturgarh: भारत के मध्यभाग में बसे छत्तीसगढ़ की धरती इतिहास, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहरों से भरी हुई है। इन्हीं अनमोल धरोहरों में से एक है चैतुरगढ़ किला (Chaiturgarh Fort), जिसे अक्सर “छत्तीसगढ़ का कश्मीर” कहा जाता है। यह उपाधि इसे इसके ठंडे मौसम, ऊँचाई, हरियाली, झीलों और ऐतिहासिक महत्व के कारण मिली है। कोरबा जिले की पहाड़ियों पर बसा यह किला न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यवान है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और धार्मिक आस्था रखने वालों के लिए भी एक प्रमुख गंतव्य है।
चैतुरगढ़ किले का निर्माण
चैतुरगढ़ किले का निर्माण 10वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के शासक राजा पृथ्वीदेव प्रथम ने करवाया था। यह दुर्ग अपनी विशेष संरचना के कारण अद्वितीय है। अधिकतर हिस्से प्राकृतिक पहाड़ियों से बने हैं, केवल कुछ स्थानों पर मानव निर्मित किलेबंदी की गई है। इसी वजह से इसे प्राकृतिक किला भी कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि यह स्थान अपने समय में एक सुरक्षित शरणस्थली और प्रशासनिक केंद्र रहा होगा।
किले की सबसे खास पहचान: महिषासुर मर्दिनी मंदिर
इस किले की सबसे खास पहचान है यहाँ स्थित महिषासुर मर्दिनी मंदिर, जहाँ देवी की बारह भुजाओं वाली मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र है। इसके अतिरिक्त, किले के भीतर पाँच तालाब मौजूद हैं, जिनमें से तीन सालभर पानी से भरे रहते हैं। यह जलस्रोत किले की भव्यता और धार्मिक महत्व को और गहरा करते हैं। पास ही स्थित शंकर गुफा अपनी संकीर्ण संरचना और रहस्यमय वातावरण के कारण अलग अनुभव कराती है।
प्राकृतिक सौंदर्य: 3,060 फीट की ऊँचाई पर स्थित
चैतुरगढ़ किला लगभग 3,060 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से दूर-दूर तक फैले जंगल, पहाड़ और घाटियों का दृश्य दिखाई देता है। हरियाली से ढकी पहाड़ियों, ठंडी हवाओं और प्राकृतिक झीलों के कारण इसे “छत्तीसगढ़ का कश्मीर” कहा जाता है। गर्मियों में भी यहाँ का तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है, जिससे यह स्थान स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है।
किले का प्रवेश द्वार और संरचना
किले में प्रवेश के लिए तीन भव्य द्वार बने हुए हैं – मेनका द्वार, हुंकार द्वार और सिंहद्वार। ये द्वार न केवल सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे, बल्कि इनके शिल्प में उस समय की स्थापत्य कला की झलक भी देखने को मिलती है।
कैसे पहुंचे चैतुरगढ़
चैतुरगढ़ पहुँचने के लिए निकटतम बड़ा कस्बा है पाली, जो लगभग 20–25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। सबसे निकट का रेलवे स्टेशन कोरबा और बिलासपुर हैं, जबकि हवाई मार्ग से आने वाले पर्यटक रायपुर एयरपोर्ट के जरिए पहुँच सकते हैं। किले तक पहुँचने के लिए पहाड़ी रास्ते पर पैदल यात्रा करनी पड़ती है, जो रोमांच और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव कराती है।
