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Godna Ka Itihas: विदेशों से पहले छत्तीसगढ़ में था टैटू का प्रचलन, जानिए गोदना की दर्द भरी और रहस्यमयी कहानी

Godna Ka Itihas: Godna Ka Itihas: गोदना, छत्तीसगढ़ की ऐसी प्राचीन धरोहर है जो आदिवासी जीवन और परंपराओं को दर्शाता है। यह कला गोंड, बैगा, उरांव, कोंध और देवार जैसे जनजातीय समुदायों की महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

Godna Ka Itihas: विदेशों से पहले छत्तीसगढ़ में था टैटू का प्रचलन, जानिए गोदना की दर्द भरी और रहस्यमयी कहानी
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By Chirag Sahu

Godna Ka Itihas: गोदना, छत्तीसगढ़ की ऐसी प्राचीन धरोहर है जो आदिवासी जीवन और परंपराओं को दर्शाता है। यह कला गोंड, बैगा, उरांव, कोंध और देवार जैसे जनजातीय समुदायों की महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। गोदना सिर्फ सौंदर्य का हिस्सा नहीं, बल्कि यह एक धार्मिक और सामाजिक पहचान का प्रतीक है। आदिवासियों में यह मान्यता है कि गोदना मनुष्य को मृत्यु के बाद स्वर्ग तक ले जाती है।

आदिवासियों का विश्वास और छींपी हुई कहानी

छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों में गोदना केवल एक कला नहीं, बल्कि एक गहरी धार्मिक मान्यता है। बैगा जनजाति की महिलाओं का मानना है कि गोदना उनके शरीर को पूर्णता प्रदान करता है। उनके लिए, यह किशोरावस्था और विवाह जैसे जीवन के महत्वपूर्ण चरणों का हिस्सा है। कई जनजातियां मानती हैं कि गोदना उन्हें बुरे नजरों से बचाती है। एक ऐसा भी समाज है जिन्होंने गोदने को अपने विद्रोह का हिस्सा बना लिया और अपने पूरे शरीर में राम नाम की गोदना गोदवा ली – यह समुदाय है रामनामी समुदाय।

गोदना गोदने की प्रक्रिया

गोदना गोदने के लिए विशेष स्याही का उपयोग किया जाता है। यह स्याही मुख्य रूप से काले या नीले रंग की होती है, जो त्वचा पर स्थायी रूप से बस जाती है। इसे बनाने के लिए काजल को सरसों के तेल या अन्य तेलों को जलाकर एकत्र किया जाता है। इसमें काले तिल को भूनकर और पीसकर गाढ़ा लेप तैयार किया जाता है। फिर बांस की नोक, कांटों या धातु की सुइयों का उपयोग होता है। इन उपकरणों को स्याही में डुबोकर त्वचा में बार-बार चुभोया जाता है, ताकि जटिल डिज़ाइन बनाए जा सकें। यह प्रक्रिया दर्दनाक हो सकती है, लेकिन आदिवासी महिलाएं इसे गर्व के साथ सहन करती हैं। फिर जिस जगह में गोदना किया गया है उस जगह पर हल्दी का लेप लगाया जाता है जिससे घाव तुरंत भर सके।

छत्तीसगढ़ की जनजातियों में गोदना की कला

गोंड जनजाति: छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी जनजाति गोंड जनजाति, गोदना को अपनी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा मानती है।

बैगा जनजाति: बैगा जनजाति को छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल किया जाता है और इन्हें गोदना प्रिय जनजाति भी कहा जाता है। बैगा जनजाति की लड़कियों में गोदना की शुरुआत 6-8 वर्ष की उम्र से हो जाती है।

मुरिया जनजाति: यह गोंड की उप-जनजाति है। इनकी गोदना कला घोटुल संस्कृति से गहराई से जुड़ी है। मुरिया के गोदना पैटर्न गोंड से मिलते-जुलते हैं।

उरांव जनजाति: उरांव में गोदना को "खोदा" भी कहा जाता है। इनमें गोदना, नजर से बचाव और इतिहास का प्रतीक है।

हल्बा/कोंध जनजाति: इन जनजातियों में गोदना के विशेष पैटर्न पाए जाते हैं। यह अपने माथे और चेहरे पर एक सरल रेखाएं बनवाती हैं जो इन्हें बुरी नजरों से बचने में मदद करती है साथ ही यह उनकी प्रकृति से जुड़ाव को भी दर्शाती है।

गोदना छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का एक मुख्य परिधान है। वे अपने जीवन में एक न एक बार गोदना गोदवाती ही है। उनका मानना है कि यह उन्हें अपने आराध्य और प्रकृति से जुड़ने का उचित अवसर प्रदान करता है। गोदना गोदवाते समय शरीर में विशेष औजारों द्वारा चुभोया जाता है, यह आदिवासियों की सहनशीलता को बताती है। आदिवासियों में इसका प्रचलन कई हजारों वर्षों से चला आ रहा है जिसे वे अपने अगले पीढ़ी को सौंपते हुए आ रहे हैं।

हालांकि आधुनिक चकाचौंध की इस दुनिया में गोदना कला विलुप्ति के कगार पर है, परंतु छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो इस कला को जीवित रखे हुए हैं। अगर आप सन 2000 के बाद पैदा हुए हैं तो आपको गोदने का महत्व उतना नहीं पता चल पाएगा इसके लिए आपको अपने दादा या दादी से संपर्क करना चाहिए, जो आपको गोदने से जुड़ी अपनी अनुभव बता सकते हैं। यह लेख पसंद आया हो तो शेयर जरूर करें।

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