Devrani Jethani Mandir Ka Itihas: ये है छत्तीसगढ़ का सबसे प्राचीनतम मंदिर, जानिए मंदिर का इतिहास
Devrani Jethani Mandir Ka Itihas: भारत के मध्यभाग में बसे छत्तीसगढ़ की धरती न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की प्राचीन स्थापत्य कला और मंदिर संस्कृति भी अद्वितीय है। इन्हीं धरोहरों में से एक है देवरानी-जेठानी मंदिर परिसर (Devrani-Jethani Temple Complex), जो बिलासपुर जिले के ताला गाँव में स्थित है। यह मंदिर परिसर अपनी अनूठी वास्तुकला, रहस्यमयी मूर्तियों और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण भारतीय पुरातत्व और संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है।

Devrani Jethani Mandir Ka Itihas: भारत के मध्यभाग में बसे छत्तीसगढ़ की धरती न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की प्राचीन स्थापत्य कला और मंदिर संस्कृति भी अद्वितीय है। इन्हीं धरोहरों में से एक है देवरानी-जेठानी मंदिर परिसर (Devrani-Jethani Temple Complex), जो बिलासपुर जिले के ताला गाँव में स्थित है। यह मंदिर परिसर अपनी अनूठी वास्तुकला, रहस्यमयी मूर्तियों और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण भारतीय पुरातत्व और संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है।
मंदिर का स्थान और इतिहास
ताला गाँव, मनियारी नदी के किनारे बसा हुआ है और यहीं पर यह मंदिर परिसर दिखाई देता है। माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण लगभग 6वीं शताब्दी ईस्वी में हुआ था। उस समय यहाँ शरभपुरिय वंश का शासन था, जिन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। लोककथाओं के अनुसार इन दोनों मंदिरों को "देवरानी" और "जेठानी" नाम इसलिए दिया गया क्योंकि कहा जाता है कि यह राजपरिवार की दो बहुओं के लिए बनवाए गए थे। हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह नाम आज भी प्रचलन में है।
देवरानी मंदिर की वास्तुकला
देवरानी मंदिर आज भी अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। इस मंदिर का निर्माण कटे हुए पत्थरों से किया गया है। इसमें गर्भगृह (sanctum), अंतराल (antarala) और एक छोटा मुखमंडप (pavilion) शामिल है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में है और इसके दरवाजों पर की गई नक्काशी इसे विशिष्ट बनाती है। दरवाजे के चौखटों और सामने की ओर बेल-बूटे, देवी-देवताओं और विभिन्न आकृतियों की सुंदर कारीगरी देखी जा सकती है। गंगा और यमुना की प्रतिमाएँ भी द्वार पर उकेरी गई हैं, जो इसे धार्मिक दृष्टि से और अधिक पवित्र बनाती हैं।
जेठानी मंदिर की संरचना
इसके विपरीत, जेठानी मंदिर आज खंडहर की स्थिति में है। यहाँ केवल टूटे हुए स्तंभ, नींव और बिखरी हुई मूर्तियाँ देखने को मिलती हैं। फिर भी, इसके अवशेष यह संकेत देते हैं कि कभी यह मंदिर भी भव्य रहा होगा। माना जाता है कि इसमें कई प्रवेश द्वार और सीढ़ियाँ थीं, साथ ही समृद्ध शिल्पकला से सुसज्जित था।
मूर्तिकला और रुद्र शिव प्रतिमा
इस परिसर की सबसे आकर्षक खोज 1988 में हुई, जब देवरानी मंदिर के सामने से एक विशाल रुद्र शिव प्रतिमा निकली। यह लगभग 8 फीट ऊँची और पाँच टन वज़नी एकाश्म मूर्ति है। इसकी विशेषता यह है कि इसकी पूरी देह विभिन्न जानवरों और जीवों से बनी प्रतीत होती है—साँप, छिपकली, कछुए और कई मानव मुख इसके शरीर का हिस्सा हैं। यह अनूठी मूर्ति भारतीय मूर्तिकला की सृजनात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती है।
प्राचीन स्थापत्य शैली का प्रमाण
देवरानी-जेठानी मंदिर परिसर मध्य भारत की उस प्राचीन स्थापत्य शैली का प्रमाण है, जब मंदिर निर्माण में प्रयोग और नवाचार किए जा रहे थे। यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए भी अध्ययन का विषय है। यहाँ पाए गए शिल्प और मूर्तियाँ वर्तमान में संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस धरोहर को समझ सकें।
वर्तमान स्थिति और यात्रा
आज देवरानी मंदिर आंशिक रूप से संरक्षित है जबकि जेठानी मंदिर खंडहर बन चुका है। संरक्षण कार्य जारी है और एक छोटा संग्रहालय भी यहाँ बनाया गया है। पर्यटक यहाँ पहुँचकर न केवल स्थापत्य कला की झलक देखते हैं बल्कि उस समय की धार्मिक भावनाओं और सांस्कृतिक समृद्धि को भी महसूस करते हैं।
