Cloud Seeding: दिल्ली में होगी कृत्रिम बारिश! जानिए कैसे क्लाउड सीडिंग से करवाई जाती है वर्षा, क्या है पूरा सच
Cloud Seeding: देश की राजधानी दिल्ली में की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने एक नया प्रयोग शुरू किया है जिसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं। आइए समझते हैं कि आखिर यह तकनीक है क्या और यह कितनी असरदार है?

Cloud Seeding: देश की राजधानी दिल्ली आज एक नाजुक स्थिति में खड़ी हुई है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां प्रदूषण लेवल इतना बढ़ गया है कि लोगों को सांस तक लेने में दिक्कत हो रही है। 0 से 100 AQI को सामान्य प्रदूषण लेवल माना जाता है, परंतु दिल्ली में यह लेवल 300 AQI को भी पार कर चुका है। हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीनों में प्रदूषण इतना बढ़ जाता है कि सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने एक नया प्रयोग शुरू किया है जिसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं। आइए समझते हैं कि आखिर यह तकनीक है क्या और यह कितनी असरदार है?
क्लाउड सीडिंग क्या होती है?
क्लाउड सीडिंग का शाब्दिक अर्थ है बादलों की बुवाई। यह एक ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें बादलों के अंदर कुछ खास केमिकल डालकर बारिश करवाने की कोशिश की जाती है। यह तकनीक खाली आसमान से बारिश नहीं बरसा सकती। इसके लिए पहले से बादल होने चाहिए और उनमें नमी भी होनी चाहिए है। सूखे प्रदेशों में बारिश की समस्या से निपटने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। क्लाउड सीडिंग का आविष्कार एक अमेरिकी वैज्ञानिक विंसेंट जे शेफर ने 1946 में किया था।
किस केमिकल का होता है उपयोग
इस तकनीक में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला केमिकल सिल्वर आयोडाइड है। इसके अलावा पोटेशियम आयोडाइड, ड्राई आइस और यहां तक कि साधारण नमक का भी इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी चीजें बादलों के अंदर एक तरह का केंद्र बनाती हैं जिसके चारों ओर पानी की बूंदें जमा होने लगती हैं। जब ये बूंदें काफी बड़ी और भारी हो जाती हैं तो बारिश के रूप में जमीन पर गिरती हैं।
कैसे काम करती है यह प्रक्रिया
क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया शुरू होती है हवाई जहाज से। विशेष रूप से तैयार किए गए विमान बादलों के बीच में उड़ान भरते हैं और वहां सीडिंग एजेंट्स (केमिकल) छोड़ते हैं। कभी-कभी जमीन से रॉकेट या ड्रोन के जरिए भी ये केमिकल बादलों में पहुंचाए जाते हैं। जब ये पदार्थ बादलों में पहुंचते हैं तो एक दिलचस्प प्रक्रिया शुरू होती है।
बादलों में मौजूद पानी की बूंदें अक्सर सुपरकूल्ड होती हैं यानी शून्य डिग्री से नीचे के तापमान में भी तरल रूप में रहती हैं। सिल्वर आयोडाइड के कण एक क्रिस्टलीय संरचना बनाते हैं जो इन सुपरकूल्ड बूंदों को जमने में मदद करती है। एक बार जब छोटे बर्फ के क्रिस्टल बन जाते हैं तो वे आसपास की नमी को अपनी ओर खींचने लगते हैं। धीरे-धीरे ये क्रिस्टल बड़े होते जाते हैं और जब इतने भारी हो जाते हैं कि बादल उन्हें संभाल नहीं पाते तो वे नीचे गिरने लगते हैं। गर्म इलाकों में ये पिघलकर बारिश बन जाते हैं और ठंडे इलाकों में बर्फबारी के रूप में जमीन तक पहुंचते हैं।
दिल्ली का क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण से लड़ने के लिए एक योजना शुरू की है। मई 2025 में दिल्ली कैबिनेट ने आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट को मंजूरी दी। वैज्ञानिकों ने इस प्रोजेक्ट के लिए खास तैयारी की है। उन्होंने सेना विमान को विशेष फ्लेयर बेस्ड डिस्पर्सल सिस्टम से लैस किया है और सीडिंग के लिए एक खास फॉर्मूला तैयार किया गया है जिसमें सिल्वर आयोडाइड नैनोपार्टिकल्स, आयोडाइज्ड साल्ट और रॉक साल्ट का मिश्रण है। हर फ्लाइट करीब नब्बे मिनट तक चलेगी और दिल्ली के करीब सौ वर्ग किलोमीटर के इलाके को कवर करेगी।
क्या दिल्ली में होगी बारिश
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा है कि अगर मौसम अनुकूल रहा तो 29 अक्टूबर 2025 को दिल्ली में पहली कृत्रिम बारिश हो सकती है। भारतीय मौसम विभाग ने 28, 29 और 30 अक्टूबर को बादल छाए रहने की भविष्यवाणी की है जो ऑपरेशन के लिए अच्छी स्थिति हो सकती है, लेकिन चिंता की बात यह भी है कि ये विधि साफ आसमान से बारिश नहीं कर सकती।
