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Chhattisgarh Ke Sapt Rishi: छत्तीसगढ़ हैं त्रेतायुग के सात महान ऋषियों की तपोस्थली, जानिए इन सप्त ऋषियों के बारे में...

Chhattisgarh Ke Sapt Rishi: छत्तीसगढ़ में भी धमतरी जिले का सिहावा पर्वत क्षेत्र इस आध्यात्मिक विरासत का अनूठा प्रमाण है जहां त्रेतायुग में सात महान ऋषियों ने अपनी साधना से इस धरती को पापमुक्त बना दिया था।

Chhattisgarh Ke Sapt Rishi: छत्तीसगढ़ हैं त्रेतायुग के सात महान ऋषियों की तपोस्थली, जानिए इन सप्त ऋषियों के बारे में...
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By Chirag Sahu

Chhattisgarh Ke Sapt Rishi: छत्तीसगढ़ अपने प्राकृतिक वातावरण और आध्यात्मिक माहौल के लिए प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों और तांत्रिकों के साधना व तपस्या आदि के लिए उपयुक्त स्थान रहा है। अब तक हमने चार युगों के बारे में ही जाना है और सभी युगों के अपने-अपने सप्त ऋषि हुए है। छत्तीसगढ़ में भी धमतरी जिले का सिहावा पर्वत क्षेत्र इस आध्यात्मिक विरासत का अनूठा प्रमाण है जहां त्रेतायुग में सात महान ऋषियों ने अपनी साधना से इस धरती को पापमुक्त बना दिया था। इन ऋषियों का संबंध श्रीराम से भी जुड़ता है। इस लेख में हम इन्हीं सप्त ऋषियों के बारे में जानेंगे।

श्रृंगी ऋषि

सिहावा पर्वत श्रृंखला की महेंद्रगिरी पर्वत पर स्थित श्रृंगी ऋषि का आश्रम है। श्रृंगी ऋषि का नाम रामायण काल से जुड़ा हुआ है क्योंकि ये वही महान तपस्वी थे जिन्होंने अयोध्या में राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ संपन्न कराया था। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। श्रृंगी ऋषि राजा दशरथ के दामाद थे क्योंकि उनका विवाह दशरथ की पुत्री शांता से हुआ था। इसी स्थान से पवित्र नदी महानदी का भी उद्गम होता है।

अंगिरा ऋषि

अंगिरा ऋषि का आश्रम सिहावा नगरी से कुछ किलोमीटर दूर रतावा गांव के समीप श्रीखंड पर्वत में स्थित है। सप्त ऋषियों में अंगिरा को सबसे वरिष्ठ और श्रेष्ठ माना जाता है। वैदिक परंपरा में अंगिरा ऋषि को अनेक महत्वपूर्ण मंत्रों का जन्मदाता भी माना गया है। पर्वत के शिखर पर एक छोटी सी प्राकृतिक गुफा में अंगिरा ऋषि की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। पर्वत कि यह चढ़ाई लगभग 9 किलोमीटर की बताई जाती है। इस पर्वत की विशेषता यह है कि यहां सात से अधिक प्राकृतिक गुफाएं हैं। यहां एक मंदिर भी स्थापित किया गया है जिसमें अंगिरा ऋषि का यज्ञ कुंड देखने को मिलता है।

अगस्त्य ऋषि

अगस्त्य ऋषि, सप्त ऋषियों में शामिल एक महान तपस्वी थे। उन्हें सनातन धर्म और वैदिक संस्कृति के प्रचार प्रसार का विशेष श्रेय दिया जाता है। वे एक तपस्वी के साथ आयुर्वेद और अन्य विज्ञानों के भी ज्ञाता थे। भगवान राम ने अपने वनवास काल के दौरान इस आश्रम में अगस्त्य ऋषि से भेंट की थी। अगस्त्य ऋषि ने श्रीराम को राक्षसों के संहार के लिए विशेष अस्त्र-शस्त्र और मंत्र भी प्रदान किए थे।

मुचकुंद ऋषि

मुचकुंद ऋषि का आश्रम धमतरी के सीतानदी के तट पर मेचका गांव में स्थित है। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। मुचकुंद ऋषि की कथा महाभारत काल से भी जुड़ी है जब उन्होंने काल्यावन नामक राक्षस को भस्म करने में भगवान कृष्ण की सहायता की थी। यहां स्थित शिव मंदिर अपनी प्राचीन स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है और साथ ही दुर्गा मंदिर में मां की प्राचीन मूर्ति स्थापित है।यहां स्थित शांति कुंड इस आश्रम की विशेष धरोहर है।

गौतम ऋषि

गौतम ऋषि का आश्रम सीतानदी के घने वनक्षेत्र में मांदागिरी पर्वत पर स्थित है। गौतम ऋषि वेदों के महान ज्ञाता थे और अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों के रचयिता माने जाते हैं। उनकी पत्नी अहिल्या की कथा रामायण में विस्तार से वर्णित है, जिन्होंने अहिल्या को श्राप देकर पत्थर में बदल दिया था फिर बाद में श्री राम द्वारा इस श्राप को तोड़ा गया।इस आश्रम की सबसे आश्चर्यजनक विशेषता यहां के झूलते पत्थर हैं जो इस प्रकार संतुलित हैं कि ये गिरते नहीं हैं।

सरभंग ऋषि

धमतरी के ही एक गांव दलदली में स्थित एक ऊंचे पहाड़ में सरभंग ऋषि का आश्रम स्थित है। रामायण में उल्लेख मिलता है कि भगवान राम ने सरभंग ऋषि से भी भेंट की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस आश्रम की सबसे बड़ी विशेषता यहां के दो कुंड हैं। ये कुंड वर्षभर जल से भरे रहते हैं। रात्रि के समय इन कुंडों में एक रहस्यमय प्रकाश दिखाई देता है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है। सरभंग ऋषि ने प्रभु श्री राम के दर्शन के बाद अग्निकुंड में समाधि लेकर स्वर्ग स्वीकार कर लिया।

कंक ऋषि

धमतरी के केकराडोंगरी पहाड़ी पर कंक ऋषि का आश्रम स्थित है। यह पहाड़ दुधावा बांध के समीप होने के कारण अत्यंत मनोरम है। कंक ऋषि के नाम से ही कांकेर स्थान का नामकरण माना जाता है। कंक ऋषि ने यहां दीर्घकाल तक कठोर तपस्या की थी और अनेक दिव्य सिद्धियां प्राप्त की थीं। आज यह स्थान पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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