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Chhattisgarh Mitra: ये थी छत्तीसगढ़ की प्रथम मासिक पत्रिका, जानिए छत्तीसगढ़ मित्र पत्रिका से जुड़े रोचक तथ्य

Chhattisgarh Mitra: सन 1900 में छत्तीसगढ़ मित्र नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। आइए जानते हैं इससे जुड़े रोचक तथ्य

Chhattisgarh Mitra: ये थी छत्तीसगढ़ की प्रथम मासिक पत्रिका, जानिए छत्तीसगढ़ मित्र पत्रिका से जुड़े रोचक तथ्य
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By Chirag Sahu

Chhattisgarh Mitra: बीसवीं सदी के आरंभ में जब देश में स्वतंत्रता की आग जलने लगी तो छत्तीसगढ़ भी इसमें पीछे नहीं था। छत्तीसगढ़ के कई स्वतंत्रता सेनानी व क्रांतिकारी अपने-अपने तौर तरीकों से अंग्रेजों का विरोध कर रहे थे। इनमें से ही एक सबसे प्रभावी तरीका था पत्रिकाओं का प्रकाशन। इन पत्रिकाओं में अंग्रेजों की कूटनीति और कपट को उजागर किया जाता था। सन 1900 में छत्तीसगढ़ मित्र नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। इस पत्रिका ने छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की नींव रखी। यह पत्रिका छत्तीसगढ़ की पहली हिंदी मासिक पत्रिका थी और इसके प्रकाशन के साथ ही इस क्षेत्र में आधुनिक पत्रकारिता का युग प्रारंभ हो गया।

पत्रिकाओं की क्यों थी जरूरत

हम बात कर रहे हैं सन 1900 के आसपास की, इस समय कोई संचार टेक्नोलॉजी नहीं थी, इसलिए इस समय के क्रांतिकारियों ने अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए पत्रिकाओं का सहारा लिया। यह वह समय था जब अंग्रेजी शासन के विरुद्ध असंतोष बढ़ता ही जा रहा था, ऐसे में पत्र पत्रिकाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई थी। परंतु इन पत्रिकाओं को छापना और प्रकाशन करना किसी पहाड़ तोड़ने जितना मुश्किल था।

पत्रिका के संस्थापक और अन्य सदस्य

छत्तीसगढ़ मित्र के संस्थापक और प्रमुख संपादक पंडित माधवराव सप्रे थे, जो उस समय पेंड्रा के राजकुमार कॉलेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थे। सप्रे जी महाराष्ट्र से संबंध रखते थे लेकिन उनकी हिंदी भाषा पर अद्भुत पकड़ थी। उनके साथ रामराव चिंचोलकर भी सह-संपादक के रूप में जुड़े हुए थे। दोनों ने मिलकर पत्रिका को एक उच्च साहित्यिक स्तर प्रदान किया।

पत्रिका के प्रकाशक पंडित वामन बलीराम लाखे थे। लाखे जी और सप्रे जी की मित्रता रायपुर के स्कूली दिनों से थी और इस गहरी मित्रता ने छत्तीसगढ़ मित्र को साकार रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाखे जी ने न केवल आर्थिक सहयोग दिया बल्कि पत्रिका के प्रकाशन और वितरण में भी सक्रिय रहे।

कहां से हुआ था पत्रिका का प्रकाशन

छत्तीसगढ़ मित्र का प्रकाशन पेंड्रा, जिला बिलासपुर से होता था। पेंड्रा उस समय एक छोटा सा कस्बा था जहां सीमित संसाधन उपलब्ध थे। हालांकि संपादन और प्रकाशन का मुख्यालय पेंड्रा में था, लेकिन पत्रिका की छपाई रायपुर के कैय्यूमी प्रेस में होती थी। यह व्यवस्था उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए सबसे उपयुक्त थी क्योंकि रायपुर में बेहतर मुद्रण सुविधाएं उपलब्ध थीं। कैय्यूमी प्रेस उन दिनों मध्य प्रांत के प्रमुख मुद्रणालयों में से एक था।

पत्रिका में कई लेखकों का योगदान

यह पत्रिका उस समय के लेखक और साहित्यकारों के लिए एक मंच का कार्य कर रही थी। पत्रिका में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्रीधर पाठक, पंडित कामता प्रसाद गुरु और रामदास गोड़ जैसे दिग्गज साहित्यकारों के लेख नियमित रूप से प्रकाशित होते थे। यह उस समय के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि ये सभी राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित लेखक थे।

प्रकाशन की समाप्ति

सप्रे जी को अपनी पत्रिका के प्रशासन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। सबसे बड़ी समस्या आर्थिक थी। उस समय पत्रिकाओं से कोई बहुत अधिक आय के साधन प्राप्त नहीं होते थे जिससे पत्रिका के छपाई, वितरण और अन्य खर्च चलाना मुश्किल हो गया। इन आर्थिक कठिनाइयों के कारण छत्तीसगढ़ मित्र केवल तीन वर्ष तक ही प्रकाशित हो सकी। सन 1900 में शुरू हुई यह पत्रिका 1902-03 तक चली और फिर उसका प्रकाशन बंद करना पड़ा। परंतु सप्रे जी के हौसले कहां रुकने वाले थे उन्होंने अपनी पत्रकारिता नागपुर से जारी रखी और वहां से हिंदी ग्रंथ माला और हिंदी केसरी का प्रकाशन किया। हिंदी केसरी पत्रिका, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के मराठी पत्रिका 'केसरी' का हिंदी रूपांतरण था। छत्तीसगढ़ मित्र आधुनिक पत्र पत्रिकाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत है।

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