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Chhattisgarh Mahanadi Project: ये है छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना, जानिए महानदी परियोजना के बारे में...

Chhattisgarh Mahanadi Project: महानदी परियोजना छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है जो अपनी 2.76 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता के साथ राज्य के कृषि क्षेत्र को मजबूती प्रदान करती है। आइए जानते हैं पूरी जानकारी.

Chhattisgarh Mahanadi Project: ये है छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना, जानिए महानदी परियोजना के बारे में...
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By Chirag Sahu

Chhattisgarh Mahanadi Project: महानदी परियोजना छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है जो अपनी 2.76 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता के साथ राज्य के कृषि क्षेत्र को मजबूती प्रदान करती है। यह प्रोजेक्ट छत्तीसगढ़ में 1980 से संचालित है। इस परियोजना से प्राप्त जल से छत्तीसगढ़ के अधिकांश खेतों के सिंचाई होती है, जो फसलों के लिए काफी लाभदायक है। इस परियोजना के अंतर्गत चार प्रमुख परियोजनाएं शामिल हैं रुद्री बैराज, माडुमसिल्ली जलाशय, दुधवा जलाशय और गंगरेल बांध। आज हम इन चारों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

रुद्री बैराज

यह छत्तीसगढ़ का प्रथम बांध है। जिसे डॉ. खूबचंद बघेल बैराज के नाम से भी जाना जाता है। यह छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना बांध है। धमतरी जिले में महानदी पर 1912-1915 के बीच निर्मित यह बैराज ब्रिटिश काल की इंजीनियरिंग का एक शानदार नमूना है। इस बांध के निर्माण के साथ ही रुद्री नहर का भी निर्माण हुआ, जिसने धमतरी और आसपास के क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा को बढ़ाया। इसकी एक और खासियत यह है कि 1990 में यहां 0.2 मेगावाट की लघु जल विद्युत परियोजना स्थापित की गई थी, जो छत्तीसगढ़ की पहली जल विद्युत परियोजना थी। हालांकि, यह परियोजना वर्तमान में बंद है फिर भी रुद्री बैराज का योगदान छत्तीसगढ़ के जल प्रबंधन के इतिहास में महत्वपूर्ण है।

माडमसिल्ली जलाशय

इसे बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव जलाशय के नाम से भी जाना जाता है। यह धमतरी जिले में सिलयारी नदी पर 1923 में बनाया गया था। यह जलाशय अपनी अनूठी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है, यह एशिया का पहला सायफन बांध है। ब्रिटिश तकनीक पर आधारित इस बांध का निर्माण लॉर्ड एलफिस्टन द्वितीय के कार्यकाल में हुआ, जो उस समय की इंजीनियरिंग की उन्नत समझ को दर्शाता है। सायफन तकनीक का उपयोग इस जलाशय को जल प्रवाह के नियंत्रण में विशेष रूप से प्रभावी बनाता है। यह जलाशय धमतरी क्षेत्र में सिंचाई के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है और स्थानीय किसानों की आजीविका को सहारा देता है। यह मिट्टी से भरा तटबंध बांध है।

दुधवा जलाशय

कांकेर जिले में दुधवा ग्राम के समीप महानदी पर निर्मित दुधवा जलाशय स्वतंत्र भारत में छत्तीसगढ़ का पहला बांध है। 1962-1965 के बीच इस जलाशय को बनाया गया। यह जलाशय कांकेर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करता है और स्थानीय कृषि को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वतंत्रता के बाद निर्मित होने के कारण यह बांध छत्तीसगढ़ के विकास के प्रारंभिक चरण का प्रतीक है।

गंगरेल बांध

इस बांध को रविशंकर जलाशय के नाम से भी जाना जाता है यह महानदी परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख हिस्सा है। धमतरी जिले के गंगरेल में 1978-1979 में निर्मित यह बांध छत्तीसगढ़ का सबसे लंबा बांध है, जिसकी लंबाई 1380 मीटर है। यह बांध न केवल सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि 2004 से यहां संचालित 2.5 मेगावाट के 4 यूनिट यानी 10 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना भी क्षेत्र में बिजली आपूर्ति में योगदान देती है। गंगरेल बांध महानदी परियोजना की कुल सिंचाई क्षमता का एक बड़ा हिस्सा कवर करता है और धमतरी सहित आसपास के क्षेत्रों में खेती को समृद्ध बनाने के लिए उत्तरदायी है।

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