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History Of Lakshmeshwar Temple Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ की काशी: ऐसा अनोखा शिवलिंग जिसमें है 1 लाख छिद्र; जानिए लक्ष्मणेश्वर मंदिर के बारे में

History Of Lakshmeshwar Temple Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक परंपराओं के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहाँ कई ऐसे मंदिर और तीर्थस्थल हैं जिनका उल्लेख पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इन्हीं में से एक है खरौद का लक्ष्मणेश्वर शिव मंदिर, जिसे श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से “छत्तीसगढ़ की काशी” कहते हैं। यह स्थान जांजगीर-चांपा जिले में स्थित है और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है।

History Of Lakshmeshwar Temple Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ की काशी: ऐसा अनोखा शिवलिंग जिसमें है 1 लाख छिद्र; जानिए लक्ष्मणेश्वर मंदिर के बारे में
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By Chirag Sahu

History Of Lakshmeshwar Temple Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक परंपराओं के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहाँ कई ऐसे मंदिर और तीर्थस्थल हैं जिनका उल्लेख पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इन्हीं में से एक है खरौद का लक्ष्मणेश्वर शिव मंदिर, जिसे श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से “छत्तीसगढ़ की काशी” कहते हैं। यह स्थान जांजगीर-चांपा जिले में स्थित है और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है।

पांडुवंशी राजवंश से जुड़ा मंदिर

खरौद का इतिहास 7वीं शताब्दी के पांडुवंशी राजवंश से जुड़ा हुआ है। उस समय यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण हुआ था, जिनमें लक्ष्मणेश्वर मंदिर प्रमुख है। इस मंदिर का नाम भगवान राम के भाई लक्ष्मण से जुड़ा माना जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मण ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी और तभी से यह स्थान भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। प्राचीन स्थापत्य कला और शिल्पकारी यहाँ के मंदिर को विशेष बनाते हैं। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी आज भी उस युग की कला और शिल्प के गौरवशाली इतिहास की झलक दिखाती है। यहां के शिवलिंग को लक्षलिंग भी कहा जाता है।

स्थापत्य की विशिष्टता: अनोखी बनावट

लक्ष्मणेश्वर मंदिर अपनी अनोखी बनावट के लिए भी प्रसिद्ध है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग को “स्वयंभू” माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें हजारों छोटे-छोटे छिद्र मौजूद हैं। मान्यता है कि इनमें से एक छिद्र पाताल लोक तक जाता है। शिवलिंग का दूसरा चमत्कार यह है कि इसके भीतर हमेशा जल भरा रहता है, जिसे भक्त “अक्षय कुंड” के नाम से जानते हैं। यह अद्भुत विशेषता इस मंदिर को और भी रहस्यमयी और पवित्र बना देती है। रतनपुर के राजा खड्गदेव हुए, जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

धार्मिक आस्था: छत्तीसगढ़ की काशी कहते है

जैसे वाराणसी को मोक्ष और मुक्ति का धाम कहा जाता है, वैसे ही खरौद का यह मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए उतना ही पवित्र है। इसी वजह से इसे “छत्तीसगढ़ की काशी” कहा जाता है। यहाँ सावन के महीने में दूर-दराज़ से भक्त आते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति मिलती है।

धार्मिक महत्त्व के कारण यह स्थान सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं बल्कि आध्यात्मिक साधना का भी स्थल है। इस मंदिर को लाखा चाऊर मंदिर भी कहते है और ऐसी मान्यता है कि यहां 1 लाख चावल के दाने चढ़ाने से सभी मनोकामना पूरी होती है।

क्यों कहा जाता है छत्तीसगढ़ की काशी

वाराणसी की तरह, जहाँ मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास है, वैसा ही विश्वास श्रद्धालु खरौद के लक्ष्मणेश्वर मंदिर को लेकर रखते हैं। यहाँ आकर भक्त जीवन की कठिनाइयों से राहत और ईश्वर की कृपा प्राप्त करने की आशा करते हैं। इसी आध्यात्मिक महत्त्व और ऐतिहासिक धरोहर के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी कहा जाता है।

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