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छत्तीसगढ़ की महिलाओं के परंपरागत आभूषण : नंदा गे तोड़ा, सुर्रा, पुतरी, करधन...अब विलुप्ति की कगार पर

करीब एक दशक पूर्व छत्तीसगढ़ी महिलाओं में सर से लेकर पाँव तक छत्तीसगढ़ी संस्कृति स्पष्ट रूप से झलकती थी.

छत्तीसगढ़ की महिलाओं के परंपरागत आभूषण : नंदा गे तोड़ा, सुर्रा, पुतरी, करधन...अब विलुप्ति की कगार पर
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By Meenu

छत्तीसगढ़िया स्त्रियों की बात करें तो उनमें यही बात है कि जिस तरह भाषा किसी क्षेत्र की पहचान होती है, गहने भी उस क्षेत्र की पहचान कराते हैं।

एक दौर में छत्तीसगढ़ी महिलाएं तोड़ा, सुर्रा, पुतरी, करधन इत्यादि पहनती थी। लेकिन अब कई चीजें लुप्त होने के कगार पर है।

खिनवा, करनफुल, फुल्ली, ढोरे खिनवा, मंगलसूत्र, चाबी गुच्छा, फुल्ली, पिन, खोचनी, बिछिया पट्टा, चैन, मुंदरी, अवरीदाना, सुर्रामाला, टोडा, हाफ करधन, हर्रेया, कड़ी करधन, पैरी, लच्छा, कटही, एठी, बनुरिया, साठी, सुता, ककनी, पेजन, रुपिया माला, हसनी, पेड़ी, पहुंची हथनी, इत्यादि छत्तीसगढ़ी आभूषण है।

आभूषणों से सुशोभित वनांचल की महिलाएं

वनांचल की अनूठी संस्कृति अनुरूप आभूषण आज तेजी से गायब होती जा रही हैं। करीब एक दशक पूर्व छत्तीसगढ़ी महिलाओं के शरीर में कई प्रकार आभूषण होते थे, सर से लेकर पाँव तक छत्तीसगढ़ी संस्कृति स्पष्ट रूप से झलकती थी। सर में दुमेंग, पुंजरा, क्लिप, बांस की कंघी और एक चाकू जिसे महिला बालों पर और पुरुष गले में टांगा करते थे, महिला व पुरुष दोनों गले में बहुत सारी मालाएं चकरी, ककसाक दुमेंग साथ ही गले में फीता से बने फूल, महिलाएं सिक्के से बनी माला आदि पहनती थीं।

छत्तीसगढ़ी महिलाओं के कान व नाक में बड़े-बड़े पीतल, स्टील खिनवा, उंगलियों में गोल रिंग व रिंग, हाथों में स्टील व एल्युमिनियम से बनी चूड़ी, पैरो में साटी गोल रिंग होते थे। इसके साथ ही वे बिछिया भी पहनते थे, जो अब नजर नहीं आते।

ये है आभूषणों के विलुप्ति की मुख्य वजह

छत्तीसगढ़ी आभूषणों के विलुप्त होने की कई सारी वजहें हैं। नव सभ्यता के साथ अतीत का पतन होना, नव पीढ़ी का अतीत के प्रति रुझान न लेना, शिक्षित होना जिससे नए चीजों प्रति रुझान होना, घोटुल का विनाश होना, नव पीढ़ी द्वारा अपने अतीत को न सजोना न संरक्षण करना, धर्म परिवर्तन भी आदिम संस्कृति पतन का मुख्य कारण है। साथ ही साथ शहरीकारण, पुलिस कैम्पों का खुलना, डिजिटालाइजेशन जैसे अनेक कारण हैं जिस वजह से आदिम संस्कृति व सभ्यता की परिचायक उन आभूषण व विशिष्ट पहनावा आज विलुप्ति के कगार पर है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में अब सिर्फ किराए पर मिलते हैं पारंपरिक गहने

आदिवासी अंचल के कुछ जगहों के अलावा अब छत्तीसगढ़ी गहने केवल किराए पर ही मिलते है. जो सिर्फ किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम या फिर किसी मंचन के लिए। ऐसे सामान्य तौर पर छत्तीसगढ़ के गहने का दौर खत्म होता जा रहा है। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है।

वहीँ प्रदेश कि कुछ महिलाएं कुछ खास मौकों-पर्व पर पहनने के लिए ऐसे गहने बनवाकर पहन भी रही, जिसमें सोने और चांदी कि पुतरी खास है. लेकिन ये सौ में से 10 लोग ही हैं.




छत्तीसगढ़ी श्रृंगार से बीमारियां रहती हैं दूर

इन गहनों से श्रृंगार करने वाली महिलाओं को बीमारियां नहीं घेरती हैं। हर गहने को धारण करने का अपना एक अलग ही महत्व है। वहीं हर एक गहने से महिलाओं को कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है, लेकिन फैशन के दौर में युवा पीढ़ी इन गहनों से दूर भागती है और बीमारी को न्योता देती है।

बस्तर में मिलते हैं पीतल और कांसे

पीतल और कांसे के गहने अब भी अपने न्यूनतम स्तर पर बस्तर में चल रहे हैं. एक समय चांपा, रतनपुर, धमधा, दुर्ग, रायगढ़ और आरंग पारंपरिक छत्तीसगढ़ी गहने बनाने के महत्वपूर्ण केंद्र थे और बिलासपुर और राजनांदगांव इनकी बिक्री के बड़े बाजार थे।


छत्तीसगढ़ी आभूषण के नाम



1. पुतरी

पुतरी का अर्थ होता है गुड़िया। पुतरी पहनकर महिलाएं गुड़िया के समान दिखाई देती हैं। ₹1 के सिक्कों को कुछ बड़े कर के 10- 12 सिक्कों को एक मोटे धागे में खास तरीके से गूंथा जाता है। ये सिक्के प्राचीन समय में चांदी से बनाए जाते थे। मगर कालांतर में चांदी का स्थान और भी अन्य धातुओं ने ले लिया। इन सिक्कों पर विशेष तरह के चिन्ह अंकित होते हैं। इन्हें ठप्प कहा जाता है ।


2. सुता

सुता भी चांदी से बनने वाला गहना होता है। आमतौर पर, यह मध्यमा उंगली की मोटाई जितना गोलाकार होता है। इस घने को गले में पहना जाता है यह अन्य गहनों की अपेक्षा भारी होता है।

3. सुर्रा

छत्तीसगढ़ में एक ऐसा भी घना होता है जो लाख से बनता है। इसे सुर्रा कहा जाता है। लाख के ऊपर सोने की परत चढ़ा कर सुर्रा बनाया जाता है। इसकी आकृति गोल होती है तथा इसे भी गले में पहना जाता है। इसकी बनावट काफी आकर्षक होती है।

3. ढार

ढार एक ऐसा घना होता है जो सोने से बनाया जाता है। यह बड़े आकार का गहना होता है । छत्तीसगढ़ी महिलाओं द्वारा इसे कानों में पहना जाता है। लेकिन कानों में पहने जाने वाले दूसरे गहनों की तुलना में यह ज्यादा भारी होता है।


4. नागमोरी

छतीसगढ़ी महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला बाजूबंद का एक रुप नागमोरी है। इस गहने को दोनों बाहों में पहना जाता है। यह चांदी से बना होता है। इस घने को नागमोरी इसकी बनावट के कारण कहते हैं, जो कि सर्पाकार होता है। यह पतला और मोटा एवं दो से ढाई इंच चौड़ा हो सकता है।


5. ऐंठी

ऐंठी कंगन की तरह कलाइयों में पहने जाने वाला तथा चांदी से बना हुआ गहना होता है। ऐंठी शब्द ऐंठने से बना है जिसका अर्थ है गूथना। दो धागों को आपस में मिलाकर ऐंठने (गूथने) से जैसी आकृति बनती है, वैसी ही आकृति इस गहने की भी होती है। चांदी की ऐंठन बड़ी आकर्षक होती है। छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाएं कांच की चूड़ियों की तरह ऐंठी जरूर पहनती हैं। ऐंठी नामक इस गहने को स्त्री के सुख समृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है ।


6. करधन

करधन नाम के इस गहने को कमर में पहना जाता है। यह बेहद मनमोहक गहना है। इसे पहनने के बाद ऐसा लगता है मानो कमर में धन रखा हो और शायद इसलिए इसे करधन कहा जाता है। इसे ग्रामीण ही नहीं, शहरी महिलाएं भी धारण करती हैं।

7. लच्छा

महिलाएं अपने पैर में पायल का दूसरा रूप लच्छा का प्रयोग करती हैं। इसे चांदी से बनया जाता है। यह चौड़े पट्टे का गहना होता है, जो पैर में फिट रहता है ।

8. पैजन

पैरों में पहने जाने वाला तथा चांदी से बना गहना पैंजन है, जिसमें घुंगरू होता है। यह आमतौर पर कुंवारी कन्याओं के लिए बनाया जाता है।

9 . नकबेसर

स्वर्ण निर्मित नाक में पहनने वाला गहना नकबेसर है। इसका बसेरा नाक में ही होता है। शायद इसलिए से नकबेसर कहा गया है। आम बोलचाल में अब इसे फुल्ली कहते हैं चेहरे की खूबसूरती नाक में नकबेसर पहनने से ही निखर उठती है

10 ककनी

हाथों में चूड़ियों के साथ पहनने वाला चांदी से निर्मित गहना ककनी है, जिसकी बनावट नुकीली होती है ।


11. बिछिया

पांव की उंगलियों में पहना जाने वाला तथा चांदी से बना कहना बिछिया है। ग्रामीण महिलाएं शादी होने के बाद बिछिया पहनती हैं। बिछिया का प्रचलन आज शहरी महिलाओं के बीच भी है।

12. पटा

चांदी निर्मित पटा सादगी सरलता व सीधेपन का प्रतीक है। इसे चूड़ियों के बीच बीच में पहना जाता है, यह एकमात्र ऐसा गहना है जिसका परित्याग महिलाएं विधवा होने के बाद भी नहीं करती।


13. तोड़ा

यह घना चांदी से बना होता है। इसे पाव में पहना जाता है। यह गहना करीब 10 से 20 तोले तक का होता है। यह गहना काफी मोटा व वजनदार और विभिन्न डिजाइनों का होता है।

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