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CG Dhudhadhari Math Raipur: दूधाधारी मठ रायपुर का इतिहास– 500 साल पुराना मठ, मान्यताएं और यात्रा गाइड की पूरी जानकारी।

CG Dhudhadhari Math Raipur: रायपुर की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान में दूधाधारी मठ का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। यह लगभग पाँच सौ वर्ष पुराना धार्मिक स्थल है, जो आज भी अपनी आध्यात्मिक और सामाजिक भूमिका के कारण उतना ही प्रासंगिक है जितना अपनी स्थापना के समय था। छत्तीसगढ़ की परंपराओं और लोकविश्वासों की गहराई को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किसी यात्रा से कम नहीं है।

CG Dhudhadhari Math Raipur: दूधाधारी मठ रायपुर का इतिहास– 500 साल पुराना मठ, मान्यताएं और यात्रा गाइड की पूरी जानकारी।
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By Chirag Sahu

CG Dhudhadhari Math Raipur: रायपुर की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान में दूधाधारी मठ का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। यह लगभग पाँच सौ वर्ष पुराना धार्मिक स्थल है, जो आज भी अपनी आध्यात्मिक और सामाजिक भूमिका के कारण उतना ही प्रासंगिक है जितना अपनी स्थापना के समय था। छत्तीसगढ़ की परंपराओं और लोकविश्वासों की गहराई को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किसी यात्रा से कम नहीं है।

दूधाधारी मठ की स्थापना

दूधाधारी मठ की स्थापना 16वीं शताब्दी में संत स्वामी बलभद्रदास जी महाराज ने की थी। उन्होंने जीवनभर केवल दूध का ही सेवन किया, इसी कारण उन्हें ‘दूध आहरी’ कहा गया और समय के साथ मठ का नाम पड़ा दूधाधारी मठ। नागपुर के मराठा शासक महाराजा रघुरावजी भोंसले ने इस मठ को संरक्षण प्रदान किया और इसके महंत को ‘राजेश्री’ की उपाधि से सम्मानित किया। यह परंपरा आज भी जारी है।

इस मठ का स्थापत्य और धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। यहां नरसिंह मंदिर, एक विशिष्ट हनुमान मंदिर और भगवान राम के दो प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जिनका निर्माण 1610 और 1630 के आसपास हुआ था। मंदिरों की दीवारों पर बनी कलाकृतियां और रंगीन सजावट आज भी छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति का प्रमाण देती हैं।

मठ से जुड़ी रहस्यमय किंवदंतियां

मठ से जुड़ी कई किंवदंतियां इसे और भी रहस्यमय बनाती हैं। कहा जाता है कि सुरही नामक गाय प्रतिदिन यहां आकर भगवान की प्रतिमा पर अपने दूध से अभिषेक करती थी। यहां रखा गया दक्षिणमुखी शंख केवल दीपावली की रात को दर्शन के लिए खोला जाता है और हजारों भक्त उस दिन इसकी एक झलक पाने के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा भगवान राम की प्रतिमा को स्वर्ण आभूषणों से सजाने की परंपरा वर्ष में केवल तीन बार होती है, जिसे भक्त बेहद खास मानते हैं।

धार्मिक आस्था और सामाजिक सेवा का केंद्र

दूधाधारी मठ न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि सामाजिक सेवा का भी प्रतीक है। यहां अनाथ बच्चों को आश्रय और संस्कृत शिक्षा प्रदान की जाती है। आज भी प्रदेश के प्रमुख नेता और श्रद्धालु विशेष पर्वों पर यहां दर्शन के लिए आते हैं। हाल के वर्षों में सरकार ने मठ को नवा रायपुर में भूमि प्रदान की है, जिससे इसके विकास की नई संभावनाएं खुली हैं।

कैसे पहुंचे मठ

यात्रियों के लिए यहां तक पहुंचना सरल है। रायपुर का स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट लगभग 15 किलोमीटर दूर है, रेलवे स्टेशन मठ से केवल 4 किलोमीटर की दूरी पर है और शहर से टैक्सी या ऑटो द्वारा सीधे पहुंचा जा सकता है। दर्शन का समय सुबह 6 से 12 बजे और शाम 4 से 9 बजे तक निर्धारित है।

दूधाधारी मठ की यात्रा के लिए दो से तीन दिनों का कार्यक्रम उपयुक्त माना जा सकता है। पहले दिन रायपुर पहुंचकर शाम को मठ की आरती में शामिल हुआ जा सकता है। दूसरे दिन सुबह शांत वातावरण में मठ का भ्रमण कर आसपास के मंदिरों और राजिम जैसे धार्मिक स्थलों का दर्शन किया जा सकता है। तीसरे दिन रायपुर के अन्य दर्शनीय स्थल जैसे विवेकानंद सरोवर, नंदन वन और संग्रहालय देखने के बाद फिर से मठ जाकर आध्यात्मिक अनुभव लिया जा सकता है।

यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सादगीपूर्ण वस्त्र पहनने और परिसर की शांति बनाए रखने की सलाह दी जाती है। दीपावली और राम नवमी पर भीड़ अधिक होती है, इसलिए समय से पहले पहुंचना बेहतर रहता है।

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