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Bilai Mata Mandir Ka Itihas: बिल्लियों ने खोजा रहस्यमई माता का मंदिर, जानिए शक्तिपीठ बिलाई माता मंदिर का इतिहास

Bilai Mata Mandir Ka Itihas: छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित बिलाई माता मंदिर (Bilai Mata Temple) एक ऐसा स्थान है जहाँ स्थानीय जनश्रुतियाँ और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे की कहानी और रहस्यमय घटनाएँ इसे और भी आकर्षक बनाती हैं। यहाँ की मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना और विशेष स्थान बिल्लियों (Cats) से जुड़ी हुई है। बिलाई माता का मंदिर छत्तीसगढ़ के पांच प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

Bilai Mata Mandir Ka Itihas: बिल्लियों ने खोजा रहस्यमई माता का मंदिर, जानिए शक्तिपीठ बिलाई माता मंदिर का इतिहास
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By Chirag Sahu

Bilai Mata Mandir Ka Itihas: छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित बिलाई माता मंदिर (Bilai Mata Temple) एक ऐसा स्थान है जहाँ स्थानीय जनश्रुतियाँ और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे की कहानी और रहस्यमय घटनाएँ इसे और भी आकर्षक बनाती हैं। यहाँ की मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना और विशेष स्थान बिल्लियों (Cats) से जुड़ी हुई है। बिलाई माता का मंदिर छत्तीसगढ़ के पांच प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

स्थापना से जुड़ी प्रचलित कथा

मंदिर आज जिस जगह पर स्थित है वहां पहले काफी घना जंगल हुआ करता था। इस क्षेत्र के राजा जब यहां से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक पत्थर के पास कई जंगली बिल्लियाँ लगातार बैठी हैं। यह दृश्य उनके लिए असाधारण और रहस्यमय था। राजा ने इस पत्थर को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वह किसी तरह भी स्थान से हिल नहीं रहा था।

राजा द्वारा पत्थर को हटाने के काफी प्रयत्न करने के बाद अचानक उस स्थान से जल प्रवाह शुरू हो गया और इसी रात राजा के स्वप्न में देवी मां प्रकट हुई और संदेश दिया कि पत्थर उसी स्थान पर रहे और इसकी पूजा की जाए। इसके बाद राजा ने वही देवी की स्थापना करवाई और स्थानीय लोगों द्वारा पूजा, आराधना का सिलसिला शुरू हुआ।

माता की स्वयंभू मूर्ति

माना जाता है कि यहाँ की मूर्ति स्वयंभू है। लोक मान्यता के अनुसार यह मूर्ति धीरे-धीरे जमीन से ऊपर आती रही है, और इसे प्राकृतिक रूप से प्रकट होने वाला माना जाता है। मूर्ति की काली रंगत और आसपास बिल्लियों की उपस्थिति के कारण इसे “बिलाई माता” नाम से जाना गया जो मां विंध्यवासिनी देवी की मूर्ति जैसी थी। यह नाम आज भी भक्तों के बीच बड़े श्रद्धा और सम्मान के साथ बोला जाता है। मूर्ति 500–600 वर्ष प्राचीन मानी जाती है।

मंदिर से जुड़े प्राचीन अनुष्ठान

प्राचीन समय में नवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में बलि प्रथा होती थी, जिसमें 108 बकरों की बलि दी जाती थी। हालांकि अब यह प्रथा समाप्त हो गई है और वर्तमान में भक्त केवल प्रसाद और विशेष पूजन सामग्री अर्पित करते हैं। नवरात्रि के समय यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और माता की आराधना करते हैं। लोक विश्वास है कि यहां की पूजा से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। आज यह मंदिर न केवल राज्य में बल्कि देश-विदेश से आने वाले भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहां प्रतिवर्ष ज्योत प्रज्जवलन की रस्में की जाती हैं और श्रद्धालु देवी की अर्चना के लिए बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं।

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