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Bandarkot Gufa: छत्तीसगढ़ की इस जगह में हुई थी बाली और सुग्रीव की लड़ाई, रामायण काल की सबसे रहस्यमयी गुफा, जानिए बंदरकोट का इतिहास

Bandarkot Gufa: छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित बंदरकोट गुफा, जो रामायण के महत्वपूर्ण पात्रों बाली और सुग्रीव के संघर्ष की कहानी बताता है।

Bandarkot Gufa: छत्तीसगढ़ की इस जगह में हुई थी बाली और सुग्रीव की लड़ाई, रामायण काल की सबसे रहस्यमयी गुफा, जानिए बंदरकोट का इतिहास
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By Chirag Sahu

Bandarkot Gufa: छत्तीसगढ़ एक ऐसी जगह है जहां हिंदू देवी देवताओं की प्राचीन पौराणिक कथा और घटनाओं की कहानी बयां करती है। यहां रामायण और महाभारत काल से जुड़ी कई ऐसी घटनाओं के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जो लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं। ऐसा ही एक जगह है सरगुजा जिले में स्थित बंदरकोट गुफा, जो रामायण के महत्वपूर्ण पात्रों बाली और सुग्रीव के संघर्ष की कहानी बताता है। नानदमाली गांव के पास स्थित यह गुफा सुग्रीव गुफा के नाम से भी प्रसिद्ध है और इसका संबंध उस काल से है जब सुग्रीव ने अपने बड़े भाई बाली के अत्याचारों से बचने के लिए यहां शरण ली थी।

इस गुफा की प्राचीन गाथा

रामायण की कथा के अनुसार बाली और सुग्रीव नाम के दो भाई थे। जो किष्किंधा राज्य के राजकुमार थे। उन दोनों भाइयों में बाली बड़ा भाई था और अत्यंत शक्तिशाली था। एक बार की बात है जब बाली एक राक्षस से युद्ध करने गुफा में गया और लंबे समय तक वापस नहीं आया। सुग्रीव ने गुफा के द्वार से खून बहता देखा और समझा कि बाली मारा गया। उसने गुफा का मुंह बंद कर दिया और किष्किंधा लौटकर राज्य संभाल लिया।

परंतु इस कहानी में मोड़ तब आता है जब गुफा से निकाल कर बाली वापस किष्किंधा राज्य पहुंचता है और उसे लगता है कि सुग्रीव ने जानबूझकर उसे मरने के लिए छोड़ दिया था। क्रोधित बाली ने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया और उसकी पत्नी को भी अपने पास रख लिया। प्राण बचाने के लिए सुग्रीव भागता-भागता छत्तीसगढ़ के इस दुर्गम क्षेत्र में आया और बंदरकोट गुफा में शरण ली। यहां वह बाली के भय से छुपकर रहने लगा। बाली को एक वरदान भी प्राप्त था जिसमें यदि कोई भी व्यक्ति बाली से युद्ध करता और उसकी आंखों में देखता तो सामने वाले की सारी शक्तियां बाली के पास आ जाती थी यही वजह थी कि श्री राम ने बाली का छुप कर पीछे से वध किया था।

इस गुफा का चयन सुग्रीव ने बहुत सोच-समझकर किया था। बाली को एक श्राप मिला था कि यदि वह ऋष्यमूक पर्वत के आसपास के क्षेत्र में प्रवेश करेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह गुफा उसी क्षेत्र में स्थित थी जहां बाली नहीं आ सकता था। इसलिए सुग्रीव यहां सुरक्षित था और अपने कुछ विश्वसनीय साथियों के साथ यहां निवास करने लगा।

इस पहाड़ के ऊपर एक हनुमान गद्दी स्थित है, जब प्रभु श्री राम इस इलाके में आए थे तो इसी स्थान से हनुमान जी ने उनकी सुरक्षा के लिए नजर रखी हुए थे। इसी हनुमान गद्दी के बगल में एक कुआं भी है जो कभी नहीं सूखता। अभी के समय में बंदरकोट गुफा में हर समय पानी भरा रहता है।

गुफा की संरचनाएं

यह एक विशाल पर्वत श्रृंखला है जो चारों ओर से घने जंगलों और हरियाली से घिरी हुई है। शिखर तक पहुंचने के लिए लगभग तीन घंटे की कठिन और दुर्गम चढ़ाई करनी पड़ती है। जब कोई व्यक्ति बड़ी मुश्किल से शिखर पर पहुंचता है तो उसे एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है। यह प्राकृतिक चमत्कार देखकर कोई भी व्यक्ति आश्चर्यचकित हो जाता है।

गुफा की संरचना भी कम रहस्यमय नहीं है। यह एक विशाल प्राकृतिक गुफा है जिसके भीतर जाने पर ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने स्वयं अपने हाथों से इसे बनाया हो। गुफा के अंदर जो पानी भरा रहता है वह किसी भी मौसम में नहीं सूखता है। स्थानीय लोग इसे एक चमत्कार मानते हैं।

बंदरकोट में एक अंजनी टीला भी है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां हनुमान जी की माता अंजनी ने तपस्या की थी। यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है और लोग दूर-दूर से यहां दर्शन करने आते हैं। यह स्थान मैनपाट की हरी-भरी वादियों के बीच बसा है। जिला मुख्यालय अंबिकापुर शहर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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