Bamboo In Chhattisgarh: ये है छत्तीसगढ़ का हरा सोना, इस तरह से बांस उगाने पर हो सकता है करोड़ों का मुनाफा
Bamboo In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। यहां स्थित प्राकृतिक खजाने छत्तीसगढ़ को एक अलग ही नाम देती है। आज हम छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली ऐसी प्राकृतिक विरासत के बारे में जानेंगे जिसे स्थानीय लोग "हरा सोना" कहते हैं।

Bamboo In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। यहां स्थित प्राकृतिक खजाने छत्तीसगढ़ को एक अलग ही नाम देती है। आज हम छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली ऐसी प्राकृतिक विरासत के बारे में जानेंगे जिसे स्थानीय लोग "हरा सोना" कहते हैं। यह हरा सोना और कुछ नहीं, बल्कि बांस है, जो न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था और संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है। इस लेख में हम हरे सोने की विशेषता और इसके प्रकार के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे।
क्यों कहा जाता है बांस को हरा सोना?
बांस को एक चमत्कारीक घास कहना गलत नहीं होगा। बांस का जब रोपण किया जाता है तब यह कुछ ही समय में तेजी से बढ़ता है और मिट्टी के कटाव को रोकता है। यह एक नवीकरणीय संसाधन है, जिसे बार-बार काटा जा सकता है। इसे बार-बार काटने पर पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। बांस का आर्थिक महत्व भी कम नहीं है, यह स्थानीय लोगों और आदिवासी समुदायों के लिए रोजगार का स्रोत है। बांस से बने उत्पाद न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मांग में हैं। ये सब मिलकर बांस को हरा सोना बनाता है।
छत्तीसगढ़ में बांस की प्रजातियाँ
छत्तीसगढ़ में बांस की लगभग 200 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो जंगलों में प्राकृतिक रूप से या खेती के माध्यम से उगाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख प्रजातियाँ हैं–
• डेंड्रोकैलमस स्ट्रिक्टस– इसे "लाठी बांस" के नाम से जाना जाता है। यह मजबूत और टिकाऊ होता है, जिसका उपयोग निर्माण कार्यों और हस्तशिल्प में होता है।
• बैंबूसा अरुंडिनासिया – यह बड़े आकार की होती है और घरों, पुलों, और फर्नीचर के लिए उपयुक्त है।
• बैंबूसा वल्गेरिस – सजावटी कार्यों और हल्के हस्तशिल्प के लिए लोकप्रिय है।
• डेंड्रोकैलमस हैमिल्टोनि – यह नमी वाले क्षेत्रों में बेहतर रूप से बढ़ता है और इसके डंठल मोटे तथा लंबे होते हैं। यह कारीगरों के बीच काफी लोकप्रिय है।
• डेंड्रोकैलमस एस्पर – इसे “जायंट बांस” कहा जाता है, क्योंकि यह आकार में बड़ा और मोटा होता है। यह फर्नीचर और हस्तशिल्प उद्योग में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
• बम्बूसा बाल्कोआ – यह प्रजाति अत्यंत मजबूत और लचीली होती है। इसका प्रयोग भवन निर्माण, सीढ़ियाँ, और विभिन्न औद्योगिक वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है।
ये प्रजातियाँ छत्तीसगढ़ के बस्तर, सरगुजा, रायपुर, और बिलासपुर जैसे क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। प्रत्येक प्रजाति की अपनी विशेषताएँ हैं, जो इन्हें विभिन्न कार्यों के लिए उपयुक्त बनाती हैं।
कैसे करें बांस की खेती
छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां होने वाली कृषि छत्तीसगढ़ के आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में काफी मददगार साबित होती है। बांस की खेती भी लोगों की आर्थिक आय का साधन बन सकता है। अभी के समय में बांस से पेपर, घरेलू सजावटी सामान, बर्तन आदि बनाए जा रहे हैं। बांस की खेती करने के लिए टिशु कल्चर वैरायटी के बांस की नर्सरी लगाई जाती है। बांस मिशन के तहत इसके उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
बांस उगाने के लिए एक एकड़ लगभग 400 बांस के पौधे को पांच-पांच फीट की दूरी में लगाना उपयुक्त माना जाता है। बांस के उत्पादन में ज्यादा पानी की भी आवश्यकता नहीं होती है साथ ही दीमक आदि की समस्या होने पर कीटनाशक का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक बांस की डंडी ₹50 के हिसाब से बाजारों में बिकती है, जो समय के साथ कम–ज्यादा होती रहती है। छत्तीसगढ़ में सरगुजा और बस्तर क्षेत्र के स्थानीय निवासी और आदिवासियों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों मुख्यतः बांस पर ही टिका हुआ है।
