Bal vivah ka itihas: छत्तीसगढ़ का बालोद बना भारत का पहला बाल विवाह मुक्त जिला, जानिए बाल विवाह का इतिहास, पढ़े पूरी डिटेल...
Bal vivah ka itihas: बाल विवाह एक ऐसी कुप्रथा है जिसने समाज को खोखला बनाने का काम किया है। यह प्रथा, जिसमें कम उम्र के बच्चों, विशेषकर लड़कियों की शादी कर दी जाती है। आइये जानते हैं इसका इतिहास..

Bal vivah ka itihas: बाल विवाह एक ऐसी कुप्रथा है जिसने समाज को खोखला बनाने का काम किया है। यह प्रथा, जिसमें कम उम्र के बच्चों, विशेषकर लड़कियों की शादी कर दी जाती है। भारत जैसे देशों में बाल विवाह का इतिहास प्राचीन काल से चला आ रहा है और यह आज भी कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है। इस प्रथा के अंतर्गत छोटी बालिकाओं का विवाह कम उम्र में कर दिया जाता है जिससे वे कुंठा और अपरिपक्वता का शिकार हो जाती हैं। इससे बालिकाएं घरेलू हिंसाओं का भी शिकार होती है।
कब से चली आ रही है यह प्रथा
बाल विवाह की जड़े प्राचीन काल से जुड़ी हुई है, जहां बालिकाओं को सिर्फ शादी करने, घर के काम देखने और वंश आगे बढ़ने का ही साधन माना जाता था। भारत में वैदिक काल में विवाह आमतौर पर वयस्कता में प्रवेश के बाद होते थे, लेकिन मध्यकाल तक सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं ने इसे बदल दिया। मध्यकाल के दौरान लगभग 12वीं से 18वीं शताब्दी के बीच जब मुस्लिम आक्रमणकारियों का वर्चस्व बड़ा तो इस समय बाल विवाह अधिक मात्रा में होने लगे और इसे समाज में प्रतिष्ठा का पैमाना माना जाने लगा।
बाल विवाह के कारण
बाल विवाह समाज में अंधविश्वास के कारण पैदा हुई थी और लगातार चली आ रही है। कई समुदायों में यह विश्वास है कि कम उम्र में शादी करने से लड़की की पवित्रता बनी रहती है और परिवार की इज्जत सुरक्षित रहती है। आर्थिक दृष्टिकोण से गरीबी एक बड़ा कारण है। कई परिवारों के लिए, लड़की की जल्दी शादी करना आर्थिक बोझ को कम करने का एक तरीका है, क्योंकि कम उम्र में दहेज की मांग कम हो सकती है। पुराने समय में लड़कियों को बोझ या एक संपत्ति समझा जाता था, जिससे दूसरों को कम उम्र में ही लड़की स्थानांतरित कर यौन हिंसा और सामाजिक बदनामी से बचा जा सके।
बाल विवाह के प्रभाव
बाल विवाह की वजह से समाज में काफी नकारात्मक प्रभाव बढ़े। कम उम्र में गर्भधारण से मातृ और शिशु मृत्यु दर बढ़ने का खतरा रहता है। किशोर माताओं को प्रसव संबंधी जटिलताएं और कुपोषण की समस्या का सामना करना पड़ता है, जो उनके और उनके बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है, क्योंकि कम उम्र में पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ, तनाव का कारण बनता है। बाल विवाह लड़कियों की पढ़ाई को बाधित करता है, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्थिति कमजोर होती है।
बाल विवाह के रोकथाम के उपाय
औपनिवेशिक काल में लगभग 19वीं सदी में समाज सुधारकों जैसे राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर तथा तात्कालिक गवर्नर विलियम बैंटिक ने इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। बाल विवाह के रोकथाम के लिए भारत सरकार ने कई कानून पारित किए हैं। जिसमें 1929 का शारदा अधिनियम एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने लड़कियों और लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की। 2006 में लागू बाल विवाह निषेध अधिनियम ने इसे और सख्त करते हुए लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष की आयु अनिवार्य की। संयुक्त राष्ट्र ने बाल विवाह को मानवाधिकार उल्लंघन माना है और 2030 तक इसे समाप्त करने का लक्ष्य रखा है।
देश का पहला बाल विवाह मुक्त जिला
छत्तीसगढ़ सरकार ने घोषणा की है कि राज्य का बालोद जिला देश का पहला बाल विवाह-मुक्त जिला बन गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाल विवाह-मुक्त भारत अभियान के तहत, जो 27 अगस्त 2024 को आरंभ हुआ था, छत्तीसगढ़ ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस उपलब्धि पर कहा कि बाल विवाह के उन्मूलन को राज्य सरकार ने सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। उनका लक्ष्य 2028-29 तक पूरे राज्य को बाल विवाह-मुक्त घोषित करना है।
