Babri masjid ka pura itihas: 5 घंटे में ही गिरा दिया गया विवादित ढांचा, जानिए 500 साल पुराने बाबरी मस्जिद का इतिहास!
Babri masjid ka pura itihas: भारतीय इतिहास में घटी कुछ घटनाएं आज भी लोगों के मन में मूर्त रूप में बसी हुई है। यहां की एक एक कंकड़ और पत्थर इस जगह के इतिहास को परिभाषित करती हैं। यह घटना है बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद की। इस घटना ने सालों तक लोग, समाज और न्याय व्यवस्था को प्रभावित किया। आज हम इस लेख में बाबरी मस्जिद के इतिहास के बारे में जागेंगे और समझेंगे कि किस विवाद के चलते इसे ध्वस्त करना पड़ा।

Babri masjid ka pura itihas: भारतीय इतिहास में घटी कुछ घटनाएं आज भी लोगों के मन में मूर्त रूप में बसी हुई है। यहां की एक एक कंकड़ और पत्थर इस जगह के इतिहास को परिभाषित करती हैं। यह घटना है बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद की। इस घटना ने सालों तक लोग, समाज और न्याय व्यवस्था को प्रभावित किया। आज हम इस लेख में बाबरी मस्जिद के इतिहास के बारे में जागेंगे और समझेंगे कि किस विवाद के चलते इसे ध्वस्त करना पड़ा।
बाबरी मस्जिद का इतिहास
यह बात है 16वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों की जब मुगल साम्राज्य भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा था। वर्ष 1528 में मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे बाबर के नाम पर बाबरी मस्जिद कहा गया। इस मस्जिद की संरचना लोधी वंश की वास्तुकला शैली में बनाई गई थी और इसमें तीन गुंबद थे। प्राप्त शिलालेखों से यह स्पष्ट होता है कि इस मस्जिद का नामकरण बाबर के सम्मान में किया गया था।
यह मस्जिद एक पहाड़ी पर स्थित थी जिसे स्थानीय लोग रामकोट के नाम से पुकारते थे। हिंदू समुदाय का मानना था कि यह स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है और यहां पहले एक प्राचीन मंदिर हुआ करता था लेकिन इस समय तक इसका कोई खास ठोस सबूत नहीं था।
बाबरी मस्जिद vs राम जन्मभूमि संघर्ष
19वीं सदी के मध्य से इस स्थल को लेकर तनाव की शुरुआत हो गई थी। 1853 में पहली बार हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच इस मुद्दे पर हिंसक झड़प हुई थी। अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासन में निर्मोही नामक हिंदू संप्रदाय ने दावा किया कि मस्जिद के स्थान पर पहले एक मंदिर था जिसे मुगल काल में तोड़ दिया गया था। इस दौर में दोनों समुदाय एक ही इमारत में पूजा-अर्चना करते थे लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद स्थिति बदल गई और बीच में एक दीवार का निर्माण कर दोनो हिस्सों को अलग कर दिया गया।
मंदिर निर्माण के लिए पहला कानूनी मामला सन 1885 में दायर किया गया, लेकिन इसका कोई सफल परिणाम नहीं निकला और यही लड़ाई निरंतर अभी तक जारी थी। फिर 23 दिसंबर 1949 के दिन एक ऐसी घटना घटी जिसने सबको हिला दिया। इस घटना के तहत कुछ लोगों ने चुपचाप मस्जिद के अंदर राम और सीता की मूर्तियां रख दीं। इस खबर के फैलते ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मूर्तियों को हटाने का आदेश दिया, लेकिन धार्मिक दबावों के वजह से इस निर्देश को लागू नहीं किया जा सका।
इस घटना के बाद मस्जिद में ताला लगा दिया गया और केवल हिंदू पुजारियों को साल मे कुछ ही दिनों के पूजा की अनुमति दी गई साथ ही मस्जिद में नमाज पर प्रतिबंध लग गया। 1986 में एक महत्वपूर्ण घटना हुई जब जिला अदालत ने मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया और हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दे दी। यह निर्णय मुस्लिमों को स्वीकार नहीं था जिससे दोनों पक्षों में तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी।
6 दिसंबर की ऐतिहासिक घटना
6 दिसंबर 1992 का दिन भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा दिन होने वाला था। उस दिन अयोध्या में डेढ़ लाख से अधिक कार सेवकों की एक विशाल रैली आयोजित की गई थी। घटना स्थल पर मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा के बड़े बड़े नेता मौजूद थे इन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को वचन दिया था कि मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, लेकिन जो हुआ वह पूरी तरह से विपरीत था। दोपहर 12 बजे के आसपास भीड़ बेकाबू हो गई और लोग हथौड़े और फावड़े लेकर मस्जिद की संरचना पर टूट पड़े। पुलिस और सुरक्षा बलों ने रोकने की कोशिश की लेकिन भीड़ इतनी विशाल थी कि उसे नियंत्रित करना असंभव हो गया।
दोपहर 2:30 बजे तक बाबरी मस्जिद का पूरा ढांचा तबाह हो चुका था। इस विध्वंस के बाद देशभर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। मुंबई, दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में दंगे हुए जिनमें 2 हजार से अधिक लोग मारे गए। विध्वंस के बाद यह मामला पूरी तरह से अदालतों में चला गया।
मस्जिद की खुदाई
अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को खुदाई करने का आदेश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वास्तव में मस्जिद के नीचे किसी मंदिर के अवशेष हैं। खुदाई में मिले साक्ष्यों से पता चला कि विवादित स्थल पर एक पहले धार्मिक संरचना थी जो पूरी तरह से गैर-इस्लामी थी। मलबे से निकले पत्थरों पर की गई नक्काशी भी हिंदू मंदिर की ओर ही इशारा कर रही थीं।
सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
9 नवंबर 2019 के दिन सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया। न्यायालय ने संपूर्ण 2.77 एकड़ विवादित भूमि राम मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया। साथ ही मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही किसी उपयुक्त स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ भूमि देने का निर्देश दिया गया।
