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Adbhar Ashtabhuji Mata Mandir: छत्तीसगढ़ का एकमात्र दक्षिणमुखी माता का मंदिर, जानिए अड़भार अष्टभुजी माता मंदिर का प्राचीन इतिहास

Adbhar Ashtabhuji Mata Mandir: छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में कई ऐसे मंदिर शामिल हैं जिनकी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता अत्यंत गहरी है। उन्हीं में से एक है अड़भार अष्टभुजी माता मंदिर। यह मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि पुरातात्त्विक दृष्टि से भी एक अनमोल धरोहर है। यहाँ माता अष्टभुजी का दक्षिणमुखी स्वरूप स्थापित है, जो अपने आप में अत्यंत दुर्लभ माना जाता है।

Adbhar Ashtabhuji Mata Mandir: छत्तीसगढ़ का एकमात्र दक्षिणमुखी माता का मंदिर, जानिए अड़भार अष्टभुजी माता मंदिर का प्राचीन इतिहास
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By Chirag Sahu

Adbhar Ashtabhuji Mata Mandir: छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में कई ऐसे मंदिर शामिल हैं जिनकी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता अत्यंत गहरी है। उन्हीं में से एक है अड़भार अष्टभुजी माता मंदिर। यह मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि पुरातात्त्विक दृष्टि से भी एक अनमोल धरोहर है। यहाँ माता अष्टभुजी का दक्षिणमुखी स्वरूप स्थापित है, जो अपने आप में अत्यंत दुर्लभ माना जाता है।

कहां स्थित है यह मंदिर

यह मंदिर छत्तीसगढ़ के सक्ति जिले के मालखरौदा तहसील के अड़भार गांव में स्थित है। पहले यह क्षेत्र जांजगीर-चांपा जिले के अंतर्गत आता था। अड़भार गांव का नाम भी अपने आप में विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि पहले इस स्थान को “अष्ट द्वार” कहा जाता था, जो समय के साथ बदलकर “अड़भार” हो गया। यह क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है और धार्मिक पर्यटन के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।

ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक महत्व

अड़भार अष्टभुजी माता मंदिर की उत्पत्ति का संबंध प्राचीन काल से है। यहां पाँचवीं से छठी शताब्दी के अवशेष मिले हैं, जिससे इसकी प्राचीनता स्पष्ट होती है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को संरक्षित किया गया है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अध्ययन के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

देवी का स्वरूप और विशेषताएँ

इस मंदिर में विराजमान देवी अष्टभुजी माता के आठ हाथ हैं, जिनमें वे अलग-अलग शस्त्र और प्रतीक धारण किए हुए हैं। यह मूर्ति ग्रेनाइट पत्थर की बनी है और दक्षिण दिशा की ओर मुख किए हुए है, जो इसे और भी विशिष्ट बनाता है। मूर्ति के दाहिनी ओर “देगुन गुरु” की योग मुद्रा में एक प्रतिमा भी स्थापित है, जो मंदिर परिसर को और भी आध्यात्मिक बनाती है। नवरात्रि के समय यहां “ज्योति कलश” जलाने की परंपरा है, जिसे भक्त विशेष श्रद्धा के साथ निभाते हैं।

धार्मिक मान्यताएँ और सांस्कृतिक महत्व

अड़भार अष्टभुजी माता मंदिर को शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि माता के दर्शन मात्र से उनकी सभी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं। विशेषकर नवरात्रि के समय यहां भारी संख्या में भक्त पहुँचते हैं। इन नौ दिनों में मंदिर परिसर भक्ति और उत्सव का केंद्र बन जाता है। भक्तजन माता के चरणों में प्रसाद चढ़ाते हैं, कलश स्थापित करते हैं और ज्योत जलाते हैं। यहाँ का वातावरण अध्यात्म और भक्ति से ओतप्रोत रहता है।

दर्शन और पूजा व्यवस्था

मंदिर प्रतिदिन दर्शन के लिए खुला रहता है। भक्तजन सुबह और शाम के समय माता के दर्शन कर सकते हैं। हालांकि नवरात्रि और विशेष पर्वों पर मंदिर का समय बढ़ा दिया जाता है, ताकि अधिक से अधिक श्रद्धालु देवी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

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