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2 June : 2 जून कल ... आख़िर क्या राज है " 2 जून की रोटी" का

आखिर दो जून की रोटी से क्या मतलब है। इसका कुछ शाब्दिक अर्थ है या ऐसे ही कहा जाता है दो जून की रोटी।

2 June : 2 जून कल ... आख़िर क्या राज है  2 जून की रोटी का
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By Meenu

कल 2 जून है और इस पर कहावत है 2 जून की रोटी... पर क्या आप जानते हैं आखिर क्यों कहते हैं. यदि नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर दो जून की रोटी से क्या मतलब है। इसका कुछ शाब्दिक अर्थ है या ऐसे ही कहा जाता है दो जून की रोटी।

क्यों कहते हैं दो जून की रोटी



दरअसल दो जून एक कहावत है। पर ये एक अवधी भाषा का शब्द है। अवधी भाषा में जून का अर्थ होता है वक्त यानी समय। यानी दोनों समय का भोजन। इसलिए पुराने जमाने में बुजूर्ग सुबह शाम के भोजन को दो जून की रोटी के साथ संबोधित करते थे।

कहते हैं हर किसी के नसीब में दो जून की रोटी नहीं होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज के समय में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि गरीबों को दो जून की रोटी नसीब नहीं होती है।

जून से ही क्यों जोड़ते हैं दो जून की रोटी

वैसे तो दो जून का मतलब दो समय की रोटी से होता है। लेकिन ये कहावत जून के महीने में ज्यादा ट्रेंडिंग में आ जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि अंग्रेजी कैलेंडर का जून और हिन्दी का ज्येष्ठ का महीना सबसे गर्म माना जाता है। ऐसे में सभी इंसानों को भोजन और पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। शायद यही कारण है कि जून के महीने में 2 जून की रोटी वाली कहावत ज्यादा चलन में आ जाती है। ऐसा माना जाता है कि ये कहावत आज से नहीं बल्कि 600 सालों पहले से चली आ रही है।

कितने साल पुरानी है दो जून की रोटी कहावत

दो जून की रोटी कहावत का जिक्र सालों से चला आ रहा है। इसे लेकर कई इतिहासकारों ने इसका जिक्र अपनी रचनाओं में भी किया है। इसमें प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद तक की अपनी कहानियों में शामिल किया।


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