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फैमिली का राजनीति ड्रामा : रातों-रात भतीजे का तख्ता पलटकर चाचा ने पार्टी ने जमाया कब्जा…..सांसद भतीजा शिकायत लेकर पहुंचा तो 25 मिनट तक चाची ने दरवाजा ही नहीं खुलने दिया…. पिता की बिरासत से बेटा बाहर, भाई ने जमा लिया कब्जा

फैमिली का राजनीति ड्रामा : रातों-रात भतीजे का तख्ता पलटकर चाचा ने पार्टी ने जमाया कब्जा…..सांसद भतीजा शिकायत लेकर पहुंचा तो 25 मिनट तक चाची ने दरवाजा ही नहीं खुलने दिया…. पिता की बिरासत से बेटा बाहर, भाई ने जमा लिया कब्जा
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By NPG News

नयी दिल्ली 14 जून 2021। लोक जनशक्ति पार्टी में बवाल मचा है। भतीजे चिराग पासवान को गद्दी से हटाकर चाचा पशुपतिनाथ पारस ने पार्टी पर कब्जा कर लिया है। पार्टी के छह सांसदों में से चिराग को छोड़कर 5 सांसदों ने रातों-रात पार्टी का तख्ता पलट कर दिया। 5 सांसदों ने चिराग पासवान को हटाकर पशुपतिनाथ पारस को संसदीय दल का नेता बना बना दिया। अब इस मामले में सांसदों ने मिलकर लोकसभा अध्यक्ष को लिखित सूचना दे दी है, वहीं चुनाव आयोग को भी जानकारी दे दी है कि चिराग नहीं पार्टी के सुप्रीमो अब पशुपति नाथ पारस होंगे।

बिहार चुनाव से ही एलजेपी में फूट की सुगबुगाहट सुनायी पड़ने लगी थी। चिराग का बिहार में एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ना पार्टी के अंदर ही बगावत बुलंद करने लगा था। आरोप है कि चिराग की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा की वजह से ये बचकाना फैसला लिया गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि विहार विधानसभा जेडीयू को इसका बड़ा नुकसान तो हुआ ही, खुद एलजेपी भी सिर्फ 1 सीट पर सिमट गयी।

चाचा बने बागी, भाई ने भी नहीं दिया साथ
यह फैसला तब हुआ है जब केंद्र सरकार अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल में विस्तार की योजना बना रही है। पार्टी के पांच सांसदों ने चिराग से अलग होने का फैसला लिया है।इनमें पासुपति पारस पासवान (चाचा), प्रिंस राज (चचेरे भाई), चंदन सिंह, वीणा देवी, और महबूब अली केशर शामिल हैं। अब चिराग पार्टी में अकेले ही रह गए हैं। पहले चार सांसदों के अलग होने की खबर आई थी।चिराग के चाचा पशुपति पारस की अगुवाई में यह टूट हुई है। उनके भाई प्रिंस भी अब अलग हो गए हैं।

चाचा को मनाने पहुंचे चिराग, करना पड़ा इंतजार

सोमवार को जब पशुपति पारस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म की, उसके कुछ देर बाद ही चिराग पासवान अपने चाचा के आवास पर पहुंचे. चेहरे पर मास्क लगाए हुए चिराग पासवान गाड़ी में सवार होकर पशुपति पारस के घर पहुंचे, लेकिन घर में उन्हें आसानी से एंट्री नहीं मिली.
करीब 25 मिनट तक वो बाहर गाड़ी में ही इंतजार करते रहे और गेट खुलने तक वहीं रहे. करीब 25 मिनट बाद जब गेट खुला, तब चिराग घर में गए. लेकिन पशुपति पारस तब वहां पर मौजूद नहीं थे. ऐसे में कुछ देर वहां रुकने के बाद चिराग पासवान वापस आ गए. अब पशुपति पारस और अन्य लोजपा के सांसदों की मुलाकात लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला से होनी है, ऐसे में पार्टी की अगली रणनीति क्या रहती है और कैसे बिहार की राजनीति करवट लेती है, इसपर हर किसी की नज़र है.

परिवार में चिराग के प्रति नाराजगी

परिवार की बात करें तो सांसद चाचा पशुपति पारस और सांसद चचेरा भाई प्रिंस राज, चिराग पासवान के कार्यशैली से असंतुष्ट थे. प्रिंस राज की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि बिहार प्रदेश लोक जनशक्ति पार्टी का अध्यक्ष पद का बंटवारा करके राजू तिवारी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया था. पशुपति पारस की भी नाराजगी उस समय से देखी जा रही है जब से चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर और खास तौर पर जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. पशुपति पारस नहीं चाहते थे कि लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए से अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़े, मगर इसके बावजूद भी एकतरफा फैसला करते हुए चिराग पासवान ने ऐसा किया जिसको लेकर पशुपति पारस नाराज थे.पिछली सरकार में पशुपति पारस नीतीश सरकार में मंत्री थे और दोनों नेताओं के बीच बेहतर संबंध भी हुआ करते थे. इसके साथ ही चिराग पासवान के द्वारा पार्टी के अन्य सांसदों को भी तरजीह नहीं दी जा रही थी जिसका फायदा ललन सिंह और महेश्वर हजारी ने अपने ऑपरेशन में उठाया. बता दें कि विधानसभा चुनाव के बाद एक मौका ऐसा भी आया था जब लोजपा सांसद चंदन सिंह ने नीतीश कुमार से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद से ही अटकलें लगनी तेज हो गई थी कि लोक जनशक्ति पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है और पार्टी के अंदर बगावत शुरू हो गई है. और अब बिहार चुनाव के कुछ वक्त बाद ही लोक जनशक्ति पार्टी टूट गई है और चिराग पासवान अकेले खड़े हैं.

एनडीए से अलग होने का फैसला पड़ा भारी!

जानकारी के मुताबिक, लोक जनशक्ति पार्टी के अन्य सांसदों ने उस वक्त चिराग पासवान के फैसले पर आपत्ति जताई थी. मगर चुनाव के दौरान रामविलास पासवान के हुए निधन के कारण पार्टी के नेताओं ने चिराग पासवान का खुलकर विरोध नहीं कर पाए.चिराग पासवान के नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा और सबसे ज्यादा नुकसान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को पहुंचाया, जिसके कारण चुनाव में JDU केवल 43 सीट ही जीत सकी.

… जदयू ने लिया विधानसभा चुनाव का बदला?

चिराग पासवान की पार्टी के द्वारा जनता दल यूनाइटेड को चुनाव में जो नुकसान पहुंचाया गया इसका बदला लेने के लिए चुनाव के तुरंत बाद नीतीश कुमार की पार्टी ऑपरेशन में लग गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि कुछ महीनों के अंदर ही लोक जनशक्ति पार्टी के इकलौते विधायक राजू कुमार सिंह को JDU में शामिल करा लिया गया.इस पहली सफलता के बाद JDU ने चिराग पासवान को नुकसान पहुंचाने के लिए एक बार फिर से नए ऑपरेशन में लग गई. सूत्रों के मुताबिक, लोक जनशक्ति पार्टी को तोड़ने में JDU के 2 बड़े नेताओं ने सबसे अहम भूमिका निभाई, जिनमें से एक सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और दूसरे बिहार विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी हैं.बताया जा रहा है कि ललन सिंह और महेश्वर हजारी काफी समय से दिल्ली में ही रहकर इस ऑपरेशन की तैयारी कर रहे थे, जिसमें बीजेपी का भी उन्हें खुलकर समर्थन मिला. जानकारी के मुताबिक, रामविलास पासवान के निधन के बाद से ही चिराग पासवान को लेकर उनके परिवार और पार्टी में नाराजगी नजर आ रही थी.

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