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ड्राइवर के बेटे से खूंखार आतंकवादी तक का सफर, गृहमंत्री की बेटी का अपहरण कर चर्चा में आया था यासीन मलिक, 20 साल छोटी पाकिस्तानी कलाकार से की थी शादी

ड्राइवर के बेटे से खूंखार आतंकवादी तक का सफर, गृहमंत्री की बेटी का अपहरण कर चर्चा में आया था यासीन मलिक, 20 साल छोटी पाकिस्तानी कलाकार से की थी शादी
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By NPG News

नईदिल्ली 25 मई 2022. टेरर फंडिंग केस में दोषी करार दिए जा चुके अलगाववादी यासीन मलिक को आज उसके गुनाहों की सजा मिल गई है। टेरर फंडिंग के मामले में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। आइये आपको बताते हैं कश्मीर की आजादी और शांति को भंग करने वाले आतंक का सरगना आखिर यासीन मलिक है कौन?..

कौन है यासीन मलिक

यासीन मलिक का जन्म 3 अप्रैल, 1966 को मैसुमा (श्रीनगर) में हुआ था. यासीन मलिक के पिता गुलाम कादिर मलिक एक सरकारी बस ड्राइवर थे। यासीन की पूरी पढ़ाई-लिखाई श्रीनगर में ही हुई है। श्री प्रताप कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले यासीन मलिक ने एक साक्षात्कार में एक आम छात्र से प्रतिबंधित संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का मुखिया बनने तक की कहानी बताई थी।उसने दावा किया था कि कश्मीर में सेना का जुल्म देखकर उसने हथियार उठाया. बाद में यासीन मलिक ने 80 के दशक में ताला पार्टी का गठन किया था। जिसके चलते उसने घाटी में कई बार आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था।

यासीन का निकाह मुशाल हुसैन

यासीन मलिक की मुशाल हुसैन से मुलाकात 2005 में हुई थी. यासीन कश्मीर के अलगाववादी मूवमेंट के लिए पाकिस्तान का समर्थन मांगने वहां गया था. वहां यासीन के भाषण को सुनने के बाद मुशाल हुसैन उससे प्रभावित हो गई. बाद में दोनों एक दूसरे के करीब आ गए. 22 फरवरी 2009 को यासीन मलिक ने पाकिस्तानी कलाकार मुशाल हुसैन से निकाह किया. मार्च 2012 में मुशाल और यासीन को एक बेटी हुई. उसका नाम रजिया सुल्ताना है. मुशाल हुसैन अपने शौहर यासीन से उम्र में 20 साल छोटी है. मुशाल हुसैन के पाकिस्तान में नेताओं और अधिकारियों के साथ अच्छे संबंध है. मुशाल के पिता अंतरराष्ट्रीय स्तर के अर्थशास्त्री थे, जबकि उनकी मां पाकिस्तान मुस्लिम लीग महिला विंग की महासचिव थीं. मुशाल ने 6 साल की उम्र में पेंटिंग शुरू कर दी थी और वह सेमी न्यूड पेंटिंग बनाने के लिए प्रसिद्ध है.

'ताला पार्टी'

साल 1986 में मलिक ने 'ताला पार्टी' का नाम बदलकर 'इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग यानी आईएसएल' कर दिया था, जिसमें केवल कश्मीर के युवाओं को शामिल किया गया, जिनका मकसद सिर्फ कश्मीर को भारत से अलग करना था। इसके सदस्यों में अशफाक मजीद वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे आतंकी शामिल थे, जिन्होंने आजाद कश्मीर के नाम पर दुनिया की जन्नत में केवल हिंसा फैलाने का काम किया।

आतंकी घटनाओं को दिया अंजाम

साल 1986 में यासीन मलिक ने 'ताला पार्टी' का नाम बदलकर 'इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग यानी आईएसएल' कर दिया गया। इसमें वह केवल कश्मीर के युवाओं को शामिल करता था और इसका मकसद कश्मीर को भारत से अलग करना था। आगे चलकर आईएसएल में अशफाक मजीद वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे आतंकी शामिल हुए, जिन्होंने कश्मीर में कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया।

JKLF का एरिया कमांडर

1987 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यासीन मलिक के नेतृत्व में इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग, मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (MUF) में शामिल हो गई थी। हालांकि संविधान पर भरोसा ना होने के कारण आईएसएल ने किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा लेकिन उसने श्रीनगर के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में एमयूएफ के लिए प्रचार करने की जिम्मेदारी ली। इसके बाद यासीन मलिक 1988 में Jammu Kashmir Liberation Front (JKLF) का एरिया कमांडर बन गया।

गृहमंत्री की बेटी का अपहरण

तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर खूंखार आतंकवादियों को रिहा करवाने के पीछे भी जेकेएलएफ का यासीन मलिक ही चेहरा था। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन को अंजाम देने वाले जेकेएलएफ ने सरकारी कर्मचारियों से लेकर भारत समर्थक हर वर्ग के लोगों को खुलकर निशाना बनाया। 1994 तक जेकेएलएफ के चीफ के तौर पर कत्लेआम मचाने वाले यासीन मलिक ने हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत के जरिये कश्मीर को आजाद कराने का फैसला लिया. पाकिस्तान ने भी यासीन मलिक को जेकेएलएफ के सर्वमान्य नेता के तौर पर मान्यता दी। तत्कालीन सरकारों ने घाटी में आतंकवाद को खत्म करने के लिए कड़े फैसले लेने की जगह हत्याओं में सीधे तौर पर शामिल रहे यासीन मलिक जैसे आतंकियों को अलगाववादी नेता के तौर पर स्थापित होने में मदद की। हालांकि, उस पर कुछ मुकदमे चलते रहे। लेकिन, यासीन मलिक को सजा देने की बजाय उसके लिए रेड कार्पेट बिछा दी गई. वामपंथी विचारधारा के एक बड़े बुद्धिजीवी वर्ग ने यासीन मलिक को हाथोंहाथ लिया. और, उसे कश्मीर से उग्रवाद को खत्म करने वाला अलगाववादी नेता बना दिया। जबकि, जेकेएलएफ पत्थरबाजी से लेकर आतंकी घटनाओं में शामिल रहा।

हमले में नाम

1980 दशक से ही कश्मीर में हिंदुओं पर हमले होने लगे थे और इसमें यासीन मलिक और उसके साथियों का नाम आता था. कश्मीर में बढ़ती हिंसा की घटनाओं को देखते हुए 7 मार्च, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जम्मू कश्मीर की गुलाम मोहम्मद शेख सरकार को बर्खास्त कर दिया और वहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया। बाद में कांग्रेस ने फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ हाथ मिला लिया. फिर 1987 में विधानसभा चुनाव हुए और इसमें अलगाववादी नेताओं ने मिलकर एक नया गठबंधन किया। यासीन मलिक ने इस गठबंधन के प्रत्याशी मोहम्मद युसुफ शाह के लिए प्रचार किया. बाद में इसी युसुफ शाह ने आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का गठन किया, जो आज युसुफ शाह को सैयद सलाहुद्दीन के नाम से जाना जाता है।

रैली में फोड़ा पटाखा

13 जुलाई 1985 को कश्मीर के ख्वाजा बाजार में नेशनल कॉन्फ्रेंस की रैली हो रही थी। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद थे। इस दौरान 60 से 70 लड़के पहुंचे और बीच में ही पटाखा फोड़ दिया। उस वक्त सबको लगा कि बमबारी शुरू हो गई है। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल बन गया। तब पहली बार यासीन मलिक पकड़ा गया।

क्रिकेट मैच खराब करने क आरोप

ये बात 13 अक्तूबर 1983 की है। कश्मीर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में भारत और वेस्ट इंडीज का क्रिकेट मैच चल रहा था। लंच ब्रेक में अचानक 10-12 लड़के बीच मैदान में पहुंच गए और पिच खराब करने लगे। इस वारदात को ताला पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही अंजाम दिया था।

चुनाव हारे

1987 में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) चुनाव हार गई। इसके बाद पूरे कश्मीर में हिंसा की घटनाएं बढ़ गईं। कहा जाता है कि यासीन मलिक ने पूरे कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा दिया। 1988 में यासीन मलिक जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ से जुड़ गया। वह एरिया कमांडर था। इसके जरिए यासीन मलिक ने कश्मीरी युवाओं को देश के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया।


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