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खामोश राष्ट्रपति नहीं चाहिए: यशवंत सिन्हा बोले- अपने संवैधानिक दायित्व का प्रयोग करें राष्ट्रपति, पीएम को सलाह दे

खामोश राष्ट्रपति नहीं चाहिए: यशवंत सिन्हा बोले- अपने संवैधानिक दायित्व का प्रयोग करें राष्ट्रपति, पीएम को सलाह दे
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By NPG News

रायपुर। विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने गुरुवार को राजधानी में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि देश को खामोश राष्ट्रपति नहीं, बल्कि ऐसे राष्ट्रपति की जरूरत है, जो अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करे। प्रधानमंत्री को सलाह दें। जो कठपुतली हैं, वे निश्चित रूप से ऐसा नहीं करेंगे।

एक होटल में पत्रकारों से चर्चा करते हुए सिन्हा ने कहा कि मैं अपने अभियान के दौरान आया हूं। अभियान की शुरुआत हमने की थी दिल्ली से सबसे दूर जो जगह है केरल तिरुवनंतपुरम से। तिरुवनंतपुरम केरल ऐसा राज्य है, जहां से हमें 100 फीसदी वोट मिलने वाले हैं। सेक्युलर जगह है। सब लोग जुटे। चेन्नई गए। वहां कार्यक्रम हुआ। वहां पर भी डीएमके के साथी सीएम स्टालिन और उनके सहयोगी दलों ने वहां पर अपने सहयोग का आश्वासन दिया।

आज मैं आपके बीच में हूं। छत्तीसगढ़ से मेरा विशेष संबंध है। वह संबंध यह है कि 60 साल पहले मैं यहां भिलाई आया था। यहां मेरी शादी हुई थी। इसलिए मैं बराबर विशेष लगाव छत्तीसगढ़ से महसूस करता हूं। यहां बहुत आनंद आता है।

राष्ट्रपति का पद अत्यंत गरिमा का पद है। अच्छा तो यह होता कि इस पद के लिए चुनाव होता ही नहीं और सर्व सम्मति से पक्ष विपक्ष दोनों मिल बैठते और किसी एक व्यक्ति को सर्व सम्मति से चुन लिया जाता। ऐसा करने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष कीथी। उन्होंने नहीं बताया कि उनका प्रत्याशी कौन होगा।

केंद्र में जो विपक्षी दल हैं, उनकी दो मीटिंग्स हुईं। कुछ अनौपचारिक मीटिंग हुई। अंतत: मुझसे पूछा कि क्या मैं उनका साझा उम्मीदवार बनना चाहूंगा। जब मैं हामी भरी तो उन्होंने मेरे नाम की घोषणा की। लेकिन कुछ देर के बाद सत्ता पक्ष ने अपने उम्मीदवार की घोषणा की। इस तरह चुनाव की बिसात बिछ गई। हम लोग चुनाव मैदान में हैं।

मैं कह रहा था कि राष्ट्रपति का पद अत्यंत गरिमा का पद है। राष्ट्रपति के कुछ कर्तव्य भी निर्धारित हैं संविधान में। हमने देखा है कि ऐसे भी राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने पद की शोभा बढ़ाई है। कभी कभी खामोश राष्ट्रपति भी आए हैं और जो अपने निर्धारित जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए नहीं निभाई।

आज हमारे देश की परिस्थिति बहुत विकट है। चारों तरफ समाज में अशांति का वातावरण है। अशांति के मूल में एक विचारधारा है, जो समाज को बांटकर रखना चाहती है, वह भी सांप्रदायिक रेखाओं के अनुसार। संविधान इसकी इजाजत नहीं देखा है, क्योंकि संविधान में नागरिकों के अधिकार अच्छी तरह परिभाषित हैं और अगर उनकी अवहेलना कोई करता है तो हम सब उसके पक्ष में खड़े होते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन जब सरकार ही इन प्रवृत्तियों को बढ़ावा देती है तो जैसा मैं कह रहा था कि मुश्किल परिस्थिति पैदा होती है। इसलिए मैं मानता हूं कि आज हमें खामोश राष्ट्रपति नहीं चाहिए। जो राष्ट्रपति भवन में जाए जरूर, लेकिन अपने कर्तव्यों का वहन न करे। ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति बने जो अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करे।

एक अधिकार जो राष्ट्रपति का है, वह है कि सरकार को मशविरा दे सकते हैं, सलाह दे सकते हैं। वे अगर प्रधानमंत्री के हाथ में कठपुतली हैं तो ऐसा नहीं करेंगे जाहिर है। अगर मैं इस चुनाव में खड़ा हूं इस पद के लिए तो इस आशा और विश्वास के साथ खड़ा हूं कि मैं इस दायित्व का निर्वहन कर सकूंगा। ऐसा नहीं है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच टकराव की स्थिति बने, लेकिन सलाह मशविरा की स्थिति बन सकती है। मेरा प्रयास होगा कि उस पद पर बैठकर मैं यह कर्तव्य निभाऊं।

छत्तीसगढ़ से मैं बहुत उम्मीदें लेकर आया हूं। मुझे विश्वास है कि हमारी उम्मीद पूरी होगी। मैं सबसे आग्रह करना चाहता हूं, जो दल हमें समर्थन दे रहे हैं, उसके अलावा खासकर भाजपा के मित्र हैं, पुराने साथी हैं, उनसे भी कहना चाहता हूं कि परिस्थिति ऐसी बनी है कि जब उन्हें भी अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और लकीर का फकीर नहीं होना चाहिए। मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि इतने सारे विपक्षी दलों ने मुझे अपना उम्मीदवार चुना है। मैं आश्वस्त करना चाहूंगा कि कोशिश करने में कहीं कमी नहीं होने दूंगा।

27 जून को हमने अपना नामांकन दाखिल किया था और 28 से ही निकल पड़े। तब से चल रहे हैं और चलते रहेंगे, जब तक कि 18 जुलाई को मत नहीं पड़ जाते।

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