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77 लाख, 77 पैसे के बराबर

77 Lakhs equal to 77 paise… Tarkash, a weekly column by journalist Sanjay K. Dixit focused on the bureaucracy and politics of Chhattisgarh

77 लाख, 77 पैसे के बराबर
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By NPG News

संजय के. दीक्षित

तरकश, 18 दिसंबर 2022

77 लाख, 77 पैसे के बराबर

प्रेमचंद के जमाने में मास्टर साब लोग दीन-हीन होते थे। लाचार। बेचारे। मगर अब वो दौर नहीं रहा। अब इतने सक्षम और गुणी कि सरकारी खजाने को भी चूना लगा दे रहे हैं। हम बात कर रहे हैं बिलासपुर जिले के बेलतरा स्कूल के व्याख्याता की। ट्रेजरी के बाबू से मिलकर फर्जी बिलों के आधार पर मास्टर साब ने 77 लाख रुपए अपने एकाउंट में ट्रांसफर करवा लिया। मतलब सरकारी खजाने में खुली डकैती। आश्चर्य यह कि बिना रिश्वत दिए ट्रेजरी से सौ रुपए पास नहीं होता, वही ट्रेजरी ने मास्टर साब के खाते में बिना वजह 77 लाख ट्रांसफर कर दिया। इस मामले में स्कूल शिक्षा और ट्रेजरी का रोल चोर-चोर मौसेरा भाई जैसा प्रतीत हो रहा है। डीईओ के पत्र लिखने के बाद भी डीपीआई ने रिकवरी तो दूर की बात एफआईआर तक कराने की जहमत नहीं उठाई, तो ट्रेजरी का भगवान मालिक हैं...अपना पैसा होता तो अधिकारी थाने दौड़ गए होते या फिर एसपी, कलेक्टर को बोलकर मास्टर साब का ऐसी-तैसी करा दिए होते मगर सरकारी पैसा है...। दिक्कत यह है कि सिस्टम वर्क नहीं कर रहा। अब चीफ सिकरेट्री बोलेंगे तो ट्रेजरी वाले कार्रवाई करेंगे वरना सुनकर भी अनसूना। बात वही...सरकारी पईसा है...77 लाख उनके लिए 77 पैसे के बराबर।

ढाई साल...कोई प्रभाव नहीं

छत्तीसगढ़ की सियासत में ढाई साल ऐसा वर्ड है जिसको लेकर नेता हो या मीडिया या फिर आम आदमी...हर किसी की जिज्ञासा बढ़ जाती है। सरकार के चार साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजधानी के प्रमुख पत्रकारों से मुलाकात में यह सवाल आया कि क्या ढाई साल का इश्यू नहीं होता तो कामकाज का रिजल्ट और बेहतर होता? ढाई साल की वजह से सरकार डिफेंसिव हो गई? मुख्यमंत्री ने सधे अंदाज में जवाब दिया। बोले, ये कोई नई बात नहीं है...सियासत में ये सब चलता रहता है...जो सत्ता में होते हैं, उन्हें हटाने की कोशिशें होती हैं। मगर इससे सरकार के कामकाज और आउटपुट पर कोई असर नहीं पड़ा। हमारी सरकार ने आम आदमी का विश्वास जीतने का काम किया।

नए जिले...अब बिल्कुल नहीं

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्पष्ट कर दिया है कि छत्तीसगढ़ में अब नए जिले नहीं बनेंगे। उन्होंने खास इंटरव्यू में कहा कि जिलों के सेटअप बनाने में टाईम लगता है, सो फिलहाल और जिला बनाना अब संभव नहीं है। जाहिर है, भूपेश बघेल सरकार ने चार साल में पांच नए जिले बनाएं हैं। सबसे पहले 2020 में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। फिर इस साल मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, सारंगढ़-बिलाईगढ़, सक्ती और मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-सोनहत। इसके बाद चर्चा थी कि अगले साल विधानसभा चुनाव से पहिले जिलों की संख्या बढ़कर 36 हो जाएंगी। विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने एक बार बयान भी दिया था कि जिलों की संख्या बढ़कर 36 होगी। संभावित नए जिलों में पत्थलगांव, भानुप्रतापपुर, सराईपाली और अंतागढ़ की दावेदारी प्रबल है। मगर जिला बनने के लिए उन्हें कुछ और इंतजार करना पड़ेगा। हालांकि, ये सही है कि सियासत में कई बार अचानक चौंकाने वाला कुछ हो जाता है...अगर ऐसा हुआ तो ठीक वरना, इस सरकार में जिलों की संख्या अब 33 ही रहेगी।

सीएम के सिकरेट्री

सरकार बदलने के बाद आमतौर पर सिकरेट्री टू सीएम बदल जाते हैं। मगर हिमाचल प्रदेश के नए सीएम सुखविंदर सिंह ने शुभाशीष पंडा को ही कंटीन्यू करने का फैसला किया है। शुभाशीष 97 बैच के आईएएस हैं। समान्यतया ऐसा देखा जाता है कि सीएस, डीजीपी भले ही नहीं बदलते मगर मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसर जरूर बदल जाते हैं। जाहिर है, कोई भी मुख्यमंत्री अपनी पसंद से सिकरेट्री अपाइंट करते हैं। दरअसल, माना ये जाता है कि सीएम सचिवालय के सिकरेट्री अगर लंबे समय तक पोस्टेड रह गए तो उनकी समानांतर सत्ता चलने लगती है। मगर अपवाद भी होते हैं। उनके शुभाशीष भी है.. छबि अच्छी है लिहाजा, सरकार बदलने के बाद भी नए सीएम ने उन्हें कंटीन्यू करना मुनासिब समझा।

आनन-फानन में पोस्टिंग

छत्तीसगढ़िया आईएएस धनंजय देवांगन को सरकार ने आनन-फानन में रेरा अपीलीय प्राधिकारण का सदस्य प्रशासकीय और तकनीकी अपाइंट कर दिया। लास्ट संडे उनके वीआरएस के लिए अप्लाई करने की खबर मीडिया में आई और पांचवे दिन दोपहर वीआरएस मंजूर करने के साथ शाम को प्राधिकरण में पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का आर्डर निकल गया। बता दें, 2018 में रेरा का गठन हुआ था। मगर अपीलीय प्राधिकरण काफी दिनों तक लटका रहा। इस साल रिटायर जस्टिस शरद गुप्ता को रेरा अपीलीय अथॉरिटी का चेयरमैन बनाया गया किन्तु कोई मेम्बर नहीं था। पता चला है, अथॉरिटी का अफसरों पर प्रेशर बढ़ा तो तलाश शुरू हुई...जल्दी में कौन रिटायर हो रहा है। धनंजय देवांगन फरवरी में सेवानिवृत्त होने वाले थे। वे फौरन रिटायरमेंट लेने के लिए तैयार हो गए। बहरहाल, उनके साथ अरविंद कुमार चीमा को सदस्य विधिक बनाया गया है। चीमा का नाम अवश्य लोगों को चौंकाया। सबका यही सवाल था, चीमा कौन? बाद में पता चला कि चीमा रायपुर लोवर कोर्ट में वकालत कर चुके हैं तथा कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे हैं।

नए निर्वाचन आयुक्त-1

रिटायरमेंट के सात महीने बाद भी ठाकुर राम सिंह की राज्य निर्वाचन आयुक्त की कुर्सी बरकरार है तो इसकी वजह यह है कि सरकार ने रिटायरमेंट के बाद नए निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग तक पद पर बने रहने की मियाद छह महीने से बढ़ाकर एक साल कर दिया है। पुराने नियमों के तहत रिटायरमेंट के बाद निर्वाचन आयुक्त अधिकतम छह महीने तक कुर्सी पर बने रह सकते थे। इस हिसाब से राम सिंह को नवंबर में कुर्सी छोड़ देनी थी। क्योंकि, मई 2022 में वे रिटायर हुए थे। मगर इस नियम में सरकार ने संशोधन कर एक साल कर दिया है। याने राम सिंह अब अगले साल मई तक राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर रह सकते हैं। इस दौरान उन्हें वेतन से लेकर सारी सुविधाएं मिलती रहेंगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त संवैधानिक पद है इसलिए इसे खाली नहीं रखा जा सकता। प्रोटोकॉल और वेतन, सुविधाओं के मामले में यह हाईकोर्ट के जस्टिस के समकक्ष पद है। वैसे भी, राम सिंह पोस्टिंग के मामले में किस्मती अधिकारी माने जाते हैं। कलेक्टरी में रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस उनके आसपास नहीं फटकते। रायगढ़, दुर्ग, बिलासपुर और रायपुर के वे लगातार 11 साल कलेक्टर रहे। इतने लंबे समय तक छत्तीसगढ़ में किसी आईएएस ने कलेक्टरी नहीं की है।

नए निर्वाचन आयुक्त-2

ठाकुर राम सिंह जब इस साल मई में राज्य निर्वाचन आयुक्त से रिटायर होने वाले थे, तब चर्चा थी कि डीडी सिंह को इस पद पर पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दी जाएगी। मगर छह महीने निकल गया...डीडी सिंह की अटकलें आदेश में परिवर्तित नहीं हो पाई। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही कि डीडी सिंह सरकार के भरोसेमंद अधिकारी हैं। सरकार ने सीएम सचिवालय के साथ ही सिकरेट्री टाईबल और जीएडी की जिम्मेदारियां दे रखी हैं। सीएम सचिवालय में उनके होने के सियासी मायने भी हैं। ऐसे में, नहीं लगता कि डीडी सिंह को सरकार वहां से हटाकर निर्वाचन में भेजना चाहेगी। और भेजना ही होता तो अभी तक वेट नहीं करती। सरकार ने ठाकुर राम सिंह को अघोषित एक्सटेंशन दिया तो इसके कोई निहितार्थ होंगे। बहरहाल, नए राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए अब आबकारी सचिव निरंजन दास की चर्चा शुरू हो गई है। निरंजन अगले महीने 31 जनवरी को रिटायर होंगे। याने करीब डेढ़ महीने बाद। अब देखना है, सरकार निरंजन के नाम पर मुहर लगाती है या किसी और को निर्वाचन आयुक्त की कमान सौंपेगी।

सूचना आयोग का वेट

राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के साथ ही सूचना आयुक्त का एक पद खाली है। दोनों पदों के लिए विज्ञापन की प्रक्रिया पूरी हो गई है। सौ के करीब लोगों ने इन पदो ंके लिए अप्लाई किया है। अटकलों के मुताबिक सीआईसी का पद किसी रिटायर नौकरशाह को दिया जा सकता है तो आयुक्त का पद किसी पत्रकार को। हालांकि, अप्लाई करने वालों में रिटायर अधिकारियों, वकीलों, पत्रकारों और समाज सेवियों ने आवेदन किया है। मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत और आयुक्त अशोक अग्रवाल के पिछले महीने रिटायर होने के बाद से ये पद खाली हैं। जैसे संकेत मिल रहे हैं, दोनों पदो ंके लिए कोई जल्दीबाजी नहीं है। हो सकता है, 2 जनवरी से विधानसभा का शीतकालीन सत्र प्रारंभ हो रहा है। उस दौरान नेता प्रतिपक्ष भी रायपुर में मौजूद रहेंगे। हो सकता है, उसी समय इस पर मुहर लगाया जाए। हालांकि, नेता प्रतिपक्ष कमेटी के मेम्बर होते हैं मगर होता वही है, जो सरकार चाहती है। नेता प्रतिपक्ष की सिर्फ औपचारिकता होती है।

मंदिरों में रौनक

वैसे तो हिन्दू धर्म में महादेव को देवों का देव माना जाता है...ब्रम्हा, विष्णु से उपर। शिवपुराण कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने भगवान शिव के प्रति आस्था और तेज कर दिया है। उनके रायपुर के कार्यक्रम के बाद छत्तीसगढ़ के शिव मंदिरों में गजब की रौनक बढ़ी है। आमतौर पर पहले सोमवार को शिव मंदिरों में चहल-पहल रहती थी। बाकी दिन पूजा-अर्चना करने वालों की संख्या नगण्य रहती रहती थीं। अब सातों दिन। पंडित प्रदीप मिश्रा ने लोगों से कहा...एक लोटा जल, सारी समस्याओं का हल, उसके बाद शिव मंदिरों में जल चढ़ाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आरक्षण संशोधन विधेयक को राज्यपाल विधानसभा को लौटाएगी या फिर राष्ट्रपति को भेजेंगी?

2. शंटेड अफसर और पुराने अखबार एक समान क्यों कहे जाते हैं?

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