संजय के. दीक्षित
तरकश, 20 फरवरी 2022
रायगढ़ में वकीलों और तहसील आफिस के स्टाफ के बीच बेहद शर्मनाक घटना हुई। प्रबुद्ध वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को लोगों ने कैमरे पर लम्पटों की तरह गाली-ग्लौज और मारपीट करते देखा। निश्चित तौर पर इस घटना ने वकीलों की प्रतिष्ठा को गहरा ठेस पहुंचाया है। मगर बात इस पर भी होनी चाहिए कि एक ही थैली के चट्टे-बट्टे कहे जाने वाले वकीलों और तहसीलदार के बीच ये अप्रिय स्थिति उत्पन्न हुई कैसे? खैर इस पर चर्चा लंबी हो जाएगी, किन्तु लोगों के संज्ञान में यह अवश्य रहना चाहिए कि रायगढ़ के तहसीलदार आखिर हैं कौन...जो वकीलों से विवाद के तुरंत बाद खिसक लिए और उनके स्टाफ वकीलों के शिकार हो गए। सुनील अग्रवाल छत्तीसगढ़ के चर्चित तहसीलदार हैं। सारंगढ़ के तहसीलदार रहते पिछले साल उन पर वारे क्लिनिक के डॉक्टर से तीन लाख रुपए रिश्वत के आरोप लग थे। तहसीलदार और उनकी टीम डाक्टर के क्लिनिक में कोविड मरीज भर्ती की जांच करने गए और बड़ा खेल कर डाला। इस मामले की जांच हुई और बिलासपुर के संभागायुक्त संजय अलंग ने 3 जून 2021 को उन्हें सस्पेंड कर दिया। इससे पहिले 2019 में बिलासपुर के तहसीलदार रहते रतनपुर के शहीद नूतन सोनी के परिजनों की जमीन के बंटवारानामा की फाइल सुनील अग्रवाल ने छह महीने तक लटकाए रखा...तब भी उन पर गंभीर आरोप लगे थे। कांग्रेस लीगल सेल के उपाध्यक्ष के हस्तक्षेप पर तत्कालीन कलेक्टर ने तहसीलदार को तलब कर हड़काया। कलेक्टर के निर्देश पर तहसीलदार ने शहीद के घर जाकर खेद व्यक्त किया। दिलचस्प यह है कि सारंगढ़ में रिश्वत कांड में सस्पेंड होने के तीन महीने बाद राजस्व विभाग ने सुनील अग्रवाल को प्रमोट करके रायगढ़ जिला मुख्यालय का तहसीलदार बना दिया गया। अब ऐसे तहसीलदार जहां रहेंगे, वहां सब कुछ अच्छा होगा इसकी उम्मीद कैसे और क्यों करनी चाहिए।
रेवेन्यू कोर्ट क्यों-1
जमीन जायदाद के मामलों में आम आदमी के लिए सबसे बड़ी परेशानी की वजह राजस्व कोर्ट हैं। ये आप इससे समझ सकते हैं कि राजस्व बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन डीएस मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में किसी तहसीलदार पर तल्ख टिप्पणी की थी किस तरह एक केस की सुनवाई उसने 79 बार टाली थी। जाहिर है, नायब तहसीलदार से लेकर उपर तक के अधिकारी कोर्ट की आड़ में गड़बड़ फैसलों के बाद भी जिम्मेदारी से बच जाते हैं। हाईकोर्ट हर साल चार-पांच गलत फैसलों की वजह से जजों को बर्खास्त करता है। क्या राजस्व अधिकारियों पर ऐसी कार्रवाइयां होतीं हैं? कदापि नहीं। राजस्व न्यायालयों में कोर्ट के नियम-कायदों का राई भर भर पालन नहीं किया जाता। मगर धौंस...कोर्ट है। अलबत्ता, ऐसे खटराल अफसरों के लिए कोर्ट ढाल बन जाता है। सूबे के एक एसडीएम जमीन के गोरखधंधे में बर्खास्त होने के बाद भी हाईकोर्ट से बहाल कर दिए....क्यों? क्योंकि, उनके वकीलों ने तर्क दिया कि एसडीएम की कोर्ट ने फैसला दिया था। एक प्रमोटी आईएएस भी मानते हैं कि राजस्व न्यायालय के चक्कर में आम आदमी पिसता है। अफसर गलत फैसला करता है कोई आपत्ति हो तो कहा जाएगा उपर में अपील कर दो। और कमिश्नर कोर्ट तक अपील पहुंचते-पहुंचते सालों लग जाता है...अंग्रेजों की ये व्यवस्था कायदे से बंद करना चाहिए।
रेवेन्यू कोर्ट-2
भूपेश कैबिनेट ने 62 साल पुराने भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक पर मुहर लगा दिया है। विस में विधयेक पारित होने के बाद नामंतरण जैसी कई प्रक्रियाएं सरल हो जाएंगी। इसके साथ ही सरकार को राजस्व कोर्ट पर भी फोकस करना चाहिए। तेलांगना ने पिछले साल राजस्व कोर्ट सिस्टम खतम कर दिया। बाकी राज्यों में भी इस पर विचार चल रहा है। दरअसल, नौकरशाही एक्ट का रोड़ा लगा देती है। अगर एक्ट है भी तो उसे बदला तो जा सकता है। इसी राज्य में कई दृष्टांत हैं, जब एक्ट चेंज किए गए। वैसे भी, 1960 में बने भू-राजस्व संहिता में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि विवादित जमीन का कोई मामला होगा, तब राजस्व न्यायालय कहा जाएगा। मगर यहां नायब तहसीलदार से लेकर उपर तक छोटे-छोटे फैसले....मसलन जाति प्रमाण पत्र भी राजस्व न्यायालय के लेटरपैड पर देते हैं। वाकई ये पराकाष्ठा है।
ये भी जानिये
तरकश में एक जिला पंजीयक के खिलाफ खबर छपी...जिला पंजीयक ने माईनिंग लीज के प्रकरण में सरकार को करोड़ों का फटका लगा दिया। चूकि, पंजीयक कार्यालय वाले भी अपने को कोर्ट घोषित कर दिए हैं, सो कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाने को लेकर स्तंभकार को कानूनी नोटिस देने के लिए विधि विषेशज्ञों से राय मशविरा किया गया। इसमें फायनली निष्कर्ष यह निकला कि पंजीयक का कोई कोर्ट नहीं होता। दरअसल, 1975 तक कलेक्टर जिला पंजीयक होते थे। राजस्व न्यायालय के तहत कलेक्टरों का कोर्ट होता है। सो, जमीनों या मकानों की रजिस्ट्री पर जिला पंजीयक कोर्ट लिखा जाता था। 75 के बाद सरकार ने जिला पंजीयक को सेपरेट कर दिया। मगर पंजीयक कोर्ट लिखना बंद नहीं हुआ। और वह अब भी जारी है। छत्तीसगढ़ में बड़े-बड़े नौकरशाह आए-गए लेकिन, किसी ने भी इस गैर कानूनी कोर्ट पर संज्ञान लेने की कोशिश नहीं की। इसमें होता यह है कि पंजीयन अधिकारी रजिस्ट्री का रेट कम-ज्यादा करने का खेल करते रहते हैं। उन्हें कोई बोल नहीं सकता, क्योंकि कोर्ट है।
नौकरशाही का मतलब
जमीनों का नामंतरण की पेचिदगियों और राजस्व न्यायालय की आवश्यकताओं के बारे में हमने कुछ सीनियर आईएएस अधिकारियों से उनकी राय जाननी चाही। सबने एक सूर में सवाल किया, राजस्व कोर्ट भला कैसे खतम किया जा सकता है। तेलांगना ने फिर कैसे खतम कर दिया इस सवाल पर बोले, वो कर दिया होगा। काफी तर्क-वितर्क के बाद दो-तीन अफसरों ने माना कि कोर्ट खतम किया जा सकता है मगर इसके लिए भू-राजस्व संहिता में बदलाव करना होगा। तो बदलाव करके जब आम आदमी की तकलीफें दूर की जा सकती है तो किया क्यों नहीं जाता। सिर्फ इसलिए कि नौकरशाही इनोवेशन का मतलब पुरस्कार और अवार्ड जानती है। बुनियादी कामों से ज्यादा उनका सरोकार नहीं होता। चमकी-धमकी, मैं सबसे अधिक ज्ञानी...। किसी विभाग में पोस्टिंग का मतलब उनके लिए सबसे जरूरी यह जानना होता है कि वहां कितनी गाड़ियां मिल सकती है, बिल-भत्ता कहां से कितना तक रिअम्बर्स हो सकता है। यही वजह है कि दिल्ली से लेकर राज्य स्तर तक, नौकरशाहों पर संकट मंडरा रहा है। वइ इसलिए कि नौकरशाही अपने को बदलना नहीं चाहती। जबकि, समय है डे-टू-डे बदलाव का। छत्तीसगढ़ में कुछ को छोड़ दें तो बाकी सबका एक ही हाल है।
संगीता आईं, रीना गईं
राज्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबा कंगाले लंबे अवकाश पर गई हैं। उनके पास राज्य सरकार में महिला बाल विकास और समाज कल्याण का एडिशनल प्रभार था। रीना के जाने से सरकार के ये दोनों विभाग वैकेंट हो गए हैं। उनकी जगह इन विभागों के लिए नया सचिव अपाइंट करना होगा। रीना की जगह नया सिकरेट्री कोई पुरूष होगा या लेडी आईएएस...यह सवालों के घेरे में है। रीना से पहले शहला निगार सिकरेट्री थीं। और उनसे पहले एम गीता। हालांकि, पुरूषों में दिनेष श्रीवास्तव, सोनमणि बोरा महिला बाल विकास के सिकरेट्री रहे हैं। उधर, 2005 बैच की आईएएस संगीता आर भी तीन साल की लंबी छुट्टी के बाद मंत्रालय में आमद दे दी हैं। जब सरकार बदली तो संगीता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह जिला दुर्ग की कलेक्टर थीं। संगीता सरकार का गठन होते ही छुट्टी पर चली गईं थीं।
मंत्रालय में पोस्टिंग
रीना बाबा छह महीने के लिए पर्सनल लीव पर गई हैं और संकेत हैं कि वे अवकाश को और एक्सटेंड कराएंगी। इसी बीच खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव है। ऐसे में, सरकार को तीन नामों का पैनल निर्वाचन आयोग को भेजना पड़ेगा। चूकि निर्वाचन में कोई जाना चाहता नहीं, लिहाजा कई अफसरों की धड़कनें तेज हो गई है कि सरकार कहीं मेरा नाम भेज दिया तो क्या होगा। उधर, संगीता को सरकार ने अभी कोई पोस्टिंग नहीं दी है। परिस्थितियों को देखते संगीता को फिलहाल ढंग की पोस्टिंग की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। फिर भी कुछ तो मिलेगा ही। सो, मंत्रालय में सचिव स्तर पर छोटी सूची निकलनी तय है।
कोरोना का धोखा
अस्पताल संचालक तो रो ही रहे हैं, कोरोना की दगाबाजी से प्रायवेट स्कूल मालिकों की भी स्थिति जुदा नहीं है। बिना किसी खर्चे के मस्त दो साल तक बच्चों से फीस वसूली। जाहिर है, कोरोना में स्कूलों ने अधिकांश स्टाफ की छुट्टी कर दी। आधे वेतन पर आधे-आधे-अधूरे टीचर बचे थे। बसों के ड्राईवर, खलासी भी नाम के। कोरोना की तीसरी लहर की आहट मिलते ही स्कूलों ने जो कुछ लोड था, उसे भी हल्का कर लिया। लेकिन, कोरोना दगा दे डाला। उधर, स्कूल शिक्ष़्ा विभाग स्कूल खोलने, आफलाइन एग्जाम लेने प्रेशर बना रहा तो स्कूल मालिक राजनीतिकों की शरण ले रहे हैं। प्रायवेट स्कूल वालों का बैंक बैलेंस जरूर कई गुना बढ़ गया है मगर उतनी ही कठिनाइयां बढ़ गई है। क्योंकि, स्टाफ अब मिल नहीं रहा। तभी सरकारी स्कूल तीसरी लहर के पहले खुल गए मगर प्रायवेट वाले अगर-मगर कर रहे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. दुर्ग जिले के साथ और कुछ जिलों के एसपी बदल सकते हैं क्या?
2. किस जिले में आधी रात को रजिस्ट्री आफिस खुलवाकर 200 जमीन के टुकड़ों की रजिस्ट्री की गईं?