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सत्यनारायण शर्मा: उम्र के बावजूद बनी हुई है सक्रियता, दादाजी की चिट्ठी से इस तरह हुई राजनीति में एंट्री, सात बार के विधायक सत्यनारायण शर्मा कैसे बने जनप्रिय नेता, कैसा रहा कैरियर, पढ़ें यहां

सत्यनारायण शर्मा: उम्र के बावजूद बनी हुई है सक्रियता, दादाजी की चिट्ठी से इस तरह हुई राजनीति में एंट्री, सात बार के विधायक सत्यनारायण शर्मा कैसे बने जनप्रिय नेता, कैसा रहा कैरियर, पढ़ें यहां
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Satyanarayan Sharma

By NPG News

NPG.NEWS -

रायपुर I ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा जनप्रिय नेता भी हैं और जनसुलभ नेता भी, मानो उनकी तस्वीर लोगों के दिलोदिमाग पर चस्पा है कि नेताजी मतलब सत्यनारायण शर्मा। वर्षों की मेहनत और अपने मिलनसार स्वभाव से उन्होंने यह कमाई की है। वे उम्र को धता बताते हैं, बातों ही बातों में चुटकियाँ लेते हैं और माहौल को हल्का करके रखते हैं। सात बार के विधायक सत्यनारायण छत्तीसगढ़ से पहले मध्य प्रदेश में भी मंत्री पद पर रह चुके हैं। साथ ही वे छत्तीसगढ़ की चौथी विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर भी रहे। अभी वे शराबबंदी अध्ययन समिति के अध्यक्ष हैं।

सत्यनारायण शर्मा का जन्म 1 मई 1943 को हुआ। वे जगदीश प्रसाद शर्मा के पुत्र और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और संपादक झाबरमल शर्मा के पौत्र हैं। उनके परिवार में पत्नी श्रीमती निर्मल शर्मा व तीन बेटे हैं।

संयुक्त परिवार में मिले संस्कार और सीखा बड़ों का आदर और परंपराओं का निर्वाह करना

सत्यनारायण जिस परिवार में पल-बढ़ कर बड़े हुए उसमें 60 से 70 सदस्य थे। दादाजी झाबरमल शर्मा कुल पांच भाई थे। और पिताजी छह भाई। इन सबके परिवार एक ही घर में रहते। जितना बड़ा परिवार,उतना नियंत्रण और उतना ही एडजस्टमेंट। लोगों के साथ मिलकर चलना तभी से आ गया। दादाजी ने जिस वैचारिक ताकत के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था,उसका प्रभाव पूरे परिवार पर था। अनुशासन का जबरदस्त माहौल परिवार में था।

शिक्षक जमकर करते थे सख्ती

सत्यनारायण बताते हैं कि उस वक्त के शिक्षक आज के आधुनिक स्कूलों की तरह किफायत से नहीं चलते थे, बात-बात पर डंडे पड़ते,कान खींचे जाते। सजा मिलती और बच्चे चूं तक नहीं करते थे। इतना आदर था शिक्षकों के लिए मन में। इतना समर्पण था। समर्पण,आस्था और आदर ये तीन बातें भीतर बो जाया करतीं और फिर ताउम्र साथ चलतीं। आज तो तस्वीर ही उलट है।

कॉलेज जाकर आजादी का भी थोड़ा लुत्फ़ उठाया

स्कूल छूटा,कॉलेज पहुंचे तो थोड़ी छूट भी मिली। दिलीप कुमार,वैजयंती माला और मीना कुमारी की फिल्में उन्हें विशेष पसंद थीं। हाँ सबसे पसंदीदा फिल्मों में मदर इंडिया और नया दौर को वे शामिल करते हैं। कॉलेज के दिनों में ही उनपर राजनीति का भी रंग चढ़ा। सत्यनारायण शर्मा बताते हैं कि तब राजनीति में कटुता नहीं थी, प्रतिद्वंदिता जरूर थी। लड़ाई भी कभी-कभार हो जाया करती थी। हॉकी उस समय खूब चला करती थी आपस में।

रोजगार के लिए ली टैक्निकल ट्रेनिंग

सत्यनारायण नें कॉलेज में बीएससी के बाद सीआईजीसी नागपुर में पी एन प्रति जी से टेक्निकल ट्रेनिंग ली। वे बताते हैं कि प्रति जी ने एकबार एंगल काटने को कहा। मैंने कह दिया कि यह मजदूरों का काम है। प्रति जी बहुत नाराज हो गए। गुरूजी को नाराज करना आदत में ही शामिल नहीं था। प्रायश्चित करने के लिए तीस एंगल काट डाले। प्रति जी खुश हुए। लेकिन फिर इस काम में मन रम नहीं सका। वापस लौटकर फिर मन राजनीति की ओर खींच ले गया। उन दिनों दिग्विजय सिंह यूथ कांग्रेस में महासचिव हुआ करते थे। मैं विधायक की टिकट के लिए प्रयास कर रहा था लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। काफी निराश हो गया तो लगा यदि दादाजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के बाद राजनीति में कुछ हासिल किया होता तो आज मुझे खुद को यूं न घिसना पड़ता। यही बात एक दिन जा कर उनसे कह भी दी। जवान खून था। दादाजी नाराज हो गए, बोले कुछ प्राप्त करने के लिए आंदोलन से नहीं जुड़ा था। देश सेवा का जज्बा था। उन्होंने मुझे कमरे से निकल जाने को कह दिया। दादाजी को इतना गुस्सा दिला देने पर खुद पर गुस्सा आया। ये तो हमारे संस्कारों में नहीं था। मैं दरवाजे के बाहर ही बैठा रहा। वे जब बाहर निकले तो मुझे यूं बैठा देखकर सिर पर हाथ फेरा। भीतर बुला ले गए। और एक पत्र लिखकर मुझे दिया और दिल्ली में एक शख्स को देने को कहा। मैं दिल्ली गया। उनसे मिलने वालों की लंबी लाइन थी। वे खाली ही न होते थे। मैं परेशान हो गया। उन्होंने मेरी परेशानी भांप ली ,बुलाया। पत्र देख हैरान हो गए। मुझे उनकी मदद भी मिली और आगे बढ़ने की उम्मीद भी। आगे चलकर अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह से भी मदद मिली। 85 में टिकट मिला और जीता भी। दिग्विजय सिंह सीएम बने तो मैं उनकी कैबिनट का हिस्सा भी बना। आखिर राजनीति में पांव जम गए। दादाजी से सीख मिली थी कि फल की चिंता मत करो, लगन और मेहनत से अपना काम करते जाओ, मैंने राजनीति में इस सूत्र को अपनाया। लोगों को, उनकी तकलीफ़ों को सुना, यथासंभव सुलझाने का हर प्रयास किया और वाकई जनता ने मुझे अपनाया, अपना नेता माना।

कैसा रहा राजनीति का सफर

1985 में अविभाजित मध्य प्रदेश में सत्यनारायण पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद, वह 1990, 1993, 1998, 2003, 2013 और 2018 में 6 बार विधायक चुने गए। उन्हें 1995 में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), खनिज संसाधन, मध्य प्रदेश सरकार नियुक्त किया गया।

1998 में, उन्हें मध्य प्रदेश सरकार में वाणिज्यिक कर (बिक्री कर) और जनसंपर्क मंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया। दिसंबर 1998 में, विधानसभा चुनाव के बाद, उन्हें वाणिज्यिक कर (बिक्री कर), उत्पाद शुल्क और पंजीकरण के लिए कैबिनेट मंत्री बनाया गया।

उन्हें 2000 में छत्तीसगढ़ सरकार में शिक्षा (स्कूल, उच्च और तकनीकी), मानव संसाधन विभाग, संस्कृति और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया।

अभी राज्य में शराबबंदी को लेकर जम के राजनीति हो रही है। सत्यनारायण शराबबंदी अध्ययन समिति के अध्यक्ष हैं। उनके पुतले जलाए जा रहे हैं। सत्यनारायण का कहना है कि पूरे देश में एक साथ शराबबंदी लागू होनी चाहिए वर्ना स्मगलिंग होंगी। बात ठीक भी है।

शर्मा का कहना है कि द्वेष की राजनीति से राजनीति करने वालों को फायदा हो सकता है, देश को नहीं। असल राजनीति वो जो देश को आगे ले जाए, जनता का जीवन उन्नत करने में मदद करे। सभी पार्टियों को इसी दिशा में मिल-जुलकर काम करना चाहिए।

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