President of India Body Guard: राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड: देश की सर्वोच्च नागरिक की सुरक्षा के लिए 6 फीट की ऊंचाई होना अनिवार्य, जानें कैसे चुने जाते हैं ये जवान
रायपुर। भारत देश के राष्ट्रपति तीनों सेनाओं के मुखिया होते हैं। देश के जल, थल और नभ की सुरक्षा करने वाली नौसेना, थल सेना और वायु सेना की प्रमुख होने के कारण उनकी सुरक्षा भी काफी महत्वपूर्ण होती है। राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए एसपीजी या एनएसजी नहीं, बल्कि अलग ही टुकड़ी होती है, जिसे प्रेसीडेंट बॉडी गार्ड्स कहते हैं। इसमें जो अधिकारी और जवान होते हैं, उनके लिए पहली अनिवार्य शर्त 6 फीट या उससे ज्यादा लंबाई है। आइए जानते हैं राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड्स का चयन किस तरह होता है।
ऊंचे-पूरे जवानों के हाथ में 9 फुट का भाला
राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड्स ऊंचे पूरे जवान होते हैं। इसके लिए अनिवार्य रूप से कम से कम 6 फीट की लंबाई जरूरी है। इसके आधार पर ही चयन होता है। आजादी से पहले लंबाई का पैमाना 6 फीट तीन इंच थी। विशेष आयोजनों के दौरान राष्ट्रपति के बॉडी गार्ड्स हाथ में 9 फुट लंबा भाला लिए होते हैं। यह टुकड़ी संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों के तहत सोमालिया, अंगोला, सियरा लीओन, सूडान और लेबनान भी जा चुकी है।
रेजीमेंट के घोड़े भी होते हैं खास
प्रेसीडेंट बॉडी गार्ड्स की इस टुकड़ी के घोड़े भी खास होते हैं। जवानों की कद काठी से मेल करते हुए 15.5 हाथ ऊंचे घोड़े इस टुकड़ी में शामिल किए जाते हैं। इन शानदार घोड़ों की नस्ल रिमाऊंट वेटनरी कोर द्वारा तैयार की जाती है और वर्तमान में 44 सैन्य वेटरनरी अस्पताल के कर्नल नीरज गुप्ता की कमान में इनकी देखभाल की जा रही है।
2 साल की कठिन ट्रेनिंग
प्रेसीडेंट बॉडी गार्ड्स में अलग-अलग रेंजीमेंट के जवानों को लिया जाता है। इन्हें विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। ये जवान पैरा ट्रुपिंग से लेकर दूसरे क्षेत्रों में भी दक्ष होते हैं। किसी नए जवान का इस यूनिट का हिस्सा बनना आसान नहीं है। उन्हें दो वर्ष के कठिन प्रशिक्षण के बाद ही इसका हिस्सा बनाया जाता है। इस यूनिट की सबसे बड़ी पहचान होती हैं इनके खूबसूरत और मजबूत घोड़े। इस टुकड़ी में शामिल सभी जवानों को इसमें महारत होती है।
इन मोर्चों पर दिखाया पराक्रम
प्रेसीडेंट बॉडी गार्ड्स ने 1962 में चुशूल में, 1965 में वेस्टर्न थिएटर और 1988 के दौरान श्रीलंका के ऑपरेशन पवन और 1999 में ऑपरेशन विजय में अपना पराक्रम सिद्ध किया है। बहादुर जवान सियाचिन ग्लेशियर जैसे विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडी युद्ध क्षेत्र में भी अपने कार्य कुशलता का लोहा मनवा चुके हैं। इस रेजिमेंट के जवान राष्ट्रीय राइफल्स के साथ फील्ड में ड्यूटी भी करते हैं।