President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh: आदिशक्ति मां महामाया देवी के दरबाद में राष्ट्रपति मुर्मू, रतनपुर मंदिर में दर्शन की देखें तस्वीरें
President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh:
President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh: बिलासपुर। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु आज ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी रतनपुर स्थित आदिशक्ति मां महामाया देवी मंदिर पहुंची। यहां उन्होंने विधिवत पूजा- अर्चना कर देशवासियों की सुख-समृद्धि और प्रगति की कामना की। पहली बार रतनपुर स्थित महामाया देवी के मंदिर में राष्ट्रपति प्रवास हुआ है। इस अवसर पर मां महामाया देवी का राजसी श्रृंगार किया गया।
इस अवसर पर राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं केंद्रीय जनजाति विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह भी मौजूद रहीं। उल्लेखनीय है कि ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी रतनपुर का गौरवशाली इतिहास रहा है। कलचुरी वंश के शासक रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाया और यहाँ आदिशक्ति माँ महामाया देवी मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था। मां महामाया रतनपुर शाखा के कलचुरी वंश के राजाओं की कुलदेवी थी। यहां पर दोनों नवरात्रियों में भव्य मेले का आयोजन होता है, जहां प्रदेश के हर जिले से लोग आते हैं और माँ महामाया के दर्शन कर उनके समक्ष मनोकामनाएं रखते हैं।
President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh: बिलासपुर पहुंचने पर राष्ट्रपति का आत्मीय स्वागत
राष्ट्रपति मुर्मु आज एक दिवसीय प्रवास पर न्यायधानी बिलासपुर पहुंची। पंडित सुन्दर लाल शर्मा ओपन यूनिवर्सिटी हेलीपेड पर राष्ट्रपति का स्वागत छत्तीसगढ़ के राज्यपाल हरिचंदन एवं मुख्यमंत्री बघेल, केंद्रीय जनजाति विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने किया। छत्तीसगढ़ शासन के उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल, नगर निगम के महापौर रामशरण यादव, कलेक्टर संजीव कुमार झा, पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह ने भी राष्ट्रपति का आत्मीय स्वागत किया। इसके बाद राष्ट्रपति सड़क मार्ग से रतनपुर के लिए रवाना हुईं।
पढि़ए- क्यों प्रसिद्ध है रतनपुर महामाया मंदिर
महामाया मंदिर छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर से करीब 26 किलोमीटर दूर रतनपुर में है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव प्रथम ने कराया था। बताया जाता है कि तुम्मान खोल के राजा रत्नदेव प्रथम शिकार पर निकले थे। शिकार खेलते-खेलते वे रतनपुर पहुंच गए। यह बात सन 1045 के आसपास की बताई जाती है। शिकार की तलाश में निकले राजा को समय का पता ही नहीं चला और रात में उन्हें अभी जहां मंदिर हैं वहीं रुकना पड़ा। वन्यजीवों के भय से राजा वहां एक वट वृक्ष पर चढ़ कर सो गए। रात में अचाकन उनकी आंख खुली तो उसी वट वृक्ष के नीचे तेज प्रकाश देखा। वहां आदि शक्ति महामाया देवी की सभा लगी हुई थी। यह देखकर राजा अपना होश खो बैठे। सुबह पर राजा को होश आया तो राजा अपनी राजधानी लौट गए और वहां जाकर रतनपुर को अपनी नई राजधानी बनाने का फैसला किया।
बताया जाता है कि 1050 के आसपास राजा रत्नदेव ने रतनपुर को अपनी राजधानी बना लिया। वर्तमान में मंदिर परिसर में एक वट का वृक्ष मौजूद है। वहां पर एक कुंड भी है। जनश्रुतियों के अनुसार राजा रत्नदेव ने दूसरा मंदिर बनाकर महामाया माता से वहां चलने की विनती की। उसी रात राजा को एक स्वप्न आया, जिसमें देवी ने उनसे कहा कि मैं तुम्हारे बनवाए मंदिर में अवश्य जाउंगी, लेकिन पहले बलि का प्रबंध करो। बताया जाता है कि देवी ने कहा कि मैं एक पग बढ़ाउंगी तो 1008 बलि देनी होगी। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस प्रकार नए मंदिर में मां महामाया की स्थापना हुई। इसके पहले तक मंदिर में नरबलि होता था। जिसे राजा बहारसाय ने बंद करा दिया। तब से पशु की बलि दी जाने लगी। अब वह भी बंद हो चुका है।
आदिशक्ति मां महामाया देवी मंदिर का निर्माण मंडप नगार शैली में हुआ है। मंदिर 16 स्तंभों पर टिका है। मंदिर के गर्भगृह में मां महामाया की साढ़े 3 फीट ऊंची प्रतिमा है। मां महामाया के पीछे (पृष्ठ भाग) में माता सरस्वती की प्रतिमा होने की बात कही जाती है, लेकिन वह विलुप्त है।जन मान्यताओं के अनुसार यहां माता सती का दाहिना स्कंध गिरा था। हिंदु मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव जब माता सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर करते हुए ब्रम्हांड में भटक रहे थे तब भगवान विष्णु ने शिव को इस वियोग से मुक्त कराने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर पर चला दिया था। इससे माता सती के शरीर के अलग-अलग हिस्से विभिन्न स्थानों पर गिरा जिसे अब शिक्त पीठ के रुप में पूजा जाता है।