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इस्लामी कोर्ट का आदेश शून्य: पहली बार निचली अदालत ने पर्सनल लॉ द्वारा स्थापित कोर्ट के फैसले को गलत ठहराया, तलाक मान्य नहीं

महिला ने इदारा ए शरिया इस्लामी कोर्ट से ले लिया था तलाक, जिसे कोर्ट में दी गई थी चुनौती

इस्लामी कोर्ट का आदेश शून्य: पहली बार निचली अदालत ने पर्सनल लॉ द्वारा स्थापित कोर्ट के फैसले को गलत ठहराया, तलाक मान्य नहीं
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By NPG News

रायपुर, 27 अप्रैल 2022। छत्तीसगढ़ में संभवत: पहली बार किसी निचली अदालत ने पर्सनल लॉ द्वारा स्थापित कोर्ट के आदेश को शून्य घोषित कर दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि किसी भी प्राधिकारी या पर्सनल लॉ को न्यायिक शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है। विधि द्वारा स्थापित न्यायालय को ही यह अधिकार है। जब तक किसी संस्था को कानून के द्वारा अधिकार नहीं दिया गया हो तो वह कोई विधिक आदेश पारित नहीं कर सकता।

चतुर्थ व्यवहार न्यायालय वर्ग-1 रायपुर के पीठासीन अधिकारी ओमप्रकाश साहू की अदालत में सैय्यद हैदर अली (33 वर्ष) ने वाद प्रस्तुत किया था। वादी की ओर से वकील केके शुक्ला ने बताया कि डगनिया निवासी हैदर की शादी देवेंद्रनगर की रेशमा शेख से हुई थी। रेशमा ने इदारा ए शरिया इस्लामी कोर्ट, जो कि रायपुर में पुलिस लाइन पेट्रोल पंप के पास स्थित है, में तलाक की अर्जी दी थी। इस कोर्ट के जज सैय्यद रईस अहमद काजी ने तलाक को मंजूरी दे दी थी। इस आदेश के खिलाफ ही हैदर ने वाद दायर किया था। मामले की सुनवाई हुई। इसमें यह तथ्य रखा गया कि उक्त संस्था (इदारा ए शरिया इस्लामी कोर्ट) का निर्माण मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों के लिए धार्मिक या सामाजिक सहायता पहुंचाना व इमारत और संस्था आदि का निर्माण करना है।

उक्त नियमावली में इदारा-ए-शरिया इस्लामी कोर्ट के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है। उक्त कोर्ट द्वारा 27 मार्च 2015 को विवादित आदेश दिया गया। प्रतिवादी यह साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाए कि इस्लामी कोर्ट की स्थापना नियमावली के किस नियम के तहत की गई है। न्यायालय ने यह पाया कि इस्लामी कोर्ट और कोर्ट के जज को तलाक आदेश पारित करने का कोई विधिक अधिकार प्राप्त नहीं है, इसलिए उनके द्वारा पारित आदेश या फैसला प्रारंभत: शून्य है। साथ ही, न्यायालय इस निष्कर्ष तक भी पहुंचा कि इस्लामी कोर्ट द्वारा दिया गया आदेश विधि के अनुरूप या विधि द्वारा प्राधिकृत संस्था द्वारा पारित किया जाना प्रमाणित नहीं है, इसलिए उक्त आदेश का प्रयोग या क्रियान्वयन भविष्य में किसी भी रूप में किसी भी पक्षकार के द्वारा नहीं किया जा सकता।

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