NPG बड़ी खबर: सस्ती मेडिकल की पढ़ाई के फेर में 17 हजार भारतीय यूक्रेन में फंसे... छत्तीसगढ़ के भी 100 से ज्यादा स्टूडेंट्स
नई दिल्ली,25 फ़रवरी 2022। यूक्रेन अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन फ़ौरी तौर पर भारत की प्राथमिकता है क़रीब सत्रह हज़ार भारतीय जिनमें से पंद्रह हज़ार भारतीय छात्र के रुप में मौजुद हैं। यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास के सामने समस्या यह है कि हवाई मार्ग बंद है और ऐसे में भारतीय दूतावास वैकल्पिक मार्ग पर विचार कर रहा है।
भारतीय छात्र और भारत में रह रहे परिजन सुरक्षित वापसी के लिए स्वाभाविक तौर पर बेहद बेचैन है। इनमें छत्तीसगढ के भी क़रीब सैकडा पार परिवार शामिल हैं। उनके लिए यह राहत का सबब हो सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी और रुस के राष्ट्रपति पुतिन के बीच हुई चर्चा में प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के भारतीयों के हितों को लेकर चिंता जताई है और स्पष्ट किया है वे सुरक्षित रहें। जबकि यूक्रेन स्थित भारतीय दूतावास ने यूक्रेन सरकार से स्पष्ट किया है कि भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। अब आप सोचेंगे कि यूक्रेन में आख़िर भारतीय छात्र जाते क्यों हैं, तो इसके लिए भारतीय अभिभावकों के जिद की हद पार वाले ख़्वाब हासिल है। दरअसल डॉक्टर होना सुनिश्चित रोज़गार की गारंटी के रुप में देखा जाता है, और डॉक्टर की ही पढ़ाई यूक्रेन में करने भारतीय छात्र जाते हैं।
अब ये छात्र यूक्रेन क्यों जाते हैं तो इसका समीकरण यह है कि भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए क़रीब साठ हज़ार सीटों पर दस लाख से अधिक बच्चे परीक्षा देते हैं, यह प्रतियोगिता जानलेवा है। अब बच्चे के लिए भारतीय मेडिकल साइंस की पढ़ाई यदि नीजि कॉलेज में हो तो वह कम से कम एक करोड़ की लागत माँगती है। लेकिन यूक्रेन में यह पच्चीस लाख में पूरी हो जाती है। याने भारत के मुक़ाबले एक चौथाई खर्च में, हालाँकि इसमें रुकने ठहरने के खर्च शामिल नहीं है। पर यदि वो खर्च जोड़ भी दें तो भी रक़म कम ही होती है, और भारतीय अभिभावकों के ख़्वाब कम से कम डिग्री के मसले में तो पूरे होते हैं।
सस्ती मेडिकल की पढ़ाई वाले देशों में यूक्रेन ही नहीं है, बल्कि रुस चीन फ़िलीपींस भी शामिल हैं। लेकिन इन देशों से डिग्री मिलते ही छात्र भारत में दवा पर्ची टिकाने का नाम नहीं कर सकते। विदेश में पढ़ाई करने के बाद भारत के मान्यता प्राप्त मेडिकल अस्पताल में उन्हें साल भर की इंटर्नशिप करनी होती है और उसके बाद उन्हें FMGA की परीक्षा देना अनिवार्य है जिसमें पास होने पर ही वे भारत में प्रैक्टिस कर पाएंगे। FMGA की परीक्षा इतनी कठिन होती है कि छात्रों को कोचिंग लेनी पड़ती है और उसके बावजूद परीक्षा में बैठने वाले सत्तर फ़ीसदी फेल हो जाते हैं। लेकिन सस्ती मेडिकल की पढ़ाई भारतीय अभिभावकों को हमेशा से आकर्षित करती है और इस तथ्य के बावजूद कि बच्चों के लिए यह परेशानी का सबब है, ऐसी भीड़ इन देशों में बनती रहती है और बनती रहेगी।