कलेक्टरों को नोटिस
Notice to collectors... Tarkash, a popular weekly column of senior journalist Sanjay Dixit, focused on Chhattisgarh's bureaucracy and politics.
संजय के. दीक्षित
तरकश, 9 जनवरी
धान खरीदी के लिए बनी मंत्रिमंडलीय उप समिति ने बारिश में धान भीगने पर सूबे के छह कलेक्टरों को नोटिस देने का फैसला किया। बैठक के बाद फूड मिनिस्टर अमरजीत भगत ने मीडिया को बाइट भी दे डाली। जाहिर तौर पर यह पहली बार हुआ कि मंत्रिमंडलीय उप समिति ने कलेक्टरों को नोटिस दी हो। यकीनन, कैबिनेट और मंत्रिमंडलीय उपसमिति अधिकारसंपन्न होती हैं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि वे मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी करने लगे। आमतौर पर होता ये है कि मंत्रिमंडलीय उप समितियों को किसी कलेक्टर के खिलाफ कोई प्वाइंट मिला भी तो उसे मुख्यमंत्री की नोटिस में दे देती है। बहरहाल, कलेक्टरों को नोटिस मामले की प्रतिक्रिया तो होनी ही थी। देर रात प्रचार मशीनरी हरकत में आई। अब सुना है कि कलेक्टरों को नोटिस तामील नहीं की जाएगी।
जोगी ने जब हड़काया
2001 में भाजपा ने अजीत जोगी सरकार के खिलाफ राजधानी रायपुर में तगड़ा प्रर्दशन किया था। शास्त्री चौक पर प्रदर्शनकारियों को रोकने पुलिस ने लाठी चार्ज किया। इसमें नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय का पैर टूट गया। लाठीचार्ज के खिलाफ विधानसभा में काफी हंगामा हुआ। घटना की जांच के लिए विधानसभा की जांच कमेटी बनी। विधानसभा की कमेटी ने जांच के बाद रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर अमिताभ जैन और एसएसपी मुकेश गुप्ता को कसूरवार बताते हुए उन्हें सदन में तलब करने की सिफारिश की। सिफारिश पर अमल करते हुए विधानसभा ने दोनों को बुलाने की तारीख भी मुकर्रर कर दी। देर रात मरवाही के दौरे से लौटने पर मुख्यमंत्री अजीत जोगी को ये बात पता चली। उन्होंने विधानसभा वालों को जमकर हड़़काया और कलेक्टर, एसएसपी को सदन में बुलाने का फैसला टांय-टांय फुस्स हो गया। कहने का आशय यह है कि कलेक्टर, एसपी सिर्फ अफसर नहीं, जिले में वे मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि होते हैं। ऐसे में, विधानसभा की समिति हो या फिर मंत्रिमंडलीय उप समिति...उसे अधिकार तो है लेकिन, इसका ये मतलब नहीं कि मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि को ही लगे नोटिस देने, प्रताड़ित करने। कलेक्टर्स, एसपी सीधे-सीधे मुख्यमंत्री से नियंत्रित होते हैं और उन्हें नोटिस या सजा देने का अधिकार सिर्फ मुख्यमंत्री को है। मंत्री या मंत्रिमंडलीय उप समिति को नहीं।
एक थे उदय वर्मा
बात काफी पुरानी है। मध्यप्रदेश के समय 86, 87 के आसपास उदय वर्मा बिलासपुर के कलेक्टर थे। मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का बिलासपुर दौरा था। चकरभाटा हवाई पट्टी पर उदय वर्मा भी थे। गांधीवादी नेता और हायर एजुकेशन मिनिस्टर चित्रकांत जायसवाल ने किसी बात पर उन्हें झिड़क दिया। उदय वर्मा सीएम को रिसीव किए बिना गाड़ी में बैठ लौट गए। अर्जुन सिंह जैसे मुख्यमंत्री कलेक्टर के हवाई पट्टी पर न होने के वाकये को इसलिए नजरअंदाज कर दिए कि उनके कलेक्टर के साथ जो हुआ, वो ठीक नहीं हुआ। उदय वर्मा सफलतम नौकरशाहों में रहे हैं। वे भारत सरकार में कई अच्छे विभागों के सिकरेट्री रहे। बहरहाल, अबके कलेक्टरों में न तो वो ठसन दिखता है, न स्वाभिमान और न काम। कलेक्टरों का एक सुत्रीय एजेंडा है...कुर्सी किसी तरह सुरक्षित रहे। यही वजह है कि उन्हें छूटभैया नेता चमका दे रहे। एक विधायक को हाल ही में कैमरे पर यह कहते सुना गया, कहां है कलेक्टर...। हाल में मुख्यमंत्री के दौरे में एक कांग्रेस नेता को सर्किट हाउस में इंट्री नहीं मिली। उसने कलेक्टर को व्हाट्सपएप ठोक दिया, ठीक है...हमारी सरकार बनने दो, फिर मैं बताता हूं। ऐसे में, अगर रजत कुमार या पी. दयानंद टाईप कलेक्टर होते तो वाकई बवाल हो जाता।
कमांडेंट क्यों?
2008 बैच के आईपीएस डी. श्रवण को सरकार ने राजनांदगांव एसपी से हटाकर बटालियन का कमांडेंट बनाकर रायगढ़ भेज दिया। श्रवण कुछ दिन पहले ही सलेक्शन ग्रेड प्रमोशन पाकर एसएसपी हुए थे। उन्हें कमांडेंट बनाने की खबर से लोगों का चौंकना इसलिए स्वाभाविक था कि सलेक्शन ग्रेड याने अगले साल जनवरी में डीआईजी बनने वाले आईपीएस कमांडेंट बन जाए...। जबकि, पहले एडिशनल एसपी या फिर नए आईपीएस कमांडेंट बनते थे। मध्यप्रदेश के समय एसपी बनने से पहले आमतौर पर आईपीएस को कमांडेंट बनाया जाता था। ताकि फोर्स को टेकल करने का गुर अफसर सीख जाए। ऐसे में, सवाल उठते हैं कि श्रवण के साथ ऐसा क्यों हुआ? इस बारे में ये जरूर पता चला है कि किसी मामले में खुफिया अधिकारी राजनांदगांव एसपी से जरूर खफा चल रहे थे।
मिठाई वाले सिकरेट्री
छत्तीसगढ़ में एक माल-मसाले वाले विभाग के सिकरेट्री हैं। उनके पास दो-तीन विभागाध्यक्षों का जिम्मा भी है। सिकरेट्री साब से जो भी मिलने जाता है, उसे कुछ बोलने से पहिले वे मिठाई का डिब्बा बढ़ा देते हैं। बताते हैं, सिकरेट्री को किसी तांत्रिक ने ग्रह-नक्षत्रों का कैलकुलेशन कर सलाह दी कि लोगों को अधिक-से-अधिक मिठाई खिलाना उनके लिए काफी चमत्कारिक होगा। सिकरेट्री साब उसका अक्षरशः पालन कर रहे हैं। घर हो या आफिस...बड़े लेवल का आदमी हो या छोटा मुलाजिम...सबसे पहले मिठाई का डिब्बा। आईएएस के विभाग के लोग बताते हैं, तांत्रिक का नुख्सा साब को सूट किया है...बीजेपी सरकार में भी साब ठीक-ठाक पोस्टिंग पाते रहे और इस सरकार में तो गजब...।
चुनावी ड्यूटी
यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का ऐलान हो गया है। चुनाव कराने डेढ़ दर्जन से अधिक आईएएस पांचों राज्यों में जाएंगे। अभी तक सामान्य प्रशासन विभाग इलेक्शन के लिए सिकरेट्री लेवल तक के अधिकारियों का नाम भेजता था। चूकि, इस बार चुनाव आयोग ने ज्यादा अधिकारियों के नाम मंगाए थे। लिहाजा, पहली बार प्रिंसिपल सिकरेट्री के नाम भी निर्वाचन आयोग को भेजे गए हैं। 10 मार्च को पांचों राज्यों का मतगणना है। इसलिए, इसके बाद ही इलेक्शन ड्यूटी वाले अफसर छत्तीसगढ़ लौटेंगे।
नया जिला
कोरबा से अलग कर कटघोरा को नया जिला बनाने की मांग लंबे अरसे से की जा रही है। हालांकि, इसके पीछे सियासी समीकरण भी है। मगर वाकई अगर कटघोरा नया जिला बन गया तो कोरबा के पास सिर्फ बालको और एनटीपीसी बच जाएगा। याने 70 से 80 फीसदी डीएमएफ कटघोरा में चला जाएगा। पैसा अगर कटघोरा में होगा तो मलाईदार जिला कटघोरा ही होगा न। कटघोरा इलाके के सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को 26 जनवरी को मुख्यमंत्री के भाषण से काफी उम्मीदें दिखाई पड़ रही हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. चार नए जिलों में ओएसडी अपाइंट होने में देरी क्यों हो रही है?
2. एक बड़े कांग्रेस नेता का नाम बताइये, जो अपने बेटे को अगले विधानसभा चुनाव में लंच करने के लिए खुद चुनावी राजनीति से हट रहे हैं?