Begin typing your search above and press return to search.

नए राज्यपाल का शपथ ग्रहण: बिस्वाभूषण हरिचंदन को चीफ जस्टिस ने दिलाई शपथ, देखिए वीडियो और फोटो...

नए राज्यपाल का शपथ ग्रहण: बिस्वाभूषण हरिचंदन को चीफ जस्टिस ने दिलाई शपथ, देखिए वीडियो और फोटो...
X
By NPG News

रायपुर। नए राज्यपाल बिस्वाभूषण हरिचंदन ने आज राजभवन के दरबार हॉल में शपथ दिलाई। शपथ से पहले राष्ट्रीय गीत और फिर राजगीत की धुन बजाई गई। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरुप राय चौधरी ने राज्यपाल को शपथ दिलाई। इस मौके पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य, अधिकारी और गणमान्य लोग मौजूद थे।

89 वर्ष के हरिचंदन जनसंघ के समय के खांटी नेता हैं. राजनेता होने के साथ-साथ वे कानून के जानकार और साहित्यकार भी हैं. इससे पहले उन्होंने 2019 से 2023 तक आंध्रप्रदेश के 23वें राज्यपाल के रूप में जिम्मेदारी निभाई. आगे पढ़ें बिश्वभूषण हरिचंदन की जीवनी...

ओडिशा के खोरधा में हुआ जन्म

छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल बिश्वभूषण हरिचंदन का जन्म 3 अगस्त 1934 को ओडिशा के खोरधा जिले के बानपुर में हुआ था. उनके पिता परसुराम हरिचंदन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. बिश्वभूषण हरिचंदन ने इकानॉमिक्स में ऑनर्स की डिग्री ली और कटक स्थित एमएस लॉ कॉलेज से एलएलबी किया. उनकी पत्नी का नाम सुप्रभा हरिचंदन है. वहीं दो बेटे पृथ्वीराज व प्रसनजीत हरिचंदन है.


1971 में जनसंघ से जुड़े

हरिचंदन ने 1962 में ओड़िशा हाईकोर्ट में वकालत की शुरुआत की. वे 1971 में भारतीय जनसंघ से जुड़े. जेपी मूवमेंट के दौरान वे जेल भी गए. वे पांच पांच ओडिशा विधानसभा के लिए विधायक चुने गए. सबसे पहले 1977 में वे विधायक बने. इसके बाद 1990, 1996, 2000 और 2004 में विधानसभा चुनाव जीते.


95 हजार वोटों से जीते

वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से रिकॉर्ड 95000 वोटों से जीते थे. वे चार बार मंत्री रहे. इस दौरान राजस्व, कानून, ग्रामीण विकास, उद्योग, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, श्रम व रोजगार, आवास, संस्कृति, मत्स्यपालन व पशुपालन विभागों की जिम्मेदारी संभाली.

बिश्वभूषण हरिचंदन ओडिशा भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष थे. वे 1980 से 1988 तक लगातार तीन बार अध्यक्ष चुने गए.

साहित्यिक योगदान

उनके प्रमुख साहित्यिक योगदान में कई रचनाएं शामिल हैं. इनमें महासंग्रामर महानायक नाम का एक नाटक है, जो पाइक विद्रोह के नायक बक्शी जगबंधु पर केंद्रित है. उन्होंने छह एकांकी नाटक भी लिखे. इनमें मरुभताश, राणा प्रताप, शेष झलक, जो मेवाड के महारानी पद्मिनी पर आधारित है. अष्ट शिखा, जो तपांग दलबेरा के बलिदान पर आधारित है. मानसी (सामाजिक) और अभिशप्त कर्ण (पौराणिक) नाटक है. उनकी 26 लघु कथाओं के संकलन का नाम 'स्वच्छ सासानारा गहन कथा' है. इसके अलावा ये मतिर डाक उनके कुछ चुनिंदा प्रकाशित लेखों का संकलन है. संग्राम सारी नहीं उनकी आत्मकथा है, जिसमें उनके लंबे सार्वजनिक जीवन के दौरान राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य क्षेत्रों में उनके संघर्षों पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

वे कार्य जिन्हें याद किया जाता है

वर्ष 1977 में कैबिनेट मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान आवश्यक वस्तुएं, जिनकी आपातकाल के दौरान कमी पाई गयी थी. उन्होनें आवश्यक वस्तुआंे को न केवल स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया बल्कि मूल्य-रेखा को लगातार बनाए रखा. कालाबाजारी करने वालों और जमाखोरों के खिलाफ उन्होंने कड़ी कार्रवाई की, जिसने उन्हें ओडिशा में बहुत लोकप्रिय बना दिया।

राजस्व मंत्री के रूप में उन्होंने प्रशासन की सुविधा के लिए भूमि अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण, सरलीकरण और राजस्व कानूनों को संहिताबद्ध करने पर जोर दिया. 1956 के विनियम 2 में संशोधन कर और इसे और अधिक कठोर बनाकर अवैध रूप से और धोखाधड़ी से हस्तांतरित की गई आदिवासी भूमि की बहाली के लिए साहसिक कदम उठाए. राजस्व प्रशासन को और अधिक जनहितैषी बनाकर पुनर्गठित किया.

उद्योग मंत्री के रूप में उन्होंने सिंगल विंडो सिस्टम शुरू करने की पहल की और उद्योग सुविधा अधिनियम पारित करवाया. उनके गहन प्रयासों के कारण ही राज्य की 'आरआर' (पुनर्वास एवं प्रतिस्थापन) नीति, उस समय देश की सर्वश्रेष्ठ आरआर नीति बनी थी. हरिचंदन ने कैबिनेट उप समिति के अध्यक्ष के रूप में इस नीति को अमलीजामा पहनाया, जिससे विस्थापितों के पुनर्वास के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया.

राज्य सरकार के ऋणों की अदायगी के लिए सभी अधिशेष सरकारी भूमि की बिक्री के खिलाफ उन्होंने कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा कि जमीन की मालिक सरकार नहीं बल्कि राज्य होता है तथा सरकार के पास सिर्फ ट्रस्टी जैसी सीमित शक्तियां होती हैं. उन्होंने अधिशेष सरकारी भूमि की बिक्री का जोरदार विरोध किया जिस कारण राज्य मंत्रिमंडल को अपना निर्णय बदलना पड़ा.

ब्रिटिश शासन के खिलाफ बख्शी जगबंधु के नेतृत्व में उड़िया लोगों द्वारा स्वतंत्रता के लिए ऐतिहासिक युद्ध 1817 के पाइक विद्रोह को राष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए उन्होंने 1978 वर्ष से निरंतर प्रयासरत रहे. परिणाम स्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर इसके द्विशताब्दी समारोह आयोजित करने के निर्देश दिए.

Next Story