पहलवान और शिक्षक रहे मुलायम सिंह गांव से निकालकर भारतीय सियासत को मथने का काम किया, पढ़िए उनके निधन पर किसने क्या कहा...
अखिलेश अखिल
NPG DESK -
मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और पिछले दिनों गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। सोमवार की सुबह करीब साढ़े आठ बजे उन्होंने अंतिम सांस लिये और इस दुनिया को अलविदा कह गए। वे 82 साल के थे। मुलायम सिंह का चला जाना एक समाजवादी सूर्य के अस्त के सामान है और समाजवादी राजनीति के लिए एक बड़ा झटका भी।
यूपी में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया गया है। सूबे के सीएम योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन अत्यंत दुखदाई है। उनके निधन से समाजवाद के प्रमुख स्तंभ एवं संघर्षशील युग का अंत हुआ है। सीएम योगी ने कहा कि ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति की कामना एवं शोकाकुल परिजनों एवं समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुलायम सिंह के पुत्र व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके भाई रामगोपाल यादव से फोन पर बात की और संवेदनाएं व्यक्त की।
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने मुलायम सिंह यादव के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि मुलायम सिंह यादव के निधन का दुखद समाचार मिला। भारतीय राजनीति में उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री, भारत सरकार के रक्षामंत्री व सामाजिक न्याय के सशक्त पैरोकार के रूप में उनका अतुलनीय योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। अखिलेश यादव व अन्य सभी प्रियजनों के प्रति मेरी गहरी शोक संवेदनाएं। ईश्वर मुलायम सिंह यादव को श्रीचरणों में स्थान दें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मुलायम सिंह यादव के निधन पर काफी भावुक नजर आए। उन्होंने एक के बाद एक ट्वीट कर मुलायम सिंह यादव के बारे में बहुत कुछ लिखा, इसके साथ ही उन्होंने मुलायम सिंह के साथ अपनी कई तस्वीरों को ट्वीट किया। पीएम मोदी ने अपने ट्वीटों की श्रृखंला में लिखा, "मुलायम सिंह यादव जी एक विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। उन्हें एक विनम्र और जमीन से जुड़े नेता के रूप में व्यापक रूप से सराहा गया, जो लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील थे। उन्होंने लगन से लोगों की सेवा की और लोकनायक जेपी और डॉ. लोहिया के आदर्शों को लोकप्रिय बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। मुलायम सिंह यादव जी ने यूपी और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई।
वह आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के लिए एक प्रमुख सैनिक थे। रक्षा मंत्री के रूप में, उन्होंने एक मजबूत भारत के लिए काम किया। उनके संसदीय हस्तक्षेप व्यावहारिक थे और राष्ट्रीय हित को आगे बढ़ाने पर जोर देते थे। जब हमने अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में काम किया, तब मुलायम सिंह यादव जी के साथ मेरी कई बातचीत हुई। घनिष्ठता जारी रही और मैं हमेशा उनके विचारों को सुनने के लिए उत्सुक था। उनका निधन मुझे पीड़ा देता है। उनके परिवार और लाखों समर्थकों के प्रति संवेदना। शांति।"
उनके निधन पर रक्षामंत्री राजनाथ ने किया याद किया है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मुलायम सिंह यादव को याद करते हुए ट्विटर पर लिखा, राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद मुलायम सिंह जी के सबसे अच्छे संबंध थे। जब भी उनसे भेंट होती तो वे बड़े खुले मन से अनेक विषयों पर बात करते। अनेक अवसरों पर उनसे हुई बातचीत मेरी स्मृति में सदैव तरोताजा रहेगी। दुःख की इस घड़ी में उनके परिजनों एवं समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनाएं।
गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा, मुलायम सिंह यादव जी अपने अद्वितीय राजनीतिक कौशल से दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे। आपातकाल में उन्होंने लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए बुलंद आवाज उठाई। वह सदैव एक जमीन से जुड़े जननेता के रूप में याद किए जाएंगे। उनका निधन भारतीय राजनीति के एक युग का अंत है। दुःख की इस घड़ी में उनके परिजनों व समर्थकों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें। ॐ शांति शांति शांति।
तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी उनको श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, समाजवादी पार्टी के व्योवृद्ध नेता व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन की खबर अति-दुःखद है। उनके परिवार व सभी शुभचिन्तकों के प्रति मेरी गहरी संवेदना। कुदरत उन सबको इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे।
पहलवान और शिक्षक रहे मुलायम ने लंबी सियासी पारी खेली। तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे। केंद्र में रक्षा मंत्री रहे। उन्हें बेहद साहसिक सियासी फैसलों के लिए भी जाना जाता है। लेकिन इन सबसे बढ़कर वे खांटी समाजवादी थे और पिछड़ों ,अकलियतों के सबसे बड़े संरक्षक भी। उनकी राजनीति कभी लुभाती थी तो कभी भरमाती भी थी लेकिन इस पूरे खेल में वे कट्टर समाजवादी नेता के रूप में ही सामने दीखते थे। भारतीय राजनीति में उनकी अपनी हैसियत थी और अपना अंदाज भी। वे गरीबो के मसीहा भी थे और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए संरक्षक भी। वे डरते नहीं थे। जो सही लगा कहने में हिचकते नहीं थे। वे एक ऐसे नेता थे गाँव से निकलकर भारतीय राजनीति को मथने का काम तो किया लेकिन अपने लोगों को कभी नहीं भुलाया।
22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई में जन्मे मुलायम ने करीब 6 दशक तक सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिया। वो कई बार यूपी विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रहे। इसके अलावा उन्होंने संसद के सदस्य के रूप में ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा में हिस्सा भी लिया। मुलायम सिंह यादव 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में कुल 8 बार विधानसभा के सदस्य बने। इसके अलावा वह 1982 से 1985 तक यूपी विधानसभा के सदस्य भी रहे।
मुलायम सिंह यादव ने तीन बार यूपी के सीएम के रूप में काम किया। वो पहली बार 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991, दूसरी बार 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और तीसरी बार 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के सीएम रहे। इन कार्यकालों के अलावा उन्होंने 1996 में एचडी देवगौड़ा की संयुक्त गठबंधन वाली सरकार में रक्षामंत्री के रूप में भी काम किया। अपने सर्वस्पर्शी रिश्तों के कारण मुलायम सिंह को नेताजी की उपाधि भी दी जाती थी। मुलायम को उन नेताओं में जाना जाता था, जो यूपी और देश की राजनीति की नब्ज समझते थे और सभी दलों के लिए सम्मानित भी थे।
इसमें कोई शक नहीं कि वह जिस बैकग्राउंड से राजनीति में आए और मजबूत होते गए। उसमें उनकी सूझबूझ थी और हवा को भांपकर अक्सर पलट जाने की प्रवृत्ति भी। कई बार उन्होंने अपने फैसलों और बयानों से खुद ही अलग कर लिया। राजनीति में कई सियासी दलों और नेताओं ने उन्हें गैरभरोसेमंद माना लेकिन हकीकत ये है कि यूपी की राजनीति में वह जब तक सक्रिय रहे, तब तक किसी ना किसी रूप में अपरिहार्य बने रहे।
राजनीति के दांवपेंच उन्होंने 60 के दशक में राममनोहर लोहिया और चरण सिंह से सीखने शुरू किए। लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए। लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया और वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे। उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में जीतते रहे. विधानसभा तो कभी विधानपरिषद के सदस्य बनते रहे।
उनकी पहली पार्टी अगर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी तो दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल। जिसमें वह 1968 में शामिल हुए. हालांकि चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया। ये मुलायम के सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने जब समाजवादी पार्टी बनाई, तब तक उनकी इमेज मुस्लिम, किसान और यादवों के बीच बड़े नेता की बन चुकी थी।
मुलायम सिंह की पकड़ लगातार जमीनी तौर पर मजबूत हो रही थी। इमर्जेंसी के बाद देश में सियासत का माहौल भी बदल गया। आपातकाल में मुलायम भी जेल में भेजे गए और चरण सिंह भी। साथ में देश में विपक्षी राजनीति से जुड़ा हर छोटा बड़ा नेता गिरफ्तार हुआ। नतीजा ये हुआ कि अलग थलग छिटकी रहने वाली पार्टियों ने इमर्जेंसी खत्म होने के बाद एक होकर कांग्रेस का मुकाबला करने का प्लान बनाया। इस तर्ज पर भारतीय लोकदल का विलय अब नई बनी जनता पार्टी में हो गया। मुलायम सिंह मंत्री बन गए।
मुलायम का एक स्टैंड उनके राजनीतिक करियर से आज तक कायम है, वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति उनका खिलाफत भरा दृष्टिकोण। हालांकि उन पर कई बार ये आरोप लगे हैं कि वह भारतीय जनता पार्टी के प्रति कई बार साफ्ट हो जाते हैं। लेकिन वह जब तक सक्रिय राजनीति में रहे, जमीन से जुड़े रहे।
मुलायम सिंह यादव अब जब इस दुनिया छोड़कर चले गए हैं एक सवाल उठने लगा है कि जिंदगी भर देश की एकता और खासकर हिन्दू -मुस्लिम एकता की लड़ाई लड़ने वाले नेता के चले जाने पर क्या कोई उनके इस पहल को भी आगे बढ़ाएगा? वे कहते थे कि हिन्दू-मुस्लिम एकता ही हमारी विरासत है। जिस दिन यह विरासत घायल होगी ,देश का सब कुछ ख़त्म हो जाएगा।