संजय के. दीक्षित
तरकश। छत्तीसगढ़ में ऐसे कलेक्टर, एसपी हैं, जो दो-दो तीन जिले की कलेक्टरी और कप्तानी करने के बाद भी कुंवारे हैं। आमतौर पर यूपीएससी में सलेक्ट होने से पहले पांच से 10 फीसदी अधिकारियों की शादी हो गई होती है। 90 फीसदी आईएएस, आईपीएस मसूरी या हैदराबाद में ट्रेनिंग के दौरान सात फेरे ले लेते हैं। बचे पांच परसेंट। प्रोबेशन के दौरान इन पांच परसेंट वालों का रिश्ता कहीं-न-कहीं फायनल हो जाता है। देखने में आया है, कलेक्टर, एसपी बनने के बाद अपवादस्वरूप ही शादियां होतीं हैं। छत्तीसगढ़ में पूर्व आईएएस ओपी चौधरी की जांजगीर कलेक्टर रहते ब्याह हुआ था। अवनीश शरण की जब शादी हुई, तब वे नगर निगम कमिश्नर थे। छत्तीसगढ़ में अभी एक आईएएस दूसरे जिले की कलेक्टरी कर रहे हैं, मगर बैचलर हैं। खबर है उनकी शादी की बात चल रही है। वहीं, तीसरे जिले की कप्तानी कर रहे एक आईपीएस भी मोस्ट बैचलर हैं।
नौकरशाह भ्रष्ट नहीं, मगर...
शादी की बात निकली तो...स्टडी में आया है...नौकरशाह भ्रष्ट नहीं, बल्कि परिस्थितियां उन्हें ऐसा बना देती है। इसकी वजहें कई हैं। असल में, 90 फीसदी से अधिक आईएएस, आईपीएस बेहद साधारण परिवारों ताल्लुकात रखते हैं...उनके पिता होते हैं शिक्षक या फिर मामूली नौकरी या फिर खेती-किसानी वाले। मगर बेटे के यूपीएससी में सलेक्ट होते ही अमीर घराने के लोग शादी के लिए टूट पड़ते हैं....एक तरह से हाईजैक जैसी स्थिति। अब हाई-फाई स्टेट्स वाले घरों में ससुराल हो गया....पत्नी बड़े घर की...रौबदार...अफसर की फिर मजबूरी हो जाती है। वैसे भी, आईएएस, आईपीएस सर्विस ऐसी है कि मौके की कमी नहीं होती। जिस फाइल में हाथ डालो, उसमें मनीराम। दूसरी वजह, आईआईटी, आईआईएम वाले उनके दोस्त, यार करोड़ों के पैकेज की नौकरी पा जाते हैं...वे चलते हैं मर्सिडीज में और आईपीएस सियाज या बहुत हुआ तो इनोवा। फ्रस्टेशन को दूर करने अफसर फिर बंगलों की साज-सज्जा पर लाखों फूंक देते हैं। एक एसपी ने सरकारी बंगले की इंटीरियर पर 55 लाख लगा दिया। आईएएस के बंगलों में तीन से कम गाड़ियां होती नहीं। प्रोटोकॉल की गाड़ी के अलावा जितने विभाग, उतनी गाड़ियां। कई गाड़ियां तो दिन में 10 किमी नहीं चलती मगर महीने का 45 हजार किराया आफिस से जाता है। ये होता है सिर्फ अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए।
चुनाव में दो-दो हाथ
संवैधानिक पद पर बैठे एक रिटायर अधिकारी अगले साल राजनीति के पिच पर किस्मत आजमा सकते हैं। बताते हैं, राज्य सभा चुनाव में टॉप थ्री में उनका नाम था। लेकिन, कांग्रेस हाईकमान ने मामला पलट दिया। अब चर्चा है कि कुरुद से वे पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के खिलाफ दो-दो हाथ करने के लिए मैदान में उतर सकते हैं।
कलेक्टरों की फायनल लिस्ट
सरकार ने 19 कलेक्टरों समेत 36 आईएएस अधिकारियों को बदल दिया। कलेक्टरों के ट्रांसफर में इस बार खास बात यह रही कि हटाया गया सिर्फ चार को। अलबत्ता, अधिकांश कलेक्टरों को इधर-से-उधर किया गया। हटने वालों में भीम सिंह, डॉ0 सारांश मित्तर, रमेश शर्मा और भोस्कर विलास संदीपन शामिल हैं। बाकी पुराने को ही ताश के पत्ते की तरह फेंटा गया। भीम सिंह तो वैसे भी काफी सीनियर हो गए थे। लिहाजा, उनका लौटना चौंकाता नहीं। प्रमोटी कलेक्टरों में भी संख्या एक कम हो गई। छह में से रमेश को वापिस आने से अब मात्र पांच बच गए। अलबत्ता, माना तो यह जा रहा कि कलेक्टरों की ये इलेक्शन टीम हैं। मगर अंदर की खबर ये है कि एक फायनल लिस्ट दिसंबर, जनवरी के आसपास आएगी। उसमें काफी उलटफेर होगा। इस लिस्ट में कुछ बड़े प्लेयर इधर-उधर हो गए हैं, वे उसमें ठीक ठाक जिलों में एडजस्ट हो जाएंगे। तब प्रमोटी की संख्या भी बढ़ेगी।
वेटिंग कलेक्टर की वेटिंग!
पांच नए जिलों में जिन आईएएस अधिकारियों को ओएसडी प्रशासन यानी वेटिंग कलेक्टर बनाया गया वे वेट करते रह गए और इधर किस्मत देखिए कि 2015 और 2016 बैच वाले कलेक्टर बन गए। दरअसल, सरकार ने मई में नए जिलों के वेटिंग कलेक्टर बनाए थे, उनमें दो तो 2013 बैच के हैं। बाकी 2015 बैच के हैं मगर सीनियरिटी में उपर हैं। उनसे नीचे वाले अभी कलेक्टर बन गए। यहां तक कि 2016 बैच के राहुल देव भी जिला पा गए। नए जिले वाले अभी बैठने के लिए कुर्सी, टेबल का इंतजाम कर रहे और इधर जूनियर जमा, जुमाया जिला पा गए। हालांकि, आईएएस की पोस्टिंग में यह अच्छी बात हुई है कि नए वाले की वेटिंग क्लियर करने की कोशिश की गई है। कहां पिछले साल 2014 बैच वाले कलेक्टर बनने के लिए टकटकी लगाए थे और इस बार 2016 बैच चालू हो गया।
मजबूरी का नाम....
डोमन सिंह राजनांदगांव का कलेक्टर बनाए गए हैं। उन्होंने कलेक्टरी का अपना ही नेशनल रिकार्ड ब्रेक किया है। देश में अभी तक प्रमोटी आईएएस के चार जिलों के कलेक्टर बनने के दृष्टांत हैं। चार जिले तो छत्तीसगढ़ के ही हैं। यूपी में पांच जिला एक प्रमोटी आईएएस ने किया है। डोमन सिंह पिछले साल बलौदा बाजार का कलेक्टर बनकर देश में कीर्तिमान बनाए थे। और, इस बार राजनांदगांव जैसे बड़े जिले की कमान मिल गई। प्रमोटी के रूप में सात जिले की कलेक्टरी का उन्होंने ऐसा रिकार्ड बना दिया है, जो देश में अब शायद ही कोई प्रमोटी तोड़ पाए। जाहिर है, लोगों की उत्सुकता होगी कि डोमन सिंह को इतना छप्पड़ फाड़ कर क्यों....। बताते हैं, आदिवासी राज्य में कम-से-कम एक कलेक्टर तो ट्राईबल होना चाहिए। डोमन सिंह से बेहतर कोई चेहरा फिलहाल छत्तीसगढ़ में है सरकार के पास है नहीं। इसका लाभ उन्हें मिल जा रहा।
पेंशन में पेंच
राजस्थान और छत्तीसगढ़ के बाद झारखंड में भी पुरानी पेंशन लागू करने की वहां के मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी। लेकिन, चीफ सिकरेट्री सुखदेव सिंह अड़ गए हैं। उनका कहना है कि पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने पर नए का 17 हजार करोड़ जमा है, उसका क्या होगा। उन्होंने नोटशीट पर लिख दिया है, हमारे कर्मचारियों की इतनी बड़ी राशि फंस गई तो हम उन्हें क्या जवाब देंगे। उन्होंने राजस्थान और छत्तीसगढ़ का भी हवाला दिया है कि उनका पैसा अभी तक नहीं मिला है। सीएस के विरोध के बाद अब फैसला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर छोड़ दिया गया है।
चौथी महिला कलेक्टर
रायपुर, बिलासपुर जैसे कई जिलों में अभी तक एक भी महिला कलेक्टर तैनात नहीं हुई है। लेकिन, कांकेर ऐसा जिला है, जहां चौथी महिला कलेक्टर पोस्ट हुई हैं। सरकार ने डॉ0 प्रियंका शुक्ला को कांकेर का कलेक्टर बनाया है। उनसे पहिले अलरमेल मंगई डी, शम्मी आबिदी और रानू साहू कांकेर में कलेक्टर रह चुकी हैं। दूसरे नम्बर पर कोरबा है और तीसरे पर रायगढ़। कोरबा में तीन और रायगढ़ में दो महिला आईएएस कलेक्टरी कर चुकी हैं।
गौरव खुश, मोहबे...
गौरव सिंह दो महीने पहिले ही मुंगेली के कलेक्टर बने थे। सरकार ने उन्हें हटाकर बालोद भेज दिया। और बालोद वाले जन्मजय मोहबे को कवर्धा। मुंगेली में 5 करोड़ का डीएमएफ था, बालोद में 100 करोड़ का। 100 में से 20 करोड़ राजनंदगांव को जाता है। फिर भी बचा 80 करोड़। ऐसे में गौरव का खुश होना लाजिमी है। मगर जन्मजय का दुख समझा जा सकता है। दो ब्लॉक का जिला और टेंशन बालोद से कई गुना ज्यादा। फिर डीएमएफ भी बालोद के सामने कुछ भी नहीं।
आरडीए की कुर्सी
रायपुर विकास प्राधिकरण याने आरडीए में कोई सीईओ टिक नहीं पा रहा। तरकश के पिछले स्तंभ में मैंने इस बात का जिक्र किया था कि पांच सीईओ चार-चार महीने के भीतर बदल गए। चंद्रकांत वर्मा को सलाह भी...कि उन्हें कुछ पूजा-पाठ करानी चाहिए...कुर्सी पर न टिकने का टोटका दूर हो। चंद्रकांत ने कुछ किया नहीं और दो महीने में ही उनका कांकेर ट्रांसफर हो गया। उनकी जगह पर धर्मेश साहू नए सीईओ अप्वाइंट किए गए हैं। देखना है, वे इस टोटका को ब्रेक करते हैं या...
अंत में दो सवाल आपसे
1. किस वजह से एक कलेक्टर का विकेट उड़ते-उड़ते बचा...उन्हें छोटे जिलें में एडजस्ट किया गया?
2. माटी पुत्र होने के बाद भी आईएएस चंद्रकांत वर्मा का ठीक-ठाक रिहैबलिटेशन क्यों नहीं हो पा रहा ?