Loksabha Speaker Power: क्यों टीडीपी और जेडीयू चाहते हैं स्पीकर पद? गिरधर गोमांग के एक वोट से गिर गई थी एनडीए की सरकार, जानिये स्पीकर के अधिकार...
Loksabha Speaker Power: लोकसभा स्पीकर के पद बेहद अहम होते हैं। खासकर, ऐसे समय में जब किसी पार्टी की स्पष्ट बहुमत न हो या फिर डांवाडोल की स्थिति हो। सांसदों के पाला बदलने के केस में स्पीकर के अधिकार अहम हो जाते हैं। स्पीकर के स्वविवेक पर कई फैसले निर्भर करते हैं। आपको याद है कि स्पीकर गिरधर गोमांग के एक वोट से अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार गिर गई थी।
अनिल तिवारी
Loksabha Speaker Power: रायपुर। लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी स्पष्ट बहुमत से कुछ सीटें कम रह गई। इसके बावजूद भी घटक दलों के साथ वो सरकार बनाने के लिए मजबूत स्थिति में है। अपने तीसरे कार्यकाल के लिए तैयार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए संसदीय दल के नेता चुन लिए गए हैं। लेकिन बीजेपी के बहुमत में न होने के चलते एनडीए के घटक दलों से बीजेपी को काफी समझौते करने पड़ सकते हैं। इसमें सबसे अहम भूमिका टीडीपी और जेडीयू की होगी। ऐसे में दोनों ही दलों के नेता चाहते हैं कि प्रधानमंत्री के बाद सदन में सबसे शक्तिशाली पद स्पीकर उनकी झोली में आए। सूत्रों का कहना है कि दोनों ही दल स्पीकर का पद अपने-अपने कोटे में रखने की मांग कर रहे हैं। अभी तक इस बारे में दोनों दलों की तरफ से खुलकर कोई बात सामने नहीं आई है, लेकिन अंदरखाने में यही चर्चा है कि ये दोनों दल अपने लिए बीजेपी के सामने। हालांकि बीजेपी किसी भी सूरत में किसी दूसरे दल के व्यक्ति को इस पद पर नहीं बिठाना चाहेगी। इधर एनडीए की पहली बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए जेडीयू और टीडीपी दोनों ने ही ऐसी किसी डिमांड से इनकार किया है। लेकिन जेडीयू और टीडीपी दोनों ही भविष्य में अपनी ही पार्टी को विभाजन से बचाने के लिए ये पद चाहते हैं। क्योंकि दल-बदल वाले कानून के चलते स्पीकर की भूमिका सबसे अहम हो जाती है। क्योंकि दल-बदल कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पास बेहद ही सीमित अधिकार है। देश का राजनीतिक इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है, जब सरकार को बचाने में स्पीकर की भूमिका सबसे अहम हो जाती है।
ये हैं लोकसभा स्पीकर का अधिकार
लोकसभा स्पीकर का पद सदन में काफी अहम होता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर में सदन के भीतर लोकसभा अध्यक्ष, भारतीय संसद के निम्न सदन, लोकसभा का सभापति एवं अधिष्ठाता होता है। स्पीकर ही लोकसभा सदन का मुखिया होता है। स्पीकर न केवल सदन के अनुशासन को सुनिश्चित करता है, बल्कि इसके उल्लंघन पर लोकसभा सदस्यों को दंडित करने का भी अधिकार रखता है। लोकसभा स्पीकर की भूमिका और अहम तब हो जाती है। जब किसी दल या गठबंधन का बहुमत परीक्षण कराना होगा। दोनों पक्षों के वोट बराबर होने पर वह मतदान करने का भी अधिकारी होता है। ऐसे में स्पीकर का वोट निर्णायक और महत्वपूर्ण हो जाता है। लोकसभा स्पीकर सदन की प्रक्रियाओं जैसे स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव आदि की भी अनुमति देता है। इसके अलावा स्पीकर संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी करता है। इतना ही नहीं स्पीकर ही लेकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने पर भी फैसला करता है। लोकसभा स्पीकर ही सदन के सभी संसदीय समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है और उनके कार्यों पर निगरानी रखता है।
ऐसे होता है चुनाव
लोकसभा अध्यक्ष निर्वाचन की तिथि राष्ट्रपति तय करते हैं। निश्चित तिथि की सूचना लोकसभा का महासचिव सदस्यों को देता है। जिसके बाद सदस्य ही लोकसभा अध्यक्ष का मतदान कर बहुमत से निर्वाचन करते हैं। लोकसभा अध्यक्ष अन्य लोकसभा सदस्यों की ही तरह एक सदस्य के रूप में शपथ लेता है। उसका शपथ भी कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा कराया जाता है। कार्यकारी अध्यक्ष सबसे वरिष्ठ सदस्य को बनाया जाता है। निर्वाचन की तिथि के एक दिन पूर्व के मध्याह्न से पहले किसी सदस्य द्वारा किसी अन्य सदस्य को अध्यक्ष चुने जाने का प्रस्ताव महासचिव को लिखित रूप में दिया जाता है। ये प्रस्ताव किसी तीसरे सदस्य द्वारा अनुमोदित होना चाहिए। इस प्रस्ताव के साथ अध्यक्ष के उम्मीदवार सदस्य का यह कथन संलग्न होता है कि वह अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है। निर्वाचन के लिए एक या अधिक उम्मीदवारों द्वारा प्रस्ताव किये जा सकते हैं। यदि एक ही प्रस्ताव पेश किया जाता है, तो अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मत होता है और यदि एक से अधिक प्रस्ताव प्रस्तुत होते हैं, तो मतदान कराया जाता है।
ये मिलती हैं सुविधाएं
लोकसभा स्पीकर भी सदन का सदस्य ही होता है। जिसे 1954 के संसद अधिनियम के तहत वेतन, भत्ते और पेंशन आदि की सुविधाएं दी जाती है। दिसंबर 2010 में इस अधिनियम में कुछ संशोधन भी किया गया था। विशेष अधिनियम के मुताबिक लोकसभा स्पीकर को 50 हजार रुपए की सैलरी मिलती है। लोकसभा स्पीकर को भी हर महीने 45 हजार रुपये निर्वाचन क्षेत्र का भत्ता मिलता है। स्पीकर को समितियों की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए रोजाना 2 हजार रुपए भत्ता भी मिलता है। लोकसभा स्पीकर व उसके परिवार को मंत्रिमंडल के सदस्यों के बराबर यात्रा भत्ता भी दिया जाता है. यह भत्ता उसे देश और विदेश दोनों दौरों पर मिलता है। इसके अलावा उसे मुफ्त आवास, फ्री बिजली, फ्री फोन कॉल की सुविधाएं भी मिलती हैं। कार्यकाल समाप्त होने के बाद लोकसभा स्पीकर को पेंशन भी दी जाती है।
एक वोट से गिर गई थी सरकार
1998 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी भाजपा बनी थी। जयललिता की एआईडीएमके समेत कई दलों के समर्थन से केंद्र में भाजपा ने सरकार बनाई। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बने। लेकिन 13 महीनों बाद एआईडीएमके ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद अटल सरकार अल्पमत में आ गई और राष्ट्रपति ने सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा। तब ओडिशा के सांसद गिरधर गोमांग ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए थे। लेकिन लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था। वोटिंग के दिन वे सदन में मौजूद थे। उस समय के लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने अपने विवेक के आधार पर वोट डालने की अनुमति दे दी। गिरधर गोमांग के एक वोट काफी अहम था। उन्होंने सरकार के खिलाफ वोट गिया और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को सीएम एकनाथ शिंदे और उनके विधायकों के खिलाफ दलबदल कार्यवाही करने का फैसला दिया था। लेकिन इन इन याचिकाओं पर सुनवाई में देरी के चलते पार्टी का विभाजन हो गया था। ऐसे तमाम मौकों पर स्पीकर का पद सदन के भीतर काफी अहम हो जाता है, जिनके एक फैसले से सरकार बच सकती है या गिर सकती है।
अब तक के लोकसभा अध्यक्ष और उनका कार्यकाल
लोकसभा अध्यक्ष कार्यकाल
1 गणेश वासुदेव मावलंकर 15 मई 1952 - 27 फ़रवरी 1956
2 अनन्त शयनम् अयंगार 8 मार्च 1956 - 16 अप्रॅल 1962
3 सरदार हुकम सिंह 17 अप्रॅल 1962 - 16 मार्च 1967
4 नीलम संजीव रेड्डी 17 मार्च 1967 - 19 जुलाई 1969
5 जी. एस. ढिल्लों 8 अगस्त 1969 - 1 दिसंबर 1975
6 बलि राम भगत 15 जनवरी 1976 - 25 मार्च 1977
7 नीलम संजीव रेड्डी 26 मार्च 1977 - 13 जुलाई 1977
8 के एस हेगड़े 21 जुलाई 1977 - 21 जनवरी 1980
9 बलराम जाखड़ 22 जनवरी 1980 - 18 दिसंबर 1989
10 रवि राय 19 दिसंबर 1989 - 9 जुलाई 1991
11 शिवराज पाटिल 10 जुलाई 1991 - 22 मई 1996
12 पी.ए. संगमा 25 मई 1996 - 23 मार्च 1998
13 जी एम सी बालयोगी 24 मार्च 1998 - 3 मार्च 2002
14 मनोहर जोशी 10 मई 2002 - 2 जून 2004
15 सोमनाथ चटर्जी 4 जून 2004 - 30 मई 2009
16 मीरा कुमार 4 जून 2009 दृ 4 जून 2014
17 सुमित्रा महाजन 6 जून 2014 दृ 17 जून 2019
18 ओम बिरला 19 जून 2019 - पदस्थ