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खास रिपोर्ट: भारत के कई राज्यों में बाढ़, पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा डूबा, इंग्लैंड-अमेरिका में गर्मी ने लोगों को झुलसाया; जानें क्यों बन रहे ऐसे हालात

खास रिपोर्ट: भारत के कई राज्यों में बाढ़, पाकिस्तान का बड़ा हिस्सा डूबा, इंग्लैंड-अमेरिका में गर्मी ने लोगों को झुलसाया; जानें क्यों बन रहे ऐसे हालात
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By NPG News

ग्लोबल वार्मिंग से विश्व में हालत बन रहे उस पर NPG की स्पेशल स्टोरी

NPG डेस्क। मौसम में बढ़ती उथल-पुथल चौंका रही है। कहीं जानलेवा गर्मी पड़ रही है तो कहीं भारी बारिश ने तबाही मचा रखी है।एक के बाद एक अलग-अलग देशों के जंगलों में आग भड़क रही है। कहीं-कहीं तो इसके चलते आस-पास के गांव जल कर खत्म ही हो गए। वहीं अफ्रीका के कुछ हिस्सों में सूखा लोगों को भुखमरी के कगार पर ले जा चुका है। दुनिया के हर कोने से ऐसे ही समाचार आ रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के संभावित खतरों पर दशकों से वैज्ञानिक चिंता कर रहे थे पर बीते करीब डेढ़ साल में उसका जो भयावह रूप सामने आया है उसे देख दुनिया सकते में है। क्यों मौसम दिखा रहा है इतने आक्रामक तेवर? हालात इस हद तक क्यों बिगड़ गए? कैसी-कैसी तकलीफ़ों से गुज़र रहे हैं विभिन्न देश, आइए देखते हैं।

पहले जान लेते हैं कि क्या है जलवायु परिवर्तन और क्यों हो रही है ग्लोबल वार्मिंग

जलवायु एक लंबे समय में या कुछ सालों में किसी स्थान का औसत मौसम है और जलवायु परिवर्तन है उन्हीं औसत परिस्थितियों में बदलाव।

जलवायु परिवर्तन के लिए इंसानी गतिविधियां सबसे ज़्यादा दोषी हैं।घरेलू कामों, कारखानों और परिचालन के लिए हम तेल, गैस और कोयले का इस्तेमाल करते हैं। जब ये जीवाश्म ईंधन जलते हैं तो उनसे ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है जो पृथ्वी के चारों ओर लिपटे एक आवरण की तरह काम करता है। यह सूर्य की ऊष्मा को जब्त करता है और तापमान बढ़ाता है। और 'ग्लोबल वार्मिंग' का कारण बनता है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान बर्फ़ के गलने में तेज़ी ला रहा है, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और बाढ़ एवं कटाव की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।

देश-दुनिया के लिए कितना घातक साबित हो रहा है जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन के कारण की वैज्ञानिक पड़ताल तो हमने कर ली लेकिन इसका व्यवहारिक रूप अब सामने आ रहा है और वास्तव में हमें डरा रहा है। मौसम में इतना जटिल बदलाव इतनी तेज़ी से हो रहा है जिसकी उम्मीद आम लोगों को बिल्कुल नहीं थी।

सबसे पहले अपने देश की बात, जहां है हर तरफ़ पानी ही पानी

अति बारिश से देश के अनेक राज्यों का हाल बेहाल है। हर तरफ़ पानी ही पानी है। अनुसंधान से पता चलता है कि भारत में वार्षिक मानसून वर्षा में लगातार गिरावट देखी गई है। लेकिन साथ ही, भारी वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि हुई है। विश्व बैंक के अनुसार , दुनिया के औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि भारत के ग्रीष्मकालीन मानसून को और अधिक अप्रत्याशित बना देगी। जर्मन शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग को अनियंत्रित जारी रखा गया, तो भारत में मानसून की वर्षा अधिक जोरदार और अनिश्चित हो जाएगी। और यही स्थिति सामने नज़र आ रही है।

वहीं ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और समुद्र के जलस्तर के बढ़ने से पूर्वी व पश्चिमी तट के मैंग्रोव का सफाया हो रहा है।

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्र के पास मुंबई में मैंग्रोव के विनाश और अनियोजित निर्माण से बाढ़ ही बढ़ी है। मैंग्रोव को उन्नत निर्माण और बढ़ते समुद्र के स्तर का खामियाजा भुगतना पड़ा है। सुंदरबन का भी बड़ा हिस्सा इसी कारण जलमग्न हो गया है।

वहीं हमारे देश में गर्मियां भी अधिक गर्म और लंबी हो गई हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि वे बदतर हो जाएंगी। अध्ययनों के अनुसार, भारत में गर्मी (अप्रैल-जून) की गर्म तरंगों( हीट वेव) की आवृत्ति 1976-2005 की आधारभूत अवधि की तुलना में 21वीं सदी के अंत तक तीन से चार गुना अधिक होने का अनुमान है। हीटवेव की औसत अवधि भी दोगुनी होने की संभावना है।

अब कुछ प्रमुख देशों के बिगड़ते हालातों पर नज़र डालते हैं...

चीन में करवानी पड़ी कृत्रिम बारिश

चीन में इस बार 40% कम बारिश हुई है। यह साल 1961 के बाद से सबसे कम है। ऊपर से लगातार गर्मी बढ़ रही है। चीन के कई शहरों में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। गर्मी के चलते बिजली की खपत भी बढ़ गई तो हाइड्रोपावर से बनने वाली बिजली का उत्पादन घट गया। गर्मी का असर खेती पर भी पड़ा है। खेती के लिए पानी की मांग बढ़ गई। नदियों से सिंचाई के लिए ज्यादा पानी लिया गया। इसके चलते चीन में मौजूद एशिया की सबसे लम्बी नदी यांग्त्जी कई जगह पर पूरी तरह से सूख गई। इसके अलावा 66 अन्य नदियां भी पूरी तरह से सूख गईं। मज़बूर होकर चीन को कई जगहों पर कृत्रिम बारिश करानी पड़ी । इस बारिश को प्रेरित करने के लिए बादलों में सिल्वर आयोडाइड की छड़ें चलाने के लिए विमानों को तैनात किया गया।वहीं जून महीने में चीन में बाढ़ के हालात थे

वहीं बाढ़ भी लगातार चीन की परेशानी का सबब बनी हुई है। इस साल जून माह में देश के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में आए।।देश के कई हिस्सों में हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।कइयों की जान चली गई । पिछले साल तो चीन के ज़ंगज़ाऊ शहर में 19 जुलाई 2021को, एक ही दिन में 624 मिलीमीटर बारिश हुई जो वहाँ एक साल में होने वाली बारिश की मात्रा के बराबर है।इसकी वजह से दो लाख लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाना पड़ा और 33 लोगों की मौत हो गई थी।

वैज्ञानिको का कहना है कि भारी बारिश के पीछे नमी भरी गर्म हवा का संयोग है जिसमें बादल फटते हैं तो भयंकर बारिश होती है, तो कुछ क्षेत्रों में जरा भी बारिश नहीं होती।

पाकिस्तान का एक तिहाई हिस्सा डूबा पानी में - पाकिस्तान में इस साल बाढ़ का कहर टूटा। बाढ़ सामान्य से अधिक भारी मानसूनी बारिश और पिघलने वाले ग्लेशियरों के कारण हुई, जो एक गंभीर गर्मी की लहर के बाद हुई, जिसका कारण जलवायु परिवर्तन है। यह 2017 दक्षिण एशियाई बाढ़ के बाद से दुनिया की सबसे घातक बाढ़ है और इसे देश के इतिहास में सबसे खराब बताया गया है। 25 अगस्त को, पाकिस्तान ने बाढ़ के कारण आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी।पाकिस्तान के जलवायु परिवर्तन मंत्री ने कहा कि 29 अगस्त तक देश का लगभग "एक तिहाई" पानी के नीचे था, जिससे 33 मिलियन लोग प्रभावित हुए। पाकिस्तान सरकार ने देश भर में बाढ़ से अब तक 40 अरब अमेरिकी डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया है।

इंग्लैंड ने पहली बार देखा 40 डिग्री सेल्सियस तापमान

इस साल पहली बार इंग्लैंड ने अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस देखा है।इस बार ब्रिटेन के मौसम विज्ञान कार्यालय को पहली बार लाल गर्मी की चेतावनी जारी करनी पड़ी ,क्योंकि तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा था।

लाल गर्मी की चेतावनी का अर्थ है कि जीवन के लिए जोखिम की संभावना है और सभी आयु समूहों में जीवन के लिए खतरा है, फिट और स्वस्थ लोगों के लिए भी। इसे राष्ट्रीय आपातकाल के रूप में माना गया है।

अमेरिका में भी जारी हुआ अलर्ट

इस एक साल के दौरान अमेरिका के कई इलाकों में गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूटे। टेक्सास, ओकलाहोमा, कंसास, नेब्रास्का, मोंटाना और डकोटा में लोगों के लिए अलर्ट और एडवाइजरी जारी की गई। लोगों से इस दौरान घरों में रहने को कहा गया। उनसे अपील की गई कि अगर बहुत जरूरी ना हो तो वे घरों से ना निकलें। धूप से बचें। घर को ठंडा रखें। कुछ इलाकों ने इस बार43-44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान झेला। जो अमेरिकी लोगों के लिहाज से बहुत ज्यादा है।

बांग्लादेश में बाढ़ में 40 लाख लोग फँसे,इनमें 16 लाख बच्चे भी

भारत के उत्तर-पूर्व में भारी बारिश ने बांग्लादेश में नदियों को प्रवाहित कर दिया, जिसमें दो मुख्य सीमावर्ती नदियाँ सूरमा और कुशियारा अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं और सैकड़ों गाँव जलमग्न हो गए।

यह देश के इतिहास में सबसे भीषण बाढ़ों में से एक है। बाढ़ की ऊंचाई पर इन दो नदियों में जल स्तर अपने खतरे के स्तर से लगभग 1.75 मीटर (5.7 फीट) ऊपर था।

बांग्लादेश में यूनिसेफ के प्रतिनिधि शेल्डन येट ने कहा, "जीवन, घरों और स्कूलों को नुकसान दिल दहला देने वाला है।ऐसी आपदा में, जैसा कि सामान्यतया होता है, बच्चे सबसे कमजोर होते हैं।बच्चों को अपने परिवारों के साथ, ऐसे स्थानों पर पनाह लेनी पड़ी है जहाँ पहले से ही बहुत भीड़ है।स्कूल बन्द कर दिये गए हैं और परीक्षाएँ रद्द कर दी गई हैं, जिससे बच्चों की स्कूली शिक्षा में और भी बाधा पड़ी।निचले बांग्लादेश और पड़ोसी पूर्वोत्तर भारत में लाखों लोगों के लिए बाढ़ एक नियमित खतरा है, लेकिन कई विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन उनकी आवृत्ति, गति और अप्रत्याशितता को बढ़ा रहा है।"

जर्मनी ने भी सही बाढ़ की मार

जर्मनी में पिछले वर्ष विनाशकारी बाढ़ एक भयंकर तूफान और लगातार बारिश के कारण हुई थी जिससे नदियों में बाढ़ आ गई। जब मिट्टी और जल निकाय अतिरिक्त पानी को अवशोषित करने में सक्षम नहीं रहे तो यह आस-पास के इलाकों में कहर बरपाने लगा और इमारतों, बुनियादी ढांचे, पर्यावरण और लोगों के सामान को नुकसान पहुंचाने लगा।जर्मन अखबार फ्रैंकफर्टर ऑलगेमाइन के अनुसार, ऐसा तूफ़ान 1962 में हैम्बर्ग में आए तूफान के बाद से नहीं आया था।

प्रसिद्ध भारतीय जलवायु विज्ञानी और सैन डिएगो में कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर वीरभद्रन रामनाथन कहते हैं कि "जर्मनी जैसे अत्यधिक उन्नत देश में बाढ़ से अनेकों मौतों को देखकर मुझे चिंता होती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के लिए समाज आख़िर कितना तैयार है। "

रामनाथन मानते हैं कि अगले 20 वर्षों में मौसम से संबंधित घटनाएं 'उत्तरोत्तर ख़राब' होती जायेंगी। अन्य वैज्ञानिकों का भी कहना है कि इनमें से कई घटनाओं का संबंध मनुष्यों द्वारा किये गए 'जलवायु परिवर्तन' से है और चिंता इस बात की है कि आने वाले समय में इनकी भविष्यवाणी कर पाना और भी मुश्किल हो सकता है।

पूरी दुनिया की शक्ल बदल जाएगी'

यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के शोधकर्ता टिम लेंटन कहते हैं "मुझे लगता है कि इससे पूरी दुनिया की शक्ल बदल जाएगी। अगर आप अंतरिक्ष से धरती की ओर देखेंगे तो आपको समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी दिखेगी।वर्षावन खत्म हो जाएंगे।"

टिम कहते हैं… अगर हमनें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को नहीं रोका तो प्रकृति खुद ही अपना बदला लेगी।खुद ही उसे सुधारेगी।क्योंकि एक सीमा के बाद उसके सहने की क्षमता खत्म हो जाएगी।वह टूटेगी, बिखरेगी और आखिर में इंसानों और जीव-जंतुओं को नष्ट करने लगेगी।

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