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Indian Vulture: देश में गिद्धों की संख्या 4 करोड़ से घटकर 60 हजार पर आ गई, गिद्धों को प्राकृतिक सफाई कर्मी क्यों कहा जाता है...उनका होना क्यों जरूरी है, पढ़िये इस खबर को...

इंसान बिना हाथ पैर के अपाहिज है मगर कुदरत के आँचल में ऐसे जीव भी हैं जो केवल रेंग सकते हैं। पक्षी जो कमजोर हैं उन्हें प्रकृति ने पंख दिए हैं ताकि वो खतरे से बचने के लिए उड़ान भर सकें, और इसी उड़ान की मदद से वे अपना भोजन ढूंढ सकें।

Indian Vulture: देश में गिद्धों की संख्या 4 करोड़ से घटकर 60 हजार पर आ गई, गिद्धों को प्राकृतिक सफाई कर्मी क्यों कहा जाता है...उनका होना क्यों जरूरी है, पढ़िये इस खबर को...
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By NPG News

सत्यप्रकाश पांडेय

Indian Vulture: कुदरत ने अपने बनाए हर जीव-जंतु को इतना सक्षम बनाया है कि वो अपना निर्वाह आसानी से कर सके। इंसान बिना हाथ पैर के अपाहिज है मगर कुदरत के आँचल में ऐसे जीव भी हैं जो केवल रेंग सकते हैं। पक्षी जो कमजोर हैं उन्हें प्रकृति ने पंख दिए हैं ताकि वो खतरे से बचने के लिए उड़ान भर सकें, और इसी उड़ान की मदद से वे अपना भोजन ढूंढ सकें।


आज हम बात करेंगें ऐसे ही एक परिंदे की जिसने छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र में ग्राम औरापानी को अपना सुरक्षित रहवास मान लिया है। साल दर साल वे वंश वृद्धि में भी लगे हुए है, अफ़सोस बस इस बात का है कि उन बड़े परिंदों को भोजन की तलाश में आज भी सीमावर्ती प्रदेश मध्यप्रदेश के अलग-अलग हिस्सों की ओर उड़ान भरना पड़ता है। जी, हाँ हम ज़िक्र कर रहें हैं भारतीय गिद्ध Indian Vulture (Indian Long-billed Vulture) की। भारत में तेजी से विलुप्त हो चुके प्राकृतिक सफाईकर्मी गिद्ध (Indian Vulture) धीरे-धीरे वापसी तो कर रहें हैं मगर आज भी कइयों सवाल हैं जो उनकी संख्या बढ़ाने की दिशा में खड़े होते हैं। भारत में संकटग्रस्त हालात में पहुँचा गिध्दों का कुनबा सुरक्षित रहवास, भरपूर भोजन की तलाश में आज भी आकाश की ऊंचाइयों में उड़ान भरता दिखाई देता है।


छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में स्थित अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र में ग्राम औरापानी को सुरक्षित रहवास बना चुके गिद्धों (Indian Vulture) के संरक्षण की दिशा में वन विभाग गंभीर है साथ ही कुछ रिसर्चर्स की देख रेख में सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। पिछले तीन -चार साल के आंकड़ों पर गौर करें तो औरापानी में गिद्धों (Indian Vulture) का कुनबा 30 से बढ़कर 50 की संख्या में पहुँच चुका है। यहाँ लगातार काम कर रहे वल्चर कंजर्वेशन एन्ड रिसर्च एसोसिएट श्री अभिजीत शर्मा के मुताबिक़ भारत में गिद्ध संरक्षण की दिशा में तेजी से काम हो रहा है, गिद्धों को उनके प्राकृतिक रहवास के अलावा संरक्षित क्षेत्र में बचाने की कोशिश की जा रही है। राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड (NBWL) ने गिद्धों के संरक्षण की योजना को हाल ही में मंजूरी दे दी है, जिसके तहत गिद्धों के लिए जहर बन रही मवेशियों के इलाज में प्रयोग की जाने वाली दवाओं को भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल द्वारा प्रतिबंधित किया जाएगा। साथ ही इस कार्य योजना में उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडू में गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केन्द्रों की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है। गिद्ध संरक्षण कार्य योजना 2020-2025 के अनुसार देश में गिद्धों की मौजूदा आबादी के संरक्षण के लिए प्रत्येक राज्य में कम-से-कम एक "सुरक्षित गिद्ध क्षेत्र (Vulture Safe Zone)" बनाने की भी योजना बनाई गई है।

इधर ग्राम औरापानी में संतोषदास मानिकपुरी जैसे युवाओं की टीम भी है जो गिद्धों के बचाव को लेकर जागरूकता फैलाने का काम कर रही है। ग्रामीणों को गिद्धों के साथ छेड़छाड़ ना करने के अलावा अन्य जरूरी सावधानियों के बारे में भी बताया जाता है। वल्चर कंजर्वेशन एन्ड रिसर्च एसोसिएट अभिजीत शर्मा और उनकी टीम गिद्धों की संख्या, उनकी उड़ान की दिशा पर भी नज़र बनाये हुए है।


अचानकमार टाईगर रिजर्व के डीएफओ विष्णु नायर का कहना है कि गिद्धों की गिरती जनसंख्या का प्रमुख कारण डाईक्लोफिनेक (Diclofenac) नामक रसायन है जो एक आम दर्दनाशक के रूप में प्रयोग होता है। यह रसायन सभी प्रकार के दर्दनाशक जेल, मलहम एवं स्प्रे का प्रमुख घटक होता है। दर्दनाशक डाईक्लोफिनेक मवेशियों में भी समान रूप से प्रभावी होता है। मवेशियों के लिए बड़े पैमाने पर दर्दनाशक के रूप में डाईक्लोफिनेक का उपयोग भारत में गिद्धों की गिरती जनसंख्या का एक प्रमुख कारण है। इन प्रतिबंधित दवाओं के बारे में लगातार जागरूकता फैलाने का काम विभाग कर रहा है। श्री नायर ने कहा कि भारत सरकार से गिद्धों के टैगिंग की अनुमति भी मिल चुकी है, टैगिंग होने से गिद्धों के उड़ान क्षेत्र की जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी।


आपको बता दें कि गिद्ध (Vulture) पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी पक्षी होते हैं जो विशाल जीवों के शवों का भक्षण कर पर्यावरण को साथ-सुथरा रखने का कार्य करते हैं। भारत में पारसी समुदाय पारम्परिक रूप से शवों के निपटारे हेतु गिद्धों पर ही निर्भर रहता है। इस प्रकार गिद्ध सदियों से पारसी समुदाय के लिए पारिस्थितिक सेवा प्रदान कर रहे हैं। गिद्ध 7000 फीट की उँचाई तक उड़ सकते हैं और एक बार में 100 कि.मी. से भी ज्यादा की दूरी तय कर सकते हैं।

दुर्भाग्यवश आज भारत में गिद्धों की जनसंख्या बहुत तेजी से गिर रही है। 1990 में देश में गिद्धों की कुल संख्या लगभग 4 करोड़ थी जो से आज घटकर 60 हजार से भी कम हो गई है। भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य से गिद्ध पूर्णतः विलुप्त हो चुके हैं। 1980 के मध्य तक देश में पर्याप्त संख्या में गिद्ध पाये जाते थे। यहाँ तक कि इन्हें शहरी क्षेत्रों में ऊँचे वृक्षों के आसपास मंडराते हुए आमतौर से देखा जाता था। जबकि आज गिद्ध ग्रामीण क्षेत्रों में भी बमुश्किल ही दिखाई देते हैं।

गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं। वे पशुओं के मृत शरीर का भक्षण कर पोषक चक्र की प्रक्रिया को गति प्रदान करते हैं। गिद्ध मृत शरीर का निपटारा कर संक्रामक बिमारियों के फैलाव को रोकते हैं। गिद्धों की अनुपस्थिति में आवारा कुत्तों की जनसंख्या में वृद्धि होती है परिणामस्वरूप रैबीज रोग का फैलाव होता है .

आपको बता दें कि भारत में गिद्धों की कुल नौ प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिनमें से ज्यादातर प्रजातियाँ जोखिमग्रस्त हैं। इनका औसत वजन 3.5-7.5 किलोग्राम होता है और लम्बाई 75-93 से.मी. के बीच होती है। देश में गिद्धों की जो नौ प्रजातियाँ पायी जाती हैं उनके नाम इस प्रकार हैं -श्याम गिद्ध (Aegypius Monachus - एजिपियस मोनैकस), अरगुल गिद्ध (Gypaetus Barbatus - जिपिटस बारबेटस), यूरेशियन पांडुर गिद्ध (Gyps Fulvus - जिप्स फलवस), सफेद पीठ गिद्ध (Gyps Bengalensis - जिप्स बेंगालेनसिस), दीर्घचुंच गिद्ध (Gyps Indicus - जिप्स इण्डिकस), बेलनाचुंच गिद्ध (Gyps Tenuirostris - जिप्स टेन्यूरास्ट्रीस), पांडुर गिद्ध (Gyps Himalayensis - जिप्स हिमालयेन्सिस), गोपर गिद्ध (Neophron Percnopterus - नियोफ्रान पर्कनाप्टेरस) एवं राज गिद्ध (Sarcogyps Calvus - सारकोजिप्स कालवस)।

भारत सरकार ने गिद्धों की गिरती जनसंख्या को देखते हुए डाईक्लोफिनेक (Diclofenac) दवा के इस्तेमाल पर 2006 में ही रोक लगा दिया था और विकल्प के तौर पर मेलोक्सिकेम (Meloxicam) के प्रयोग की सिफारिश की थी, लेकिन आज भी डाईक्लोफिनेक गैर-कानूनी तरीके से बाजार में बेची जा रही है और मवेशी किसान इसका उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। डाईक्लोफिनेक का विकल्प मेलोक्सिकेम मंहगी होने के साथ-साथ कम प्रभावशाली होती है। गिद्धों की निरन्तर घटती आबादी गंभीर चिन्ता का विषय है अतः इन सफाईकर्मी पक्षियों के संरक्षण हेतु तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

आपको बताते चलें कि जब तक गिद्ध का बच्चा उड़ने के काबिल नही हो जाता ,तब तक उसकी देखभाल नर और मादा बारी-बारी से करते है। सामान्यतः एक गिद्ध 5 साल की आयु में प्रजनन करता है। Indian Vulture की आयु करीब-करीब 50 से 55 साल होती है। गिद्ध के सर पर बाल नही होते है क्योंकि जब गिद्ध मरे हुए जानवर को खाते है तो जीवाणु उस की गर्दन पर चिपकते है। नंगी गर्दन होने से उनके शरीर का तापमान भी संतुलित रहता है। Indian Vulture गर्म और समशीतोष्ण क्षेत्रो में पाये जाते है ।

पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण गिद्धों की विलुप्ति चिन्ता का विषय है। गिद्धों की कम जनसंख्या वाले स्थानों पर आवारा कुत्तों की जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या के कारण रैबीज बीमारी से होने वाली मृत्यु का खतरा भी बढ़ा है। गिद्धों के पाचन तन्त्र में उन रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है जो मनुष्यों में खतरनाक संक्रामक बीमारी पैदा करते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में तेंदुओं द्वारा मानव बस्तियों पर बढ़ते आक्रमण की घटनाओं के पीछे गिद्धों की घटती जनसंख्या है। कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप उनका भक्षण करने वाले तेन्दुओं की जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है। ऐसे स्थानों पर तेंदुए कुत्तों के शिकार के लिए मानव बस्तियों पर धावा बोलते हैं और बहुधा मानव बच्चों को अपना शिकार बना लेते हैं।

छत्तीसगढ़ में भारतीय गिद्धों का सबसे बड़ा कुनबा अचानकमार टाईगर रिजर्व के ग्राम औरापानी में है। इसके अलावा राज्य के गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान और बस्तर क्षेत्र में भी भारतीय गिद्धों को देखा जाता है, हालांकि इन क्षेत्रों में संख्या बेहद कम है। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ सरकार और संबंधित जिला एवं वन प्रशासन को गिद्धों की घर वापसी को लेकर और भी ठोस योजना बनाने की जरूरत है। खासकर उनके भोजन की। जब तक शासन-प्रशासन मृत मवेशियों के डम्पिंग साइड का निर्माण नहीं करेगा तब तक गिद्ध राज्य की सरहद से उड़ान भरकर दूसरे राज्य का रुख करते रहेंगे। हालांकि इस दिशा में कार्ययोजना बनाये जाने की कवायद शुरू होने की सुगबुगाहट तो है मगर योजना का क्रियान्वयन धरातल पर कब तक नज़र आएगा फ़िलहाल गर्भ में छिपा प्रश्न है।

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