संजय के.दीक्षित
तरकश, 23 जनवरी 2022
मंत्री हों तो ऐसे
यूं तो कई पूर्व मंत्रियों के पीए फोन में बात कराते समय अभी भी नाम से पहले माननीय लगाना नहीं भूलते। लेकिन, छत्तीसगढ़ में लंबा वक्त गुजार चुके पड़ोसी राज्य के एक मंत्री की सहजता और सरलता के विरोधी भी कायल हैं। हम बात कर रहे हैं, उड़ीसा के प्रभावशाली मंत्री कैप्टन डीएस मिश्रा की। कैप्टन काफी समय तक छत्तीसगढ़ सरकार के हेलीकॉप्टर के पायलट रहे। बाद में नौकरी छोड़कर वे सियासत की उड़ान भरने गृह राज्य चले गए। डीएस के पास गृह, उधोग और ऊर्जा जैसे पोर्टफोलियो हैं। इससे समझा जा सकता है कि नवीन बाबू के मंत्रिमंडल में उनका क्या पोजिशन होगा। बावजूद इसके वे जब रायपुर आते हैं तो पुराना कैप्टन बन जाते हैं। नो प्रोटोकॉल। हाल में वे रायपुर आये तो पुराने मित्रों के साथ बैडमिंटन खेलना नहीं भूले। रुकते भी हैं तो अफसर मित्र के घर पर। दोस्तों के साथ बेतकल्लुफी से बात, वही चिर-परिचित ठहाके। किसी के मुंह से मंत्रीजी निकल गया...डीएस टोके...मुझे डीएस ही रहने दो।
गजब का खेल
छत्तीसगढ़ में वन टू का फोर का ऐसा खेल शुरू है, कि जानकर आंखें चकरा जाएंगी। इसी खेल में सरकार के निर्देश पर कोरबा पुलिस ने मुकदमा कायम किया है। लेकिन, इसी बीच बेमेतरा का कांड लोगों को चौंका दिया है। बेमेतरा शहर के पास सरकारी जमीन से होकर गुजरने वाली सड़क को प्रभावशाली लोगों ने डिज़ाइन चेन्ज कराकर उसे प्राइवेट लैंड से निकाल दिया। पता चला है, उस इलाके की पूरी जमीन तीन-चार लोग मिलकर खरीद लिए हैं। अब हम इस खेल को बताते हैं। 5 हजार तक के छोटे टुकड़े का मुआवजा बाजार रेट से पांच-से-छह गुना ज्यादा होता है। चूकि नेताओं, नौकरशाहों और भूमाफियाओ को पहले पता चल जाता कि फलां इलाके से नई सड़क निकलनी है। उस इलाके की पूरी जमीनें इनलोग खरीद लेते हैं। पिछ्ली सरकार में बीजेपी के लोगों ने भी खूब डुबकी लगाई। सिर्फ अभनपुर क्षेत्र में भारत माला के तहत निकलने वाली सड़क के लिए सरकार को 300 करोड़ पेमेंट करना पड़ा। कोरबा का खेल भी 200 करोड़ से ऊपर का है। खैर अभनपुर, कोरबा का तो हो गया, बेमेतरा में सरकार चाहे तो बड़ी राशि बचा सकती है।
धरती के भगवान
साल 2021 अस्पताल मालिकों के लिए जादुई रहा....सारी देनदारियां चूकता कर डॉक्टरों ने करोड़ों की मिल्कियत खड़ी कर ली। रजिस्ट्री विभाग की जानकारी है, राजधानी से लेकर न्यायधानी तक 70 फीसदी से अधिक जमीनों के बड़े सौदे डॉक्टरों ने किए हैं। मगर इस बार अस्पताल मालिक कुछ सहमे-सहमे से हैं...2022 कहीं दगा न दे दें। तीसरी लहर के लिए शादी-ब्याह जैसी अस्पतालों को तैयारियां की गई थी। राजधानी के एक बड़े हॉस्पिटल ने तीन महीने रात-दिन काम करवा कर टॉप फ्लोर पर 100 बेड का नया हॉल तैयार करा लिया था। ओमिक्रॉन की आहट मिलते ही बिलासपुर के एक बड़े अस्पताल ने नर्सिंग और मार्केटिंग स्टाफ को दुगुना कर दिया। सूबे के अमूमन सभी छोटे-बड़े नर्सिंग होम और अस्पतालों ने अपने-अपने लेवल में तैयारियां की थी। क्लास तो ये भी कि 50-60 लाख के रेंज की बीएमडब्लू खरीदने का मूड बनाए एक डॉक्टर ने तीसरी लहर की आस में एक करोड़ 40 लाख की वॉल्वो कार खरीद डाली...उन्हें लगा तीसरी लहर में सब बरोबर हो जाएगा। मगर ईश्वर का शुक्र कहिए...। ऐसे में, डॉक्टरों की मायूसी समझी जा सकती है।
भरोसा जिंदा है
ऐसा नहीं कि चिकित्सा संस्थानों में सब जगह लूटमार और संवेदनशून्यता है। कुछ ऐसे भी हैं, जहां जाने पर लगेगा कि भरोसा अभी जिंदा है। आपको फुरसत मिले तो कभी राजधानी के एसीआई घूम आईयेगा। एसीआई बोले तो एडवांस कार्डियक इंस्टिट्यूट। एसीआई सरकारी संस्थान है मगर कारपोरेट अस्पताल से कम नहीं। सरकार अगर थोड़ा सा और ध्यान दे दें तो कॉरपोरेट हॉस्पिटल उसके सामने फीके नजर जाएंगे। वजह है, अस्पताल के धुन और लगन के पक्के डॉक्टरों की टीम।
आईएएस संज्ञान लें
अधिकार का उपयोग गलत नहीं होना चाहिए। इस पर बिलासपुर हाईकोर्ट के जस्टिस संजय के अग्रवाल के आदेश पर नौकरशाहों को गौर फरमाना चाहिए। जीएसटी के एक ज्वाइंट कमिश्नर का सीआर गड़बड़ कर दिया था अफसरों ने। ज्वाइंट कमिश्नर ने जीएसटी सिकरेट्री संगीता पी के यहां प्रतिवेदन दिया। लेकिन, संगीता ने उसे सुनने की बजाए डिप्टी सिकरेटी को मार्क कर दिया और डिप्टी सिकरेट्री ने उपर से जैसा निर्देश था, वही किया... प्रतिवेदन को खारिज कर दिया। ज्वाइंट सिकरेट्री ने इसके खिलाफ बिलासपुर के युवा वकील अभ्युदय सिंह के जरिये हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस संजय के अग्रवाल ने इस पर आदेश दिया कि बिना कारण बताए किसी के अभ्यावेदन को खारिज नहीं किया जा सकता। अगर आप सीआर के अभ्यावेदन को रिजेक्ट कर रहे हैं तो उसका कारण लिखना होगा कि किस वजह से वे इसे खारिज कर रहे हैं। बता दें, संगीता के जीएसटी सिकरेट्री और कमिश्नर रहने के दौरान बड़ी संख्या में अधिकारियों के सीआर खराब हुए। इनमें से कुछ और अफसर हाईकोर्ट गए हैं।
प्रमोटी को झटका
अभी तक डायरेक्ट याने आरआर आईएएस को शिकायत थी कि कलेक्टरी में सरकार प्रमोटी आईएएस को ज्यादा वेटेज दे रही है। वाकई, एक समय प्रमोटी की संख्या 13 के करीब पहुंच गई थी। मगर अब यह संख्या सिमटकर छह पर आ गई है। हाल की लिस्ट 3 प्रमोटी के विकेट गिर गए। सरकार ने अबकी तीन प्रमोटी कलेक्टरों को वापिस बुला लिया। कोरिया कलेक्टर श्याम धावड़े, बलौदाबाजार कलेक्टर सुनील जैन और नारायणपुर कलेक्टर धमेंद्र साहू। सरगुजा और बस्तर संभाग में अब एक भी प्रमोटी नही बचे। बिलासपुर संभाग में सिर्फ एक। जीतेंद्र शुक्ला जांजगीर। रायपुर संभाग में डोमन सिंह बलौदा बाजार और पीएस एल्मा धमतरी। दुर्ग संभाग जरूर प्रमोटी अफसरों को थामा हुआ है। वहां तारण प्रकाश सिनहा राजनांदगांव, जन्मजय मोहबे बालोद और रमेश शर्मा कवर्धा। असल में, आरआर वालों की तादात इतनी बढ़ती जा रही कि मुंगेली और जीपीएम जैसे जिले भी प्रमोटी के लिए नहीं बच गए। वरना, एक समय था, रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, रायगढ़ में प्रमोटी कलेक्टर रहे।
नारी शक्ति
कलेक्टरी में नारी शक्ति का योग इस समय प्रबल चल रहा है। महिला कलेक्टरों की संख्या कभी एक हो गई थी। अब तीन पहुंच गई है। रानू साहू कोरबा और नम्रता गांघी जीपीएम में थी। अभी के फेरबदल में नम्रता को गरियाबंद भेजकर ऋचा चौधरी को जीपीएम का कलेक्टर बनाया गया है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. आईपीएस अरूण देव गौतम को लोक अभियोजन में क्यों भेजा गया?
2. 26 जनवरी को कटघोरा को नए जिले बनाने की चर्चाओं में कितना दम है?