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Google बताएगा रद्दा, सुनाएगा गाना: छत्तीसगढ़ी सहित 9 स्थानीय भाषाओं को डिजिटल किया जा रहा, फिर जो कहेंगे छत्तीसगढ़ी में सब सुनेगा गूगल-अलेक्सा

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) बेंगलुरु ने प्रोजेक्ट पर शुरू किया काम, इसमें छत्तीसगढ़ के डॉ. हितेश कुमार एसोसिएट रिसर्च

Google बताएगा रद्दा, सुनाएगा गाना: छत्तीसगढ़ी सहित 9 स्थानीय भाषाओं को डिजिटल किया जा रहा, फिर जो कहेंगे छत्तीसगढ़ी में सब सुनेगा गूगल-अलेक्सा
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By NPG News

रायपुर, 10 मई 2022। कैसा लगेगा जब आप छत्तीसगढ़ी में Google से पूछेंगे, दुरूग के रस्ता बता तो और छत्तीसगढ़ी में जवाब मिलेगा...आप पूछेंगे ईढ़हर के साग कइसे रांधथे और U-tube पर रैसिपी खुल जाए...जल्द ही ऐसा होने वाला है। बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) ने इस पर काम शुरू कर दिया है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत कुमार घोष के नेतृत्व में एक शोध-दल छत्तीसगढ़ी सहित नौ भारतीय भाषाओं बंगाली, हिंदी, भोजपुरी, मगधी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, मराठी, तेलुगु और कन्नड़ में आवाज के माध्यम से सूचना तक पहुंचाने की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीक विकसित कर रहा है।

छत्तीसगढ़ी भाषा में काम करने के लिए पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला के शोध उपाधिधारक डॉ. हितेश कुमार का चयन एसोसिएट रिसर्च (छत्तीसगढ़ी) के पद पर किया गया है। डॉ. हितेश ने पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. केशरी लाल वर्मा के निर्देशन में अपना शोध-कार्य पूर्ण किया है। डॉ. हितेश राजभाषा छत्तीसगढ़ी के साथ ही रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर और कवर्धा क्षेत्र में बोली जानी वाली छत्तीसगढ़ी के लिए विभिन्न सहयोगियों के साथ कार्य कर रहे हैं।

खेती-किसानी के गोठ-बात भी होही आसान

छत्तीसगढ़ी भाषा ऑनलाइन प्लेटफार्म में उपलब्ध होने से छत्तीसगढ़ के लोगों को जो भी जानकारी चाहिए वह अपनी भाषा और उपभाषा में उपलब्ध हो सकेगा। विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय भेद के चलते एक ही भाषा को अलग-अलग प्रकार से बोली जाती है। छत्तीसगढ़ी को मैदानी क्षेत्रों में अलग तरीकों से बोला जाता है किंतु जैसे सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, कवर्धा, आदि क्षेत्रों में जाते हैं तो वहां बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी के शब्दों एवं शैली में भिन्नता आ जाती है।

अपनी बोली में ही जानकारी उपलब्ध होने से दूरदराज के गांव में रहने वाला कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से लेकर पशुपालन, पशुओं का कृषकों के दैनिक जीवन में महत्व, पारंपरिक एवं आधुनिक खेती के तरीके, सर्वोत्तम उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग, वित्त, बैंकिंग, व्यवसाय, शासकीय योजनाएँ, बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण, आदि का विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकता है। यहां तक कि कम पढ़े-लिखे, गरीब व्यक्ति भी अपनी कमाई को सुरक्षित जगह में निवेश करने से लेकर अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम शिक्षा के अवसरों जैसे विभिन्न जानकारी तक पहुंचा सकता है।

11 हजार घंटे का ऑडियो

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए 11000 घंटे की ऑडियो आधारित जानकारी एकत्र की गई है, जहां यह सुनिश्चित किया गया है कि पुरुष और महिला वॉयस रिकॉर्डिंग समान अनुपात में हों। इस परियोजना के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान, RESPIN और SYSPIN ने Navana Tech (http://navanatech.in//) और BhaShiNi Digitization Services (http://bhashiniservice.com//) के साथ एक संयुक्त उद्यम बनाया है। इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने दो मिलियन डॉलर की मंजूरी दी है। जर्मन डेवलपमेंट कोऑपरेशन इनिशिएटिव ने तकनीकी सहायता प्रदान की है।

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