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foucault pendulum भारत के नए संसद भवन के संविधान हॉल में फौकाल्ट पेंडुलम, इसी तरह अपनी धुरी पर घूमती है पृथ्वी... जानें इसके बारे में

भारत का नया संसद भवन अपनी खास विशिष्टताओं के लिए चर्चा में है. इसी में फौकाल्ट पेंडुलम भी एक विशिष्ट रचना है.

foucault pendulum भारत के नए संसद भवन के संविधान हॉल में फौकाल्ट पेंडुलम, इसी तरह अपनी धुरी पर घूमती है पृथ्वी... जानें इसके बारे में
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By Manoj Vyas

Foucault Pendulum

नई दिल्ली ब्यूरो. पृथ्वी अपनी धुरी पर जिस तरह सूर्य की परिक्रमा करती है, उसी तरह की एक आकृति, जिसे फौकाल्ट पेंडुलम कहा जाता है, भारत के नए संसद भवन में लगाया गया है. ब्रह्मांड के विचार के साथ भारत के एकीकरण के प्रतीक के रूप में इसे नए संसद भवन के संविधान हॉल में लगाया गया है. 36 किलो वजनी यह पेंडुलम संविधान हॉल की त्रिकोणीय छत से एक बड़े रोशन दान से लटका हुआ है. इसकी ऊंचाई 22 मीटर है, जो अपनी धुरी पर घूमते हुए फर्श को छूता है. पीएम नरेंद्र मोदी ने 28 मई को जब नए संसद भवन का उद्घाटन किया, तब वहां मौजूद लोगों के लिए यह भी एक कौतूहल का विषय था.

नए संसद भवन में फौकाल्ट पेंडुलम कोलकाता के नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम (NCSM) ने तैयार किया है. इसे मास्टर पीस बताया जा रहा है. 22 मीटर ऊंचाई और 36 किलो वजन वाले पेंडुलम को जमीन पर गति के लिए एक गोलाकार स्ट्रक्चर बनाया गया है, जिसके चारों ओर एक छोटी सी ग्रिल है. यहां विजिटर्स चारों ओर खड़े हो सकते हैं और पेंडुलम को देख सकते हैं. स्थापना में प्रदर्शित विवरण के अनुसार, संसद के अक्षांश पर पेंडुलम को एक चक्कर पूरा करने में 49 घंटे, 59 मिनट और 18 सेकंड लगते हैं.


आखिर क्यों पड़ा फौकाल्ट पेंडुलम नाम

दरअसल, फौकॉल्ट पेंडुलम नाम 19वीं शताब्दी के फ्रांसीसी वैज्ञानिक लियोन फौकॉल्ट के नाम पर रखा गया है. यह पूरी तरह से पृथ्वी के रोटेशन पर आधारित है. जैसे-जैसे पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमेगी, वैसे-वैसे समय का पता चलेगा. ये पृथ्वी के घूर्णन को प्रदर्शित करने का एक सरल प्रयोग है. 1851 में जब फौकॉल्ट ने यह प्रयोग किया, तो यह इस तथ्य का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है. एक बार इधर-उधर गति करने के बाद, पेंडुलम को समय के साथ धीरे-धीरे अपना अभिविन्यास बदलते देखा जा सकता है.

भारत में ही बनाए गए पेंडुलम के पार्ट्स

खास बात यह है कि पेंडुलम के सभी कंपोनेंट्स भारत में ही बने हैं. मीडिया से बातचीत में इस प्रोजेक्ट के प्रभारी तापस महाराणा ने बताया कि उन्हें यह पेंडुलम तैयार करने में लगभग 10-12 महीने लगे. उनकी टीम में एनसीएसएम के क्यूरेटर डी. शतादल घोष और अन्य सहयोगी शामिल थी थे. गौरतलब है कि केंद्रीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण प्रयोगशाला (सीआरटीएल) एनसीएसएम की अनुसंधान एवं विकास इकाई है, जो संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में कार्य करती है.


महाराणा के मुताबिक, उन्हें पिछले साल केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) से यह पेंडुलम तैयार करने के लिए प्रस्ताव आया था. पेंडुलम के प्रतीकवाद और लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में इसके प्रमुख स्थान को लेकर महाराणा का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 51ए प्रत्येक नागरिक को "वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना विकसित करने" के लिए प्रतिष्ठापित करता है.


Manoj Vyas

मनोज व्यास : छत्तीसगढ़ में 18 साल से पत्रकारिता में सक्रिय, सभी प्रमुख संस्थाओं में दी सेवाएं, इसी दौरान हरिभूमि समाचार पत्र से जुड़े। इसके बाद दैनिक भास्कर में सिटी रिपोर्टर के रूप में जॉइन किया। नौकरी के साथ-साथ गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय से एमएमसीजे की पढ़ाई पूरी की। न्यायधानी के बाद राजधानी का रुख किया। यहां फिर हरिभूमि से शुरुआत की और नेशनल लुक, पत्रिका, नवभारत, फिर दैनिक भास्कर होते हुए भविष्य की पत्रकारिता का हिस्सा बनने के लिए NPG.News में बतौर न्यूज एडिटर जॉइन किया। इस बीच नवभारत के भुवनेश्वर, ओडिशा एडिशन में एडिटोरियल इंचार्ज के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

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