जेब में मंत्री
छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय दीक्षित का लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
संजय के. दीक्षित
तरकश, 16 जनवरी
आदिवासी समुदाय के लिए ये एक विडंबना होगी कि उनके वोटों से जीतकर जो नेता मंत्री-मिनिस्टर बनते हैं, रायपुर आते ही कुछ खास तरह के ठेकेदारों और सप्लायारों के इशारों पर कत्थक करने लगते हैं। रामविचार नेताम थोड़ा ज्यादा ही तेज-तर्रार थे...एक एसडीएम को थप्पड़ तक जड़ दिया। बाकी की कमोवेश एक सरीखा स्थिति रही है। मंत्री पद की शपथ लेते ही या तो कोई गोयल, अग्रवाल या फिर अ-सरदार उन्हें लपक लेता है। उसके बाद वे जैसा चलाते हैं, मंत्री लोग वैसा ही चलते हैं। आपने देखा ही होगा...आदिवासी मंत्रियों की राजधानी में बड़े-बड़े होर्डिग्स लगते हैं, उसमें किन लोगों की फोटुएं रहती हैं। ये लोग हर फन में माहिर होते हैं। रमन सरकार के एक आदिवासी मंत्री को एक सप्लायर ने हैदराबाद और मुंबई का ऐसा चस्का लगवा दिया कि अभी भी उधरे ज्यादा पाए जाते हैं। इन सरल-सहज मंत्रियों को व्यापारियों के चंगुल से आजाद कराने सरकार को कुछ करना चाहिए।
जब सीएम हुए भावुक
भिलाई में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के घर के पास में ही चरौंदा नगर निगम का दफ्तर है। भूपेश जब राजस्व मंत्री थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से आग्रह करके उन्होंने सन् 2000 में चरौंदा को नगरपालिक बनवाया था। लेकिन, हुआ कुछ ऐसा कि कांग्रेस एक बार भी वहां जीत नहीं पाई। नपा का पहला चुनाव परिवार से बगावत कर विजय बघेल निर्दलीय जीत गए। इससे भूपेश इतने आहत हुए कि 21 साल तक ननि दफ्तर में कदम नहीं रखा। समय के साथ 2015 में चरौंदा पालिका से निगम बन गया। 22 वे साल में पहली बार अबकी कांग्रेस का मेयर बना तो पदभार ग्रहण में मुख्यमंत्री भी पहुंचे। इस मौके पर वे भावुक हो गए। बोले...मेरा सपना था कि चरौंदा में कांग्रेस पार्टी का मेयर बने...ये एक संयोग है कि 22 बरस बाद पार्टी का महापौर बना और मैं मुख्यमंत्री के रूप में यहां मौजूद हूं।
चार सिकरेट्री
एस भारतीदासन के सचिव प्रमोट होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सचिवालय में अब चार सिकरेट्री हो गए हैं। वहां पहले से एसीएस सुब्रत साहू, सिद्धार्थ कोमल परदेशी और डीडी सिंह सिकरेट्री थे। अब भारतीदासन। पिछली सरकार में भी लगभग यही स्थिति रही। एन बैजेंद्र कुमार एसीएस रहे। उनके बाद अमन सिंह, सुबोध सिंह और एमके त्यागी। हालांकि, विधानसभा चुनाव से साल भर पहले बैजेंद्र डेपुटेशन पर एनएमडीसी चले गए। उसके बाद तीन ही सिकरेट्री रहे। अमन, सुबोध और त्यागी। हालांकि, तब संविदा में दो सिकरेट्री थे। अमन और त्यागी। इस समय संविदा वाले सिर्फ डीडी सिंह हैं।
सूरज उगेगा
पिछले तरकश में एक सवाल था, सत्ताधारी पार्टी के एक सीनियर नेता का नाम बताइये, जो अपने बेटे को अगले विधानसभा चुनाव में लांच करने के लिए चुनावी राजनीति से अलग होने वाले हैं। इसके जवाब में कई लोगों के फोन आए, मैसेज भी। लोगों का उत्तर था...चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा, ताम्रध्वज साहू और रविंद्र चौबे। इनमें से तीन के बारे में अभी कुछ पुख्ता नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने अवश्य राज्यसभा में जाने की इच्छा जताई है। खबर है, अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो महंत का सूरज सक्ती में उगेगा। पिछले चुनाव में महंतजी ने लोगों को भरोसा दिया था कि वे सक्ती को जिला बनवाएंगे। चूकि सक्ती जिला बन गया है, सो अपने इकलौते बेटे सूरज की लांचिंग का इससे बढ़ियां कोई मौका नहीं हो सकता।
डबल कमिश्नर
ठीक ही कहा जाता है, वक्त बलवान होता है। अब आप देखिए, कभी मुकेश गुप्ता के बाद दूसरे नम्बर के पावरफुल आईपीएस माने जाने वाले जीपी सिंह सलाखों के पीछे हैं। और नई सरकार में पीएचक्यू में एक साल तक बिना विभाग के कठिन दौर देखने वाले दिपांशु काबरा आज दो-दो अहम विभागों के कमिश्नर। दोनों आईएएस वाले पदों पर। कमिश्नर पीआर और कमिष्नर ट्रांसपोर्ट। इन पदों पर पहले कभी कोई आईपीएस नहीं रहा। जाहिर है, जनसंपर्क आयुक्त बनने के बाद बेहतर पारफारमेंस से दिपांशु ने सरकार का विश्वास और गहरा किया है।
राडार पर आईएएस
आय से अधिक संपत्ति के मामले में एसीबी ने सीनियर आईपीएस जीपी सिंह को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। ऐसे में अब एसीबी पर आईएएस के खिलाफ भी कार्रवाई कर बैलेंस करने का प्रेशर बढ़ रहा है। इससे पहले मुकेश गुप्ता ने जब आईएएस को ट्रेप किया था तब ब्यूरोक्रेसी से आईपीएस को लेकर उंगलिया उठ रही थी। लेकिन, एसीबी चीफ आरिफ शेख ने हौसला दिखाते हुए एडीजी जैसे सीनियर अफसर को गिरफ्तार कर लिया। जीपी के खिलाफ मीडिया में संपत्तियों का ब्यौरा आ रहा है, वो काफी हो सकता है। मगर सवाल ये भी तो है कि क्या किसी आईएएस के यहां रेड पड़ेगा तो क्या इससे कम निकलेगा?
ब्यूरोक्रेसी में खौफ
आय से अधिक संपत्ति के मामले में आईपीएस जीपी सिंह की गिरफ्तारी पर लोगों के अनेक मत हो सकते हैं। मगर नौकरशाही में माना जा रहा है कि सरकार ने कौवा मारकर टांग दिया है। खासकर दाएं-बाएं होने वाले अफसरों के लिए। सरकार गलती पाए जाने पर जब एडीजी रैंक के आईपीएस को सलाखों के पीछे भेज सकती है तो फिर किसी को भी लटका सकती है। इस सरकार के साथ अलग बात यह है कि अपना-पराया कुछ नहीं। कोई भी कितने भी बड़े पद पर क्यों नहीं बैठा हो, ये दावा नहीं कर सकता कि मैं फलां हूं....मैं ढिमका हूं। परिवहन विभाग में हल्का सा बर्तन बजने की आवाज आई, सरकार ने एक झटके में व्यवस्था बदल दी। सूबे के एक युवा विधायक की भी अब हैसियत कम करने की खबरें आ रही हैं।
छोटा जिला, बड़े अफसर
गरियाबंद इलाके में नक्सली मूवमेंट जब तेज होने लगा था तो पिछली सरकार ने 2012 में गरियाबंद को नया जिला बनाया था। मगर इस सरकार ने अफसरों की पोस्टिंग के मामले में जिले की रेटिंग बढ़ा दी है। गरियाबंद पहले आईएएस, आईपीएस का पहला जिला होता था। मगर अब ऐसा नहीं रहा। नीलेश क्षीरसागर को जशपुर के बाद गरियाबंद का कलेक्टर बनाया गया। तो नम्रता गांधी का भी ये दूसरा जिला है। इसी तरह 2008 बैच की पारुल माथुर को कप्तान। उनसे पहिले भोजराम पटेल भी कांकेर के बाद गरियाबंद के एसपी बने थे। यही नहीं, डीएफओ भी पहले प्रमोटी होते थे मगर अब डायरेक्ट आईएफएस को पोस्ट किया जा रहा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. रायपुर पुलिस ने कालीचरण को फिल्मी अंदाज में पकड़ा तो एसीबी ने जीपी सिंह को, इनमें किसकी कामयाबी सबसे अहम है?
2. एसीबी के राडार पर कौन से तीन आईएएस अधिकारी हैं?