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द्रौपदी मुर्मू बनीं भारत की 15वीं राष्ट्रपति, यशवंत सिनहा को किया पराजित, 25 जुलाई को लेंगी शपथ, जानिये पार्षद से राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू के बारे में सब कुछ

द्रौपदी मुर्मू बनीं भारत की 15वीं राष्ट्रपति, यशवंत सिनहा को किया पराजित, 25 जुलाई को लेंगी शपथ, जानिये पार्षद से राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाली द्रौपदी मुर्मू के बारे में सब कुछ
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By NPG News

नई दिल्ली। द्रौपदी मुर्मू भारत की नई राष्ट्रपति बन गई हैं। विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिनहा को हराकर वे राष्ट्रपति निर्वाचित हुई। द्रौपदी देश के राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाली पहली आदिवासी महिला हैं। वे 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद का शपथ लेंगी। उनकी जीत से पहले ही द्रौपदी मुर्मू के पैतृक गांव में जश्न की तैयारी शुरू हो गई थी। उधर, पहली बार भाजपा भी किसी राष्ट्रपति की जीत पर विजय जुलूस निकालेगी। बीजेपी अध्यक्ष इस मौके पर तीन किलोमीटर का रोड शो करेंगे। ज्ञातव्य है, द्रौपदी एनडीए की उम्मीवार थीं और उन्हेंं 27 विभिन्न पार्टियों ने समर्थन किया था। इसके उलट यशवंत सिनहा को कांग्रेस, तृण-मूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को मिलाकर 14 दलों का समर्थन मिला था। पढ़ें द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय-

संथाल आदिवासी परिवार में जन्म

द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में 20 जून 1958 में हुआ था। उस समय यह बेहद पिछड़ा हुआ इलाका था, जहां मूलभूत सुविधाएं भी नहीं थीं। द्रौपदी के पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू है। द्रौपदी का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था। उनके दो बेटे व एक बेटी हैं। बेटों व पति की मृत्यु हो चुकी है।

रमादेवी कॉलेज से बीए तक शिक्षा

द्रौपदी मुर्मू की प्रारंभिक शिक्षा मयूरभंज जिले में ही हुई। इसके बाद उन्होंने भुबनेश्वर के रमा देवी कॉलेज से बीए तक पढ़ाई की है। कॉलेज के बाद द्रौपदी ने सिंचाई विभाग में क्लर्क की नौकरी की। हालांकि पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी और ससुराल वापस आ गईं। इस बीच उन्होंने एक स्कूल टीचर के रूप में भी नौकरी की।

पार्षद के रूप में राजनीति में एंट्री

द्रौपदी मुर्मू ने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। यह साल 1997 था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे ओडिशा भाजपा एसटी मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष रहीं। इसके बाद एसटी मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष भी बनीं। मयूरभंज जिले की भाजपा अध्यक्ष के रूप में काम किया। भाजपा एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य बनीं।

2000 में आया बड़ा टर्निंग पॉइंट

साल 2000 में द्रौपदी मुर्मू के जीवन में बड़ा टर्निंग पॉइंट आया। उन्हें भाजपा ने रायरंगपुर सीट से विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया। द्रौपदी ने जीत दर्ज की। उस दौरान भाजपा और बीजू जनता दल गठबंधन की सरकार थी। इस सरकार में वे स्वतंत्र प्रभार के रूप में राज्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली। पहले उन्हें वाणिज्य एवं परिवहन विभाग, फिर मत्स्य एवं पशु संसाधन विभाग का दायित्व मिला। 2009 में वे फिर विधायक बनीं। उन्हें ओडिशा के उत्कृष्ट विधायकों को मिलने वाला नीलकंठ पुरस्कार भी मिल चुका है।

2015 में राज्यपाल के रूप में रिकॉर्ड

द्रौपदी मुर्मू अपने राजनीतिक जीवन में जिस तेजी से ऊंचाई तक पहुंच रही थीं, उसकी धमक केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच चुकी थी। आखिरकार वह समय आ गया, जब केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें राज्यपाल के रूप में जिम्मेदारी दी। द्रौपदी मई 2015 में झारखंड की राज्यपाल बनाई गईं। वह पहली आदिवासी महिला राज्यपाल बनीं। झारखंड की पहली राज्यपाल थीं, जिन्होंने पांच साल से भी ज्यादा समय पूरा किया। यही नहीं, अपनी प्रशासनिक क्षमताओं का भी प्रदर्शन किया।

चुनौतियों से भरा रहा यह सफर

द्रौपदी मुर्मू का यह सफर चुनौतियों और कई त्रासदियों से भरा रहा। बेहद पिछड़े इलाके में आदिवासी परिवार में जन्म लेने के बाद पढ़ाई-लिखाई के लिए संघर्ष करना पड़ा। शादी के बाद तीन बच्चे हुए, लेकिन हादसे में बेटों और बाद में पति को खोना पड़ा। अभी उनकी बेटी इति, नातिन और दामाद हैं। बेटी की शादी झारखंड में हुई है।

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