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जिले की जीत: खैरागढ़ छुईखदान गंडई को जिला बनाने का मास्टरस्ट्रोक रहा गेमचेंजर, भाजपा का लोधी वोट बैंक पिछड़ा..

कांग्रेस उम्मीदवार यशोदा वर्मा पहले चरण से ही आगे रहीं, पिछली बार के वोटों तक नहीं पहुँच सके कोमल जंघेल

जिले की जीत: खैरागढ़ छुईखदान गंडई को जिला बनाने का मास्टरस्ट्रोक रहा गेमचेंजर, भाजपा का लोधी वोट बैंक पिछड़ा..
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By NPG News

रायपुर, 16 अप्रैल 2022. छत्तीसगढ़ के हाईप्रोफ़ाइल खैरागढ़ उपचुनाव का परिणाम आ गया है. छत्तीसगढ़ में जैसा अब तक का ट्रेंड है, उसके अनुरूप सत्ताधारी पार्टी की ही उपचुनाव में जीत हुई है. कोटा अपवाद है, जिसमें भाजपा की सरकार में कांग्रेस की जीत हुई थी. बहरहाल, छत्तीसगढ़ के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस जीत के नायक हैं, लेकिन इसे जिले की जीत कहेंगे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. पहली बार कोई उपचुनाव जिले के गठन के मुद्दे पर केंद्रित रहा. खैरागढ़ छुईखदान गंडई जिला बनाने के लिए भरी गर्मी में भी लोग घरों से बाहर निकले. सुदूर साल्हेवारा जैसे वनवासी क्षेत्र के लोग में भी काफी उत्साह देखने को मिला. यह गेमचेंजर भी साबित हुआ क्योंकि विपक्षी पार्टी भाजपा जिन मुद्दों पर खड़ी थी, वह जिले के शोर में ओझल हो गई. हालाँकि भाजपा का बूथ मैनेजमेंट तगड़ा था. कांग्रेस उम्मीदवार ने 87829 का आंकड़ा पार कर लिया लेकिन एक-एक मंडल की जिम्मेदारी संभाल रहे नेता कोमल जंघेल को 67 हजार वोट दिलाने में कामयाब रहे.

सीएम ने संभाला मोर्चा, भरोसा दिलाया- 16 अप्रैल को विधायक जीतेगी और 17 को खैरागढ़ छुईखदान गंडई जिला बनेगा

छत्तीसगढ़ में उपचुनाव के ट्रेंड पर गौर करें तो सरकार की जीत पहले ही तय थी. कांग्रेस में आत्मविश्वास था, लेकिन वे कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहते थे, इसलिए सीएम बघेल ने मोर्चा संभाला. सभी मंत्री भी अपने अपने टास्क में लगे रहे. मतदान को 11 दिन शेष रहते ही सरकार ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेला. खैरागढ़ छुईखदान गंडई को जिला बनाने का ऐलान किया. साल्हेवारा को तहसील बनाने का वादा किया. दो नए कालेज, आत्मानंद स्कूल, उप तहसील बनाने का दर्जा, जैसी घोषणाएं ऐसी थी, जिसने हर वर्ग को प्रभावित किया. यहाँ तक कि भाजपा समर्थित लोगों के मन में भी यह बात आ गई कि विधायक के बजाय जिले की घोषणा महत्वपूर्ण है.कांग्रेस ने इसी भावना को वोट में बदला. नवाचार करते हुए प्रमुख चौराहों पर एलईडी स्क्रीन लगाए गए, जिसमें जिला बनने का काउंटडाउन दिखाया जा रहा था. सभाओं में जिले की घोषणा ही महत्वपूर्ण थी. कांग्रेस यह बताने में सफल रही कि वह जो कहती है, वह करती है.

भाजपा ने पूरी जान लगा दी, बाहर से स्टार प्रचारक के रूप में नेता भी बुलाए लेकिन जिला गठन का तिलिस्म नहीं तोड़ पाए

भाजपा ने उपचुनाव में पूरी जान लगा दी. केंद्रीय मंत्री और लोधी समाज के बड़े नेता प्रह्लाद पटेल को बुलाया. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आए. आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते आए, पूरा शीर्ष नेतृत्व जुटा रहा, लेकिन नए जिले के गठन का तिलिस्म नहीं तोड़ पाए. इसके विपरीत कांग्रेस ने चुनाव को सेमीफइनल के रूप में लड़ा. पुराने प्रत्याशी के बजाए नए और महिला चेहरे के रूप में यशोदा वर्मा को मौका दिया. कुछ समय के लिए यह भी बात आई कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी कमजोर है, लेकिन यह गलत साबित हुआ, बल्कि कोमल जंघेल को फिर से मौका देने से कार्यकर्ताओं में ही नाराजगी रही. कुछ प्रमुख नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग विक्रांत सिंह के पक्ष में था. फिर से पुराने चेहरे पर दांव लगाने के कारण कोमल अपने ही प्रभाव वाले क्षेत्र में पिछड़ गए और पहली बार हार का अंतर 20 हजार से ज्यादा हो गया। जोगी कांग्रेस ने 2018 में देवव्रत सिंह को प्रत्याशी बनाकर जीत हासिल की थी, लेकिन वह जोगी कांग्रेस की नहीं बल्कि देवव्रत सिंह की जीत थी. यही वजह है कि उपचुनाव में एक भी चरण में जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार तीन अंकों तक भी नहीं पहुंच पाए. कई प्रत्याशियों से ज्यादा नोटा पर वोट पड़े हैं.

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