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धर्मजीत सिंह: विद्या भैया से अलग होकर जोगी से जुड़े, फिर पार्टी छोड़ी, अब फिर नए रास्ते पर चलने की चुनौती; पढ़ें क्या होगा अगला कदम

धर्मजीत सिंह: विद्या भैया से अलग होकर जोगी से जुड़े, फिर पार्टी छोड़ी, अब फिर नए रास्ते पर चलने की चुनौती; पढ़ें क्या होगा अगला कदम
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By NPG News

दिव्या सिंह

सहृदय, सौम्य और मृदुभाषी धर्मजीत सिंह का छत्तीसगढ़ की राजनीति में महत्वपूर्ण दखल है। धर्मजीत अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे तो छत्तीसगढ़ विधानसभा के उपाध्यक्ष भी बने। वे महत्वाकांक्षी ज़रा कम ही हैं। अपने हाथों में सारी ताकत समेटने की भूख नहीं है उनमें। बस राजनीति से प्यार है और इस फील्ड में अपने लिए एक सम्मानजनक स्थान चाहते हैं। चार बार के विधायक धर्मजीत के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि वे फाॅरवर्ड पोज़ीशन पर नहीं खेलते पर डिफेंस के लिए अपनी टीम को बहुत बढ़िया सपोर्ट देते हैं। कहाँ से शुरू की उन्होंने राजनीति और आज किस मोड़ पर हैं, पड़ताल करते हैं...

धर्मजीत सिंह का जन्म ग्राम पोस्ट पंडरिया में 30 जून 1953 को हुआ। श्री कल्पनाथ सिंह के पुत्र धर्मजीत ने बिलासपुर गवर्नमेंट काॅलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। काॅलेज के दिनों से ही धर्मजीत छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे। उनकी पत्नी श्रीमती शशि सिंह हैं।

राजनीति में गाॅडफादर बने विद्याचरण शुक्ल

शुरूआती दिनों में जब धर्मजीत अपने पांव राजनीति में जमाने में लगे थे, तब सौभाग्य से विद्याचरण शुक्ल के रूप में उन्हें गाॅडफादर मिले। विद्याचरण ने उनकी खूबियों को पहचाना। धर्मजीत ने उनकी उंगली कस कर थाम ली और सत्ता के गलियारों में आगे बढ़ चले। विद्याचरण के करीबी होने के कारण संगठन में पद भी अपेक्षाकृत सरलता से मिलते गए।

फिर कैसे विद्याचरण को छोड़ अजीतजोगी से बढ़ी नज़दीकी

2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद कांग्रेस की सरकार बनने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। सीएम पद के लिए घमासान चल रहा था। ऐसे में धर्मजीत सिंह उन सात विधायकों में शामिल थे, जो विद्याचरण के खेमे में थे। दूसरी तरफ जोगी खेमा था। काफ़ी दिनों तक वे अजीत जोगी से दूर-दूर रहे। लेकिन कुर्सी की जंग अजीत जोगी ने जीत ली। कहा जाता है कि बदली हुई परिस्थितियों में धर्मजीत ने अजीत जोगी के साथ चलना उचित समझा। अजीत जोगी को भी कुर्सी पर मज़बूती से जमने के लिए कर्मठ और व्यवहारिक समझ रखने वाले सहयोगी की ज़रूरत थी तो उन्होंने विद्या खेमे के धर्मजीत को अपनाया, करीब रखा और तवज्ज़ो देकर आगे बढ़ाया भी। यहीं से धर्मजीत और अजीत जोगी की नज़दीकी बढ़ी।

सहृदय इंसान और राजनेता के तौर पर जाने गए धर्मजीत

धर्मजीत की इमेज एक सहृदय इंसान की है। जिस किसी से भी मिलना होता वे बड़े सहज अंदाज़ में मिलते। उनसे मिलकर जाने वाला काफी देर तक उनके सद्व्यवहार की मिठास में ही खोया रहता, फिर चाहे वह उनकी पार्टी का सदस्य हो या विपक्षी पार्टी का। दोस्ती कमाना उन्हें खूब आता है। राजनीति में भी उन्होंने हमेशा दिल की सुनी।

ऐसा रहा राजनीति का सफ़र

धर्मजीत छात्र राजनीति किया करते थे।आगे चलकर नगर पालिका पंडरिया के उपाध्यक्ष मनोनीत हुए। 1988-89 में कृषि उपज मंडी, पंडरिया के अध्यक्ष बने। 1990 में पहला चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1993 में कांग्रेस ने टिकट दी, लेकिन ऐनवक्त पर वापस ले ली। 1994-98 मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। 1998 में लोरमी विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुनीराम साहू को हराकर पहली बार विधायक बने। 2001 में उत्कृष्ट विधायक घोषित किए गए। 2003 में दोबारा भाजपा के मुनीराम साहू को हराकर चुनाव जीता। 2006 में एक बार फिर उत्कृष्ट विधायक के सम्मान से नवाज़े गए। 2008 में भाजपा के जवाहर साहू को हरा तीसरी बार विधायक बने लेकिन 2013 के चुनावों में तोखन साहू के सामने हार हाथ लगी। 2018 में कांग्रेस की नहीं वरन जोगी कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा के उन्हीं तोखन साहू को हरा कर चौथी बार विधानसभा पहुंचे।

क्यों हो लिए थे जोगी कांग्रेस के साथ

सत्ता से बेदखल होने के बाद और लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहने के दौरान कांग्रेस में दो धुरियां बन गईं। एक तरफ जोगी विरोधी थे तो दूसरी तरफ जोगी समर्थक । झीरम हमले में कांग्रेस के अगली पंक्ति के सभी नेताओं की मृत्यु हो गई। बदली हुई परिस्थिति में भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव आगे आए। कहा जाता है कि धर्मजीत की पटरी इनके साथ बैठ नहीं पाई। बल्कि उन्हें संदेह था कि 2013 में मिली हार के बाद पार्टी उन्हें टिकट देगी भी या नहीं। इसलिए जब अजीत जोगी ने 2016 में जोगी कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नाम से नयी पार्टी बनाई तो उन्होंने जोगी के साथ जाना अधिक बेहतर समझा।

अजीत जोगी से निभाई दोस्ती

जोगी से हुई मित्रता धर्मजीत ने बड़ी शिद्दत से निभाई। वे जब पार्टी के विधायक दल के नेता बने तब सदन में कांग्रेस के खिलाफ भाजपा विधायकों से भी अधिक तीखे तेवर धर्मजीत के होते। अजीत जोगी की मृत्यु के बाद जब झीरम मामले की जांच के लिए कांग्रेस सरकार ने नए आयोग के गठन की बात उठाई तो उन्होंने खुल कर इसका विरोध किया। कहा जाता है कि धर्मजीत को शक था कि इस पूरी जांच में आखिर संदेह अजीत जोगी की भूमिका पर किया जाएगा और वे ऐसा नहीं चाहते थे।

फिर क्यों रेणु और अमित जोगी की आँखों की किरकिरी बने धर्मजीत

अजीत जोगी के जाने के बाद धर्मजीत की अपनी पार्टी में पहले सी जगह नहीं रही। धर्मजीत यारों के यार हैं। मिलते-मिलाते भूल जाते हैं कि सामने विपक्षी पार्टी के नेता हैं लेकिन लोगों की कड़ी निगाहों से कुछ छिपता नहीं। कभी भूपेश बघेल तो कभी रमन सिंह से घुलमिल कर बातें करते उनकी तस्वीरें जब भी देखी गईं, अटकलें लगाई गईं कि वे पार्टी बदलने वाले हैं। पार्टी अध्यक्ष रेणु जोगी और उनके पुत्र अमित को धर्मजीत का यही रवैया खटकने लगा और वे उनके निशाने पर आ गए।

आज किस मोड़ पर है धर्मजीत का राजनीतिक कैरियर

ताज़ा तस्वीर यह है कि जोगी कांग्रेस छत्तीसगढ़ से धर्मजीत की राहें ज़ुदा हो चुकी हैं। पार्टी से छह वर्षो के लिए उन्हें निष्कासित कर दिया गया है। उनपर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अनुसूचित जाति, जनजाति, गरीब, अति पिछड़ा वर्ग समाज की उपेक्षा की और स्वर्गीय अजीत जोगी के सिद्धांतों के खिलाफ कार्य किया। हालांकि धर्मजीत का कहना है भाजपा नेता अमित शाह के कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति पार्टी को रास नहीं आई। अब आगे उनका भाजपा में शामिल होना तय माना जा रहा है। कुल मिलाकर पार्टी बदलने का धर्मजीत का सिलसिला जारी है। अब यह नया बदलाव उन्हें कितना रास आएगा, यह तो वक्त ही बताएगा।

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